जब सोनिया गांधी ने संभाली कमान
नरसिम्हा राव के बाद सीतराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने, लेकिन धीरे-धीरे पार्टी में अलग-अलग धड़े बंटने लगे। उन्होंने अपने काम को इतनी ईमानदारी से निभाया की उनके बारे मे कहा जाने लगा ” न खाता न बही , जो केसरी कहे वही सही”। इस बीच शरद पवार प्रधानमंत्री बनने की अपनी चाह लिए अपने सियासी दांव खेलते रहे। 1998 के मध्यावधि चुनाव में सीताराम केसरी के साथ-साथ सोनिया गांधी ने भी प्रचार में हिस्सा लिया लेकिन कांग्रेस 140 सीटें ही जीत पाई। चुनाव में कांग्रेस की हार की पूरी जिम्मेदारी सीताराम केसरी पर थोप दी गई और उन्हें मार्च 1998 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। केसरी को कांग्रेस पार्टी के संवैधानिक प्रावधानों को ताक पर रखकर हटाया गया था। किस गांधी के साथ कांग्रेस आगे बढ़े ऐसे सवाल उठने लगे। सोनिया गांधी को पार्टी में लाने की मांगें उठने लगी। धरने हुए, नारे लगने लगे “सोनिया लाओ, कांग्रेस बचाओ”। सीताराम केसरी ने कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में जितेंद्र प्रसाद, शरद पवार और गुलाम नबी आज़ाद ने सोनिया गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने की पहल का आग्रह किया। जब कांग्रेस टूट की कगार पर पहुंची तो सोनिया गांधी सहारा बनकर सामने आईं। चुनाव के नजदीक आने के बाद पार्टी में सोनिया गांधी के खिलाफ बगावती सुर उठने लगे। सोनिया गांधी के करीबी रहे पी संगामा कांग्रेस वर्किंगी कमेटी में अचानक विरोध करने लगे। कहा जाता है कि इन सब के पीछे थे शरद पवार। शरद पवार ने सोनिया गांधी का विदेशी मूल का मुद्दा उठाया। उस समय उन्होंने कहा कि, ” जितने सालों से सोनिया गांधी भारत में है वह 30 में से 15 साल इटेलियन ही बनी रहीं, क्या राजनीतिक मजबूरी की वजह से वो भारतीय नागरिक बनीं। लेकिन तीस साल से यहां रहने के बाद एक भी भारतीय भाषा को ठीक से सीखने की कोशिश ना करें। लेकिन प्रधानमंत्री का दावेदार बनने के लिए इससे कहीं ज्यादा विश्वसनीयता की आवश्यकता होती है।” ऐसा लग रहा था कि वह भाजपा के नेताओं की लिखी स्क्रिप्ट पढ़ रहे हों। बगावत के पीछे शरद पवार का महाराष्ट्र की राजनीति से निकल और कद्दावर नेता बनना था। कहा जाता है कि एक सर्वे कराया गया उसमें कहा गया कि अगर वह (शरद पवार) सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हैं तो वह दूसरे लोकमान्य तिलक हो जाएंगे। जब पार्टी में ही बगावत शुरू हुई तो सोनिया गांधी ने भी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद शरद पवार पार्टी में अलग-थलग पड़ गए। उनका दांव खाली गया। पार्टी ने शरद पवार समेत, पी संगमा और तारीक अनवर को ही बाहर निकाल दिया। बाद में शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई जिसके संस्थापक सदस्य रहे तारीक अनवर।