
...जब Ishwar Chandra Vidyasagar ने अपने इकलौते बेटे की शादी विधवा से कराई
नई दिल्ली। प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक और लेखक देश आज ईश्वरचंद्र विद्यासागर (Ishwar Chandra Vidyasagar) की 200वीं जयंती मना रहा है। सादा जीवन, उच्च विचार की विचारधारा के नाम से मशहूर बंगाल के विद्यासागर ने अपना पूरा जीवन महिलाओं के उत्थान में लगा दिया। अगर यूं कहें कि विद्यासागर की वजह से आज महिलाएं कदम से कदम मिलाकर हर काम कर रही हैं तो गलत नहीं होगा।
संस्कृत कॉलेज ने उन्हें 'विद्यासागर' की उपाधि दी
ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म (Ishwar Chandra Vidyasagar Birthday) 26 सितंबर 1820 को बंगाल प्रेसीडेंसी के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। बचपन में उनका नाम ईश्वरचंद्र बन्दोपाध्याय था। संस्कृत और दर्शन के महाज्ञानी माने जाने वाले ईश्वर चंद अपनी बुद्धिमत्ता और ज्ञान के लिए जाने जाते थे। अपने छात्र जीवन में उन्होंने लोगों को इस कदर अपना कायल बना लिया कि संस्कृत कॉलेज ने उन्हें 'विद्यासागर' की उपाधि दे दी।
ईश्वरचंद्र अपनी पढ़ाई स्ट्रीट लाइट्स के नीच बैठकर किया करते थे
ईश्वरचंद्र का शुरुआती जीवन बड़ा कष्टमय रहा। गांव में प्रार्थमिक शिक्षा के बाद वह अपने पिता के साथ कोलकाता चले गए थे। बताया जाता है कि घर में संसाधन न मिलने की वजह से ईश्वरचंद्र अपनी पढ़ाई स्ट्रीट लाइट्स के नीच बैठकर किया करते थे। क्योंकि वह एक मेधावी छात्र थे, इसलिए उनको कई स्कॉलरशिप भी मिल गई थी। विद्यासागर ने 1839 में कानून की पढ़ाई पूरी की और 1841 में फोर्ट विलियम कॉलेज में संस्कृत विभाग के प्रमुख बन गए। हालांकि उस समय उनकी उम्र केवल 21 साल की ही थी। लगभग 12 साल कड़ा अध्ययन करने के बाद कलकत्ता के 'संस्कृत कॉलेज' में उनको संस्कृत के प्रोफेसर के रूप में नौकरी दे दी गई। जिसके बाद उनका वहां तक प्रधानाचार्य बना दिया गया।
पूरे जीवन महिलाओं के सामाजिक उत्थान के लिए काम किया
ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने ऐसे शख्स थे, जिन्होंने पूरे जीवन महिलाओं के सामाजिक उत्थान के लिए काम किया। यह उस समय की बात है, जब महिलाओं का जीवन काफी दयनीय था। खासकर विधवा होने पर उनके साथ बहुत बुरा बरताव किया जाता था। लेकिन विद्यासागर ने विधवाओं के बेहतर जीवन के लिए काम करना शुरू किया।
Updated on:
26 Sept 2020 06:56 pm
Published on:
26 Sept 2020 06:40 pm
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