
नई दिल्ली । लम्बी जद्दोजहद के बाद आखिर भारत को जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करवाने में कामयाबी मिल गई है। 1 मई 2019 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 प्रस्ताव कमेटी, इसे आमतौर पर प्रतिबंध समिति के नाम से जाना जाता है, उसने मसूद अजहर पर बैन को हरी झंडी दे दी। इसके साथ ही इस मामले पर पिछले चार साल से चली आ रही रार भी खत्म हो गई। बता दें कि भारत को यह कामयाबी चीन के तेवर में बदलाव के बाद नसीब हुई है। यूं तो इस मामले पर अमरीका और फ्रांस भारत के साथ पुरजोर तरीके से खड़े हुए थे लेकिन सबकी निगाहें अंत तक केवल चीन पर थीं। अगर चीन न चाहता तो और उस प्रस्ताव को फिर वीटो कर देता तो मसूद अजहर को एक बार फिर अभयदान मिल जाता। आपको बता दें कि चीन सुरक्षा परिषद में चार बार मासोद अजहर को बचा चुका था। वह पांचवीं बार भी ऐसा कर सकता था लेकिन 1 मई से दो दिन पहले चीन ने अपने रुख में बदलाव के संकेत दिए और अंततः फैसले के दिन उसने मसूद अजहर पर लगे अपने टेक्निकल होल्ड हो हटा लिया । लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब भी सामने है- आखिर इस मामले पर चीन के सुर अचानक क्यों बदले? लम्बे समय तक मसूद का संरक्षक बने हुए चीन ने अपने रुख में यह अचानक बदलाव क्यों किया? क्या है मसूद अजहर पर बैन के पीछे का सच ?
अमरीका का डर
मसूद अजहर मामले पर अमरीकी मीडिया में इस बात की चर्चा है कि चीन ने मसूद अजहर मामले पर अपना वीटो वापस लेने का फैसला अमरीकी दवाब में किया। अमरीका ने इस मामले पर मार्च 2019 से चीन पर भारी दवाब बनाना शुरू किया था। अमरीका ने यह धमकी भी दी थी कि अगर चीन इस मुद्दे पर गंभीर नहीं हुआ तो वह पश्चिमी देशों के साथ मिलकर उस पर कोई बड़ी करवाई कर सकता है। चीन और अमरीका में ट्रेड वार के चलते इस बात की संभावना बनने लगी थी कि जल्द ही अमरीका चीन पर बैन लगा सकता है। असल में अमरीका भी लम्बे समय से चीन के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए किसे बड़े मौके की तलाश में था। मसूद अजहर मामले से अधिक बड़ा मामला इतनी आसानी से रोज-रोज अमरीका के हाथ नहीं लगता। चीन भी यह बात समझने लगा था कि उसके ऊपर एक खूंखार आतंकी को पनाह देने का आरोप लगता जा रहा है। हालांकि चीन राजी जरूर हो गया , लेकिन वह नहीं चाहता कि ऐसे समय में जब भारत में चुनाव हो रहे हों, मसूद अजहर पर कोई फैसला आए। इसका मतलब यह हुआ कि अजहर को आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव को चीन, चुनावों तक टालने की पूरी कोशिश कर रहा था। लेकिन अमरीकी दबाव के कारण चीन की एक न चली। चीन अगर प्रतिबंध कमेटी में इस मुद्दे पर वीटो इस्तेमाल करता तो अमरीका इसे वोटिंग के लिए सुुरक्षा परिषद् में ले जाता। अगर चीन वहां वीटो लगता तो दुनिया के देशों के सामने उसकी भद पिट जाती।
भारत की कूटनीतिक चाल
नई दिल्ली ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के सामने अपने पक्ष को अधिक मजबूत बनाने के लिए डोजियर को प्रसारित किया था। भारत ने यह बताया कि ऐसे अजहर ने देश में एक के बाद कई घटनाओं को अंजाम दिया है। भारत ने दुनिया के सामने इस बात को रखा कि वह भारत में कई आतंकी अपराधों में शामिल रहा। 2001 के संसद हमले से लेकर 2019 में पुलवामा आतंकी हमले तक में वही आरोपी था। बताया जा रहा है असल में जैश-ए-मोहम्मद (जेएम) प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के फैसले को बीजिंग में बेल्ट एंड रोड फोरम की बैठक से ठीक पहले 10 दिन पहले सील कर दिया गया था। यह एक बहुपक्षीय स्तर पर खेला जाने वाला एक खेल था। गिव-एंड-टेक के जटिल समीकरण पर खेले जाने इस खेल में 6 खिलाड़ी शामिल थे। भारत, चीन, अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन और पाकिस्तान। बीजिंग ने दिल्ली को पाकिस्तान की इस मामले पर आने वाली पांच पूर्व स्थितियों से अवगत कराया। चीन के जरिये होने वाली सौदेबाजी में पाकिस्तान की मांग थी कि बैन भारत के बाद इस मामले को और न बढ़ाए, भारत द्विपक्षीय वार्ता शुरू करें; इसे पुलवामा हमले को से न जोड़ें; पाकिस्तान में अन्य व्यक्तियों और समूहों पर बैन के लिए अमरीका को दवाब न डाले और कश्मीर में हिंसा बंद करे। लेकिन पाकिस्तान की पूर्व शर्तें भारत को स्वीकार्य नहीं थीं।
चीन के साथ सौदेबाजी ?
बीजिंग ने इस मुद्दे पर समर्थन की एक बड़ी कीमत मांगी थी। यह कीमत थी, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का समर्थन। भारत ने मई 2017 में बीजिंग में बेल्ट एंड रोड फोरम का विरोध किया था, और इस बात पर जोर दिया कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जो BRI का एक एक अंग है, भारत के क्षेत्रीय संप्रभुता और अखंडता का उल्लंघन करता है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है । भारत चीन की इस कूटनीति के लेन-देन की प्रकृति को जानता था। यह तब देखा गया था जब बीजिंग ने वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) द्वारा पाकिस्तान की "ग्रे लिस्टिंग" पर हस्ताक्षर किए थे। भारत ने इस बार कुछ हासिल करने के लिए कुछ त्यागने की नीति अपनाई। बीआरआई की दूसरी बैठक पर भारत खामोश रहा। नतीजा सबके सामने है।
अमरीका के साथ भारत की डील
22 अप्रैल को अमरीका ने घोषणा की कि वह ईरान से तेल आयात करने के लिए अन्य देशों के साथ भारत को कोई भी छूट देने नहीं जा रहा है। वाशिंगटन ने भारत को बताया कि चूंकि वह आतंकवाद पर दिल्ली की मदद कर रहा था, इसलिए उसे बदले में ईरान के आतंक नेटवर्क पर नकेल कसने में मदद की उम्मीद है । अमरीका चाहता था किभारत ईरान से तेल का आयात बंद कर दे। अमरीका ने चीन एक लिखित वादा भी लिया कि वह अजहर की लिस्टिंग पर आपत्ति नहीं जताएगा। वाशिंगटन ने बीजिंग से कहा कि अगर उसने 1 मई तक लिस्टिंग के लिए प्रतिबद्धता नहीं दी, तो वह UNSC में इस मामले पर खुली चर्चा और मतदान के प्रस्ताव को आगे बढ़ाएगा। माना जा रहा है कि जब विदेश सचिव विजय गोखले 22 अप्रैल को बीजिंग गए, तब इस मामले में सौदा हो चुका था।
मोदी और जिनपिंग की दोस्ती का असर !
मसूद अजहर पर बैन का मामला भारतीय चुनाव से भी जुड़ता जा रहा है। जैसे की उम्मीद थी, चुनाव में मसूद अजहर को लकेर खूब भाषण दिए गए हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इस मामले में जमकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए हैं। जैसे ही अजहर पर बैन का एलान हुआ, पीएम मोदी ने जयपुर में भाषण देते हुए कहा कि अभी आगे आगे देखिये क्या होता है। अगले दिन की रैलियों में बीजेपी ने मसूद अजहर मामले को खूब भुनाया। पीएम मोदी और बीजेपी ने इसे अपनी सफलता बताई और विपक्षी कांग्रेस पर इस मामले में राजनीति करने का आरोप लगाया। वहीं विपक्षी दलों का कहना है कि भाजपा और पीएम मोदी को देश को यह बताना चाहिए कि इस मामले पर चीन के साथ क्या डील हुई है। भाजपा के कुछ नेता इसे मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की दोस्ती का असर बता रहे हैं। कुछ उड़ती खबरों में इस बात का दावा किया जा रहा है कि अंदरखाने चीन ने मोदी को चुणाव में बढ़त दिलाने के लिए अचानक मसूद अजहर मामले में अपना सुर बदल दिया है।
धारणाएं कई हैं, कई सारे मत हैं। लेकिन इनके सबके बीच इतना तो जरूर है कि मसूद चाहे जिस अंकगणित के चलते बैन हुआ हो, उसके ऊपर लगे प्रतिबंधों से आतंकवाद और उनको पनाह देने वालों का रेखागणित जरूर बिगड़ जाएगा।
Updated on:
05 May 2019 08:34 pm
Published on:
05 May 2019 07:04 am
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