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पीएम बनने की हसरत लिए शरद पवार के साथ तारिक अनवर ने उठाया था सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा, ऐसे गया दांव खाली

locationनई दिल्लीPublished: Sep 29, 2018 01:43:05 pm

Submitted by:

Saif Ur Rehman

तारिक अनवर एनसीपी के संस्थापक सदस्य रह चुके हैं।

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पीएम बनने की हसरत लिए शरद पवार के साथ तारिक अनवर ने उठाया था सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा, ऐसे गया दांव खाली

नई दिल्ली। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बचाव में दिए गए बयान के कारण पार्टी से अलग होने वाले सांसद तारिक अनवर ने एक बार फिर से कांग्रेस का दामन थाम लिया है। तारिक अनवर एनसीपी के संस्थापक सदस्य रह चुके हैं। 1999 में शरद पवार के साथ उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर एनसीपी बनायी थी। दिवंगत नेता पीए संगमा, शरद पवार और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया था और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।
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शरद पवार ने छेड़े थे बगावती सुर

सियासत कुछ भी करा सकती है। सत्ता की कुर्सी पाने के लिए नेता क्या कुछ नहीं करते। शरद पवार को ही देखिए जिनकी प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा ने उन्हें कांग्रेस से बगावत करने पर मजबूर कर दिया। तारीखों के पन्ने पलटते हुए चलते हैं पीछे। 1968 में सोनिया गांधी भारत आईं। वह शादी के बाद भारतीय तौर-तरीकों को सीख रहीं थीं। पूर्व प्रधानमंत्री और उनके पति राजीव गांधी ने उस वक्त बताया था कि सोनिया गांधी हिंदू रीति-रिवाज अपनाते हुए भारतीय बन गई थीं। इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी पीएम बने थे, लेकिन सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनें। उन्हें डर था कि कहीं राजीव गांधी के साथ भी इंदिरा गांधी जैसी भी दुर्घटना ना घट जाए। उनका डर यकीन में बदल गया। 21 मई, 1991 में देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की श्रीपेरम्बदूर में मानव बम से मार दिया गया। राजीव गांधी के बाद कांग्रेस की बागडोर पी.वी नरसिम्हा राव के हाथोें में आई। 1996 में कांग्रेस को लोकसभा में हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। फिर सीताराम केसरी अध्यक्ष बने।
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जब सोनिया गांधी ने संभाली कमान

नरसिम्हा राव के बाद सीतराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने, लेकिन धीरे-धीरे पार्टी में अलग-अलग धड़े बंटने लगे। उन्होंने अपने काम को इतनी ईमानदारी से निभाया की उनके बारे मे कहा जाने लगा ” न खाता न बही , जो केसरी कहे वही सही”। इस बीच शरद पवार प्रधानमंत्री बनने की अपनी चाह लिए अपने सियासी दांव खेलते रहे। 1998 के मध्यावधि चुनाव में सीताराम केसरी के साथ-साथ सोनिया गांधी ने भी प्रचार में हिस्सा लिया लेकिन कांग्रेस 140 सीटें ही जीत पाई। चुनाव में कांग्रेस की हार की पूरी जिम्मेदारी सीताराम केसरी पर थोप दी गई और उन्हें मार्च 1998 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। केसरी को कांग्रेस पार्टी के संवैधानिक प्रावधानों को ताक पर रखकर हटाया गया था। किस गांधी के साथ कांग्रेस आगे बढ़े ऐसे सवाल उठने लगे। सोनिया गांधी को पार्टी में लाने की मांगें उठने लगी। धरने हुए, नारे लगने लगे “सोनिया लाओ, कांग्रेस बचाओ”। सीताराम केसरी ने कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में जितेंद्र प्रसाद, शरद पवार और गुलाम नबी आज़ाद ने सोनिया गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने की पहल का आग्रह किया। जब कांग्रेस टूट की कगार पर पहुंची तो सोनिया गांधी सहारा बनकर सामने आईं। चुनाव के नजदीक आने के बाद पार्टी में सोनिया गांधी के खिलाफ बगावती सुर उठने लगे। सोनिया गांधी के करीबी रहे पी संगामा कांग्रेस वर्किंगी कमेटी में अचानक विरोध करने लगे। कहा जाता है कि इन सब के पीछे थे शरद पवार। शरद पवार ने सोनिया गांधी का विदेशी मूल का मुद्दा उठाया। उस समय उन्होंने कहा कि, ” जितने सालों से सोनिया गांधी भारत में है वह 30 में से 15 साल इटेलियन ही बनी रहीं, क्या राजनीतिक मजबूरी की वजह से वो भारतीय नागरिक बनीं। लेकिन तीस साल से यहां रहने के बाद एक भी भारतीय भाषा को ठीक से सीखने की कोशिश ना करें। लेकिन प्रधानमंत्री का दावेदार बनने के लिए इससे कहीं ज्यादा विश्वसनीयता की आवश्यकता होती है।” ऐसा लग रहा था कि वह भाजपा के नेताओं की लिखी स्क्रिप्ट पढ़ रहे हों। बगावत के पीछे शरद पवार का महाराष्ट्र की राजनीति से निकल और कद्दावर नेता बनना था। कहा जाता है कि एक सर्वे कराया गया उसमें कहा गया कि अगर वह (शरद पवार) सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हैं तो वह दूसरे लोकमान्य तिलक हो जाएंगे। जब पार्टी में ही बगावत शुरू हुई तो सोनिया गांधी ने भी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद शरद पवार पार्टी में अलग-थलग पड़ गए। उनका दांव खाली गया। पार्टी ने शरद पवार समेत, पी संगमा और तारीक अनवर को ही बाहर निकाल दिया। बाद में शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई जिसके संस्थापक सदस्य रहे तारीक अनवर।

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