12 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

एनआरआई की याचिका पर खत्म हुआ 158 साल पुराना एडल्टरी कानून

भारत में जिस एडल्टरी कानून को हम पिछले 158 साल से ढो रहे थे उसे सुप्रीम कोर्ट ने एक एनआरआई की याचिका पर हमेशा के लिए खत्म कर दिया।

2 min read
Google source verification

image

Chandra Prakash Chourasia

Sep 27, 2018

supreme court

एनआरआई की याचिका पर खत्म हुआ 158 साल पुराना एडल्टरी कानून

नई दिल्ली।सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में स्त्री-पुरुष विवाहेतर संबंध (एडल्टरी) को अपराध की श्रेणी में रखने वाले 157 साल पुराने कानून को असंवैधानिक करार दिया। फैसला सुनाने वाले एक जज ने कहा कि महिलाओं को जागीर नहीं समझा जा सकता। भारतीय समाज में महिलाओं और पुरूषों के लिए अलग कानून वाले आईपीसी की धारा 497 के खिलाफ केरल मूल के एनआरआई जोसेफ शाइन ने एक साल पहले ही उठाया था। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि एक ही काम के लिए महिलाओं और पुरूषों के लिए अगल अलग मानक गलत है।

जोसेफ शाइन की याचिका में क्या था?

भारत से एक मामले में निर्वासित और अब इटली में बतौर एनआरआई रह रहे जोसेफ ने आठ 2017 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की, जिसे चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने स्वीकार करते हुए खुद सुनवाई करने का फैसला किया। जोसेफ ने कहा था कि अगर यौन संबंध महिला और पुरूष के आपसी सहमति से बनता है तो फिर महिलाओं को सजा से अगल रखना और पुरूष को सजा देने का क्या औचित्य है। याचिका में कहा गया था कि धारा 497 पितृसत्तात्मक समाज पर आधारित प्रावधान है। इसमें महिला के साथ भेदभाव होता है। इस प्रावधान के तहत महिला को पुरुष की संपत्ति माना जाता है, क्योंकि अगर महिला के पति की सहमति मिल जाती है, तो ऐसे संबंध को अपराध नहीं माना जाता।

पांच जजों ने बेंच ने रद्द किया कानून

शुक्रवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने एडल्टरी से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 (व्यभिचार) को असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट ने इसी से संबंधित सीआरपीसी की धारा 198 के एक हिस्से को भी रद्द कर दिया।

फैसले पर कोर्ट की अहम टिप्पणी

फैसला सुनाने वाले एक जज ने कहा कि महिलाओं को जागीर नहीं समझा जा सकता। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता। यह निजता का मामला है। पति, पत्नी का मालिक नहीं है। महिलाओं के साथ पुरूषों के समान ही व्यवहार किया जाना चाहिए।


बड़ी खबरें

View All

विविध भारत

ट्रेंडिंग