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कजाकिस्तान: परमाणु परीक्षणों के खिलाफ सम्मेलन आज, जुटेंगे दुनिया भर के प्रतिनिधि

1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि को मंजूरी दे दी गई थी और इसके अन्तर्गत सभी परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने का लक्ष्य है।

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अस्ताना। परमाणु परीक्षणों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस के मौके पर कजाकिस्तान बुधवार को विश्व शांति के लिए परमाणु निरस्त्रीकरण और अप्रसार की भूमिका पर केंद्रित एक सम्मेलन आयोजित करेगा। सरकारी प्रतिनिधियों और व्यापक परमाणु परीक्षण-प्रतिबंध संधि संगठन (सीटीबीटीओ) के सदस्य इस कार्यक्रम में भाग लेंगे। इस सम्मलेन का विषय "अतीत को याद रखना और भविष्य का निर्माण" है।

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कजाकिस्तान में उद्घाटन

सीटीबीटीओ के कार्यकारी सचिव लसिना ज़र्बो, कजाकिस्तान के विदेश मंत्री कैरेट अब्द्राखमानोव और कजाकिस्तान सीनेट के अध्यक्ष, कासिम-जोमार्ट टोकैव, सम्मेलन का उदघाटन करेंगे। वहीं कजाकिस्तान के राष्ट्रपति नर्सल्टन नज़रबायव 25 साल पहले सेमिपालिटिंक परमाणु परीक्षण स्थल को बंद करने से प्रेरित एक आधुनिक वास्तुकला प्रतीक 'वाल ऑफ पीस' के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करेंगे। नज़रबायव के नेतृत्व में, कज़ाखस्तान ने सभी सोवियत युगीन परमाणु हथियारों को त्याग दिया है। यही नहीं कजाकिस्तान ने सेमिपालिंस्क परमाणु परीक्षण स्थल को नष्ट कर दिया और परमाणु हथियारों के अप्रसार संधि में शामिल हो गए।

सम्मेलन की पूर्व संध्या पर मंगलवार को एटीओएम परियोजना को समर्पित एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। यह डाक टिकट परमाणु परीक्षणों के कारण मानव और पर्यावरणीय विनाश के प्रति जागरूकता लाने और उनके निषेध के लिए अंतर्राष्ट्रीय अभियान को बढ़ावा देने के लिए मंगलवार को जारी किया गया था।

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अब तक निष्प्रभावी है परमाणु अप्रसार संधियां

बता दें कि 1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि को मंजूरी दे दी गई थी और इसके अन्तर्गत सभी परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने का लक्ष्य है। आज तक, 183 राज्यों द्वारा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं और 166 तक अनुमोदित हैं। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, मिस्र, इज़राइल, ईरान, भारत, पाकिस्तान और उत्तरी कोरिया इस समझौते का हिस्सा नहीं हैं। 6 दिसंबर, 2006 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने और पुष्टि करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालने के इस प्रस्ताव को अपनाया, जिसे 172 देशों द्वारा समर्थित किया गया था। लेकिन उस समय भी इसे यूएसए और उत्तर कोरिया द्वारा ख़ारिज कर दिया गया था।