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5000 सालों से जिंदा हैं यह बाबा… जानिए इनके बारे में हैरान कर देने वाली सच्चाई

ऐसा माना जाता है कि महातवार नाम के यह बाबा पिछले 5000 सालों से जिंदा है, जो कि कई बार अपने भक्तों को दर्शन देते हैं...

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Baba

बाबा शब्द सुनकर लोगों के दिमाग में बेशक कुछ और विचार आते हों, लेकिन जिन लोगों का विश्वास इन बाबा या संतों में होता है। वह श्रद्धालु इन्हें भगवान तक का दर्जा दे देते हैं। ऐसे ही एक बाबा हैं जिन्हें विश्व के सबसे बड़े 'योगीराज' कह जाता है। इनके श्रद्धालुओं का मानना है कि यह 5000 सालों से जिंदा हैं। ऐसा कहते हैं संत श्यामाचरण लाहड़ी ने एक बाबा से शिक्षा लेकर योग का मार्ग अपनाया था, जिन्हें अब महावतार बाबा के नाम से जाना जाता है। उनके श्रद्धालु कहते हैं कि संत श्यामाचरण लाहड़ी ने ही गृहस्थ लोगों के बीच क्रियायोग को लोकप्रिय बनाने का काम किया था। उन्होंने साधना के नियमों को इतना सरल बनाया कि लोग अपने काम के साथ-साथ साधना भी कर सकें।

ऐसा कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य, संत श्यामाचरण लाहड़ी और संत कबीर को महावतार बाबा ने ही शिक्षा दी थी। आइए आपको बताते हैं ऐसे ही कुछ तथ्यों के बारे में, जो साबित करते हैं कि वो वाकयी एक दिव्य शक्ति हैं...


दुनिया में सबसे ज़्यादा बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा, 'ऑटोबायोग्राफ़ी ऑफ़ अ योगी' है। जिसके लेखक परमहंस योगानंद ने इस किताब में महावतार बाबा के बारे लिखा है। परमहंस योगानंद के गुरु श्यामाचरण लाहड़ी थे। उन्होंने ही लाहड़ी को क्रियायोग की शिक्षा दी थी, जिसके बारे में गीता में भगवान श्रीकृष्ण और योगसूत्र में ऋषि पतंजलि ने बताया है।

महावतार बाबा को श्यामाचरण लाहड़ी ने अपने पूर्वजन्म का गुरु माना था। ऐसा कहते हैं कि श्यामाचरण लाहड़ी को पहाड़ों में घूमते समय महावतार बाबा दिखाई दिए थे। उन्होंने ही उन्हें क्रियायोग का मार्ग गृहस्थों को दिखाने का आदेश दिया था। महाअवतार बाबा ने ही लाहड़ी को बताया था कि कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया योग का ज्ञान ही क्रियायोग है.

ऐसा बताते हैं कि एक दिन लाहड़ी रेल की पटरी बिछवा रहे थे, तभी उन्हें किसी के पुकारने की आवाज़ आई। जब वह उस आवाज़ के पीछे गए, तो उन्हें महाअवतार बाबा के दर्शन हुए थे। महाअवतार बाबा ने लाहड़ी से कहा था कि उनकी पिछले जन्म की साधना अधूरी रह गई थी, जिसे पूरा करने का समय आ गया है। उन्होंने प्रमाण के तौर पर उन्हें पिछले जन्म का आसन, चटाई और अन्य सामान भी दिखाए थे।

परमहंस योगानन्द ने भी अपनी किताब में भी इसका वर्णन दिया है। जिसमें उन्होंने अपनी इस प्रत्यक्ष भेट के बारे में भी बताया है। श्री युक्तेश्वर गिरि की पुस्तक 'द होली साइंस' में भी उनका प्रत्यक्ष वर्णन है। ऐसा कहा जाता है कि बाबा का नाम इसलिए महावतार पड़ा क्योंकि बाबा ने किसी को भी अपना नाम या पृष्ठभूमि नहीं बताई, इसलिए उन्हें महावतार का नाम दिया गया। लाहिड़ी ने अपनी डायरी में लिखा था कि महावतार बाबाजी भगवान कृष्ण के अवतार थे। उनकी चमत्कारी शक्तियों के बारे में भी कुछ किस्से आज भी याद किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि एक बार उन्होंने पहाड़ से कूद कर जान देने वाले एक शिष्य के क्षत-विक्षत शव को छू कर दोबारा जीवित कर दिया था। ऐसी धारणा है कि बाबाजी अप्रकट और गुप्त रहना पसंद करते हैं, लेकिन कभी-कभी भक्तों और शिष्यों को उनके दर्शन भी होते हैं।