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अमरीका के लिए तालिबान बना चुनौती, शांति वार्ता को लेकर पाक पर निर्भर

डोनाल्ड ट्रंप से किए वादे को किस हद तक निभा पाएंगे पाक पीएम तालिबान के प्रवक्ता ने कहा अगर निमंत्रण दिया गया तो वह पाकिस्तान जरूर जाएंगे

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डोनाल्ड ट्रंप और इमरान खान

तेहरान। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी अमरीकी यात्रा के दौरान कई वादे किए थे। उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से प्रतिबद्धता जताई थी कि वह अफगानिस्तान में तालिबान के साथ शांति वार्ता को तैयार हैं।

प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि जब वो पाकिस्तान वापस जाएंगे तो सबसे पहले तालिबान से वार्ता की पेशकश रखेंगे। मीडिया के अनुसार तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन का कहना है कि अगर उन्हें पाकिस्तान की तरफ से औपचारिक निमंत्रण दिया गया तो वह पाकिस्तान जरूर जाएंगे।

ऐसे में आशंका लगाई जा रही है कि तालिबान शांति वार्ता की डोर अब पाक के हाथों में है। दरअसल तालिबान को परोक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थन मिलता रहा है। अफगानिस्तान भी इस बात को कई बार दोहरा चुका है कि अगर पाकिस्तान आतंकवाद पर अपनी दोहरी नीति बदले तो यह शांति वार्ता अपने लक्ष्य तक पहुंच सकती है।

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अफगान सरकार से सीधी बातचीत

वहीं दूसरी तरफ तालिबान ने अफगान सरकार से सीधी बातचीत के लिए शर्त रख दी है। उसका कहना है कि जब तक अमरीका की सेना अफगानिस्तान से नहीं जाती तब तक वार्ता मुश्किल होगी। तालिबान अफगान सरकार के साथ किसी भी तरह की सीधी बातचीत नहीं करना चाहता। तालिबान ने अफगान सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री के उस बयान को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अगले दो हफ्तों के भीतर बैठक करने की योजना है।

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मध्यस्थता की भूमिका अदा करे पाकिस्तान

गौरतलब है कि अफगान तालिबान पर पहले से ही कई आरोप लग चुके है कि वह पाक समर्थित है। ऐसे में अमरीका चाहता है कि पाकिस्तान इस वार्ता में मध्यस्थता की भूमिका अदा करे। तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन के अनुसार वो लोग, जिनके पास तालिबान के खिलाफ कोई और सुबूत नहीं हैं, वही उनपर इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगाएंगे। पाक से तालिबान को कोई मदद नहीं मिल रही। वहीं अमरीका के दौरे पर प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि उनसे कुछ माह पहले भी तालिबान का प्रतिनिधि मंडल मिलना चाहता था लेकिन अफगान सरकार की चिंता को देखकर उन्होंने ये वार्ता रद्द कर दी।

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अफगानिस्तान के पास एक मात्र विकल्प

इन परिस्थितियों में अमरीका और अफगानिस्तान के पास एक मात्र विकल्प पाकिस्तान है। वह इस वार्ता की रूपरेखा तय कर सकता है। अमरीका चाहता है कि उसके अफगानिस्तान से निकलने से पहले इस समस्या का हल हो जाए ताकि दोबारा से आतंकवाद से लड़ने के लिए उसे न आने पड़े। इसके साथ अमरीका अफगानिस्तान में अपना प्रभुत्व भी कायम करना चाहता है। अफगान सरकार में तालिबान की भागीदारी को भी वह कम रखना चाहता है। इस तरह से अफगानिस्तान के नियंत्रण की डोर उसके हाथ में ही होगी।

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