
नई दिल्ली।
भारत में बीते तीन महीने से भी अधिक समय से देशभर के किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका यह आंदोलन पिछले साल केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में है। किसानों का कहना है कि ये तीनों कानून उनके हित में नहीं है, इसलिए सरकार इसे तुरंत वापस ले। किसान अपनी मांगों से पीछे हटते नहीं दिख रहे। वहीं, केंद्र सरकार भी अपने फैसले पर अडिग है।
इस बीच इस आंदोलन की गूंज न सिर्फ पूरे भारत में बल्कि, दुनियाभर में सुनाई दे रही है। गायिका रिहाना, पोर्न स्टार मिया खलीफा और स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग समेत तमाम चर्चित शख्सियतों ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है। इसके अलावा, कनाडा और पाकिस्तान समेत कुछ देशों में राजनेताओं ने भी इस मुद्दे पर चर्चा की। वहीं, अब ताजा मामला ब्रिटेन का है।
पिटिशन पर लाखों लोगों ने हस्ताक्षर किए
भारत में चल रहे किसान आंदोलन के मुद्दे पर पिछले दिनों ब्रिटिश संसद में भी बहस हुई। एक पिटिशन पर लाखों लोगों ने हस्ताक्षर किए, जिसके बाद ब्रिटिश संसद में इस मुद्दे को उठाया गया था। इस पर गत सोमवार को बहस हुई। हालांकि, भारत ने इस बहस पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है। लंदन में मौजूद भारतीय उच्चायुक्त ने इस संबंध में बयान भी दिया है। उच्चायुक्त की ओर से कहा गया है कि यह सिर्फ गलत तथ्यों पर आधारित एकतरफा बहस थी।
उच्चायुक्त ने कहा- गलत तथ्यों पर चर्चा हुई
उच्चायुक्त ने अपने बयान में कहा कि ब्रिटिश संसद में बिना तथ्यों के गलत आरोपों के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर चर्चा हुई। यह निंदनीय है। हालांकि, ब्रिटिश सरकार में मंत्री नाइजल एडम्स के मुताबिक, यह भारत का घरेलू मसला है। हालांकि, पिटिशन पर एक लाख से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए, जिसके बाद संसद में बहस करनी पड़ी।
भारत की प्रतिक्रिया पर ब्रिटेन की सफाई
वैसे, यह पहली बार नहीं है जब भारतीय उच्चायुक्त ने ब्रिटेन की ओर से किसानों के आंदोलन का मुद्दा उठाए जाने पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। इससे पहले भी उच्चायुक्त की ओर से स्पष्ट किया जा चुका है कि यह भारत का आंतरिक मामला है। ऐसे में गलत तथ्यों के साथ ब्रिटिश संसद को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। भारतीय उच्चायुक्त ने यह भी स्पष्ट किया कि ब्रिटिश और कई अन्य देशों की मीडिया भारत में चल रहे किसान आंदोलन पर रिपोर्टिंग कर रही है। यह दिखाता है कि भारत में किसानों पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाया जा रहा। दूसरी ओर, ब्रिटिश सरकार की ओर से कहा गया कि भारत और ब्रिटेन की दोस्ती काफी पुरानी है। दोनों ही देश आपसी सहयोग से द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मसलों पर चर्चा के लिए तैयार हैं।
संसद में करीब डेढ़ घंटे तक हुई चर्चा
गौरतलब है कि ब्रिटिश संसद की वेबसाइट पर किसान आंदोलन की चर्चा के लिए एक पिटिशन सबमिट की गई थी। इसमें एक लाख से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए थे। यही वजह रही कि ब्रिटिश संसद को इस मसले पर बहस करनी पड़ी। ब्रिटिश सांसदों की इस चर्चा में कई सांसदों ने हिस्सा लिया। कुछ लोग संसद में थे, जबकि कई सांसद वर्चुअल तरीके से चर्चा में शामिल हुए। यह बहस करीब 90 मिनट तक चली थी। बता दें कि किसान आंदोलन से पहले जम्मू-कश्मीर का मसला भी ब्रिटिश संसद में उठ चुका है।
Updated on:
09 Mar 2021 10:58 am
Published on:
09 Mar 2021 10:15 am
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