
गुजरात में सूरत के पास बहू ने दिया सास की अर्थी को कांधा
नई दिल्ली। सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ( Beti Bachao Beti padhao ) के नाम से अभियान चला कर समाज को नई दिशा देने में जुटी है। लगता सरकार के इस अभियान का असर समाज में देखने को भी मिल रहा है। बेटी और बहू को बराबरी दर्जा देने में गुजरात ( Gujrat ) के एक परिवार ने अनूठी मिसाल पेश की है। हालांकि खबर तो दुखद है लेकिन इसमें भी एक अच्छी बात है।
गुजरात के सूरत ( Surat ) के नजदीक अडाजण में एक बहू ने अपनी सास की अर्थी को कंधा दिया है। इस महिला की सास का 100 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया। खास बात यह है कि इस बहू ने अपनी सास की अर्थी को कंधा देकर उनकी अंतिम इच्छा को पूरा किया है।
बेटे की चाहत में देश के कई इलाकों में लड़कियों की हत्या या फिर उनके साथ बुरा व्यवहार की कई खबरें आपने सुनी और शायद देखी भी होंगी लेकिन सूरत के पास एक इलाके में जो हुआ शायद पहले नहीं देखा और सुना होगा।
सूरत के पास अडाजण इलाके में एक बुजुर्ग महिला की इच्छा था कि उसकी अंतिम यात्रा में उसकी बहू भी शामिल हो इतना ही नहीं उसकी अर्थी को कांधा भी दे।
6 मार्च को जब इस महिला का निधन हुआ तो उसकी बहू ने अपनी सास की अंतिम इच्छा का पालन किया। श्मशान जाने वाले लोगों के साथ ही बहू ने सास की अर्थी उठवाई। इतना ही नहीं, मृतका को उनकी पसंद की साड़ी में भी अंतिम विदाई दी गई।
डॉ. बलवंतभाई की 100 वर्षीय मां धनकुंवर बेन के देहांत के बाद डॉ. बलवंतभाई की पत्नी मीनाक्षी बेन ने अपनी सास को अंतिम बिदाई दी। आपको बता दें कि मीनाक्षी बेन पेशे से फाइनेंशियल एडवाइडर हैं।
अंतिम संस्कार में ना हो फिजूल खर्ची
मीनाक्षी ने बताया कि, मेरी सास की इच्छा थी कि अंतिम संस्कार के बाद होने वाले क्रिया-कर्म पर फिजूल खर्ची न हो। उस पैसे से जरूरतमंद की मदद की जाए। हमारे परिवार ने उनकी वो इच्छा भी पूरी की।
मीनाक्षी की मानें तो जैसे उनकी सास ने कहा था परिवार वालों ने सब कुछ वैसा ही किया। उन्होंने यह भी कहा था कि, मेरे अंतिम संस्कार के बाद किसी प्रकार की धार्मिक विधि न की जाए। इसलिए, हम धार्मिक विधि भी नहीं करेंगे।
ससुर के निधन पर नहीं हुई थी विधि
आपको बता दें कि धनकुंवर ने वर्ष 2004 में अपने ससुर की मौत के वक्त भी कोई विधि नहीं की थी।
Published on:
16 Mar 2020 02:40 pm
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