
भारतीय समाज ( Indian Society ) में शिक्षकों का अहम स्थान हमेशा से रहा है।
नई दिल्ली। भारत में गुरु-शिष्य परंपरा सदियों से चली आ रही है। भारतीय समाज में इस परंपरा को संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा माना जाता है। ऐसा इसलिए कि गुरु का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व होता है। टीचर्स का समाज में भी एक विशिष्ट स्थान होता है। यही वजह है कि शिक्षकों को सम्मान देने के लिए हर साल पांच सितंबर को शिक्षक दिवस ( Teacher’s Day ) मनाया जाता है।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे। शिक्षा क्षेत्र में उनके महान योगदान को देखते हुए भारत सरकार द्वारा उन्हीं के नाम पर श्रेष्ठ शिक्षकों को हर साल पुरस्कृत किया जाता है।
गुरु-शिष्य परंपरा
लेकिन बदलते दौर में अब गुरु-शिष्य परंपरा में भी बदलाव देखने का मिलने लगा है। अब भारतीय संस्कृति की परंपरा पहली की तरह पवित्र नहीं रही। यह पंरपरा बहुत हद तक भौतिकवाद और सामाजिक विकृति की चपेट में आ गया है। जिसकी वजह से समाज के गुरु-शिष्य परंपरा पर सवाल उठने लगे हैं।
पहले शिक्षक दिवस के अवसर पर स्कूलों में पढ़ाई बंद रहती थी। स्कूलों में उत्सव, शिक्षकों को उनके योगदान के लिए धन्यवाद और संस्मरण की गतिविधियां होती थीं। बच्चे व शिक्षक दोनों ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते थे।
इसलिए बदल गए मायने
हालांकि, ये सिलसिला आज भी जारी है। स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं लेकिन अब इसके मायने बदल गए हैं। यह अब फैशन, कीमती उपहार, दिखावा और निजी संस्थानों में शिक्षण और ज्ञान पर विचार—विमर्श के बदले भारी भरकम खर्च वाले दिखावटी कार्यक्रमों में तब्दील हो गया है।
यही वजह है कि आज तमाम शिक्षक अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो गुरु-शिष्य की परंपरा कहीं न कहीं कलंकित होती दिखाई देने लगी है। आए दिन शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों और विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें सुनने को मिलती हैं।
ज्ञान की खोज का केंद्र नहीं रहे शिक्षण संस्थान
इसके लिए केवल शिक्षकों को ही पूरी तरह से दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। अहम तो यह है कि शिक्षा व्यवस्था ही अब ज्ञान की खोज के बदले सांसारिक सुख सुविधाओं में उलझकर रह गया है। इसे देखकर हमारी संस्कृति की इस अमूल्य गुरु-शिष्य परंपरा पर प्रश्नचिह्न नजर आने लगे हैं। यह चिंता की बात हैं।
NEP 2020 कितना प्रासंगिक
भारत सरकार ने इसमें सुधार लाने के मकसद से नई शिक्षा नीति 2020 लागू की है। लेकिन यह भौतिकता के चपेट में आ चुके गुरु-शिष्य परंपरा को बचा पाएगा या नहीं, इस बात को लेकर दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता है। हालांकि इसमें मौलिका पर जोर देने की बातें शामिल हैं।
Updated on:
04 Sept 2020 11:41 am
Published on:
04 Sept 2020 10:01 am
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