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कहां तक जाएगी अमरीका और ईरान की लड़ाई, क्या एक और खाड़ी युद्ध की ओर बढ़ रही है दुनिया

locationनई दिल्लीPublished: May 05, 2019 10:46:43 pm

Submitted by:

Anil Kumar

2015 ईरान परमाण समझौते से अमरीका ने खुद को अलग कर लिया था।
दोनों देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक कट्टरता को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है।
हाल ही अमरीका ने ईरान पर कई पाबंदियां लगाई है।

ईरान और अमरीका

कहां तक जाएगी अमरीका और ईरान की लड़ाई, क्या एक और खाड़ी युद्ध की ओर बढ़ रही है दुनिया

नई दिल्ली। अमरीका ( America ) और ईरान ( Iran ) के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है। दोनों मुल्कों के बीच बढ़ता तनाव दुनिया में शांति बहाली के प्रयासों के लिए ठीक संकेत नहीं है। ईरान और अमरीका के बीच लगातार बढ़ रहे तनाव से ऐसा लग रहा है कि कहीं एक बार फिर से पूरी दुनिया खाड़ी युद्ध ( Gulf War ) में न चला जाए। बहरहाल, हम इस बात को समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर अमरीका और ईरान में दूरियां क्यों बढ़ती जा रही है? अभी हाल के घटनाक्रम को देखें तो कुछ ऐसी घटनाएं घटी है, जिससे दोनों मुल्कों में तनाव काफी बढ़ा है। तनाव की यह प्रक्रिया अमरीका के 2015 ईरान परमाणु समझौते से बाहर निकलने के साथ पहले ही शुरू हो गया था, जो कि बीते महीने अमरीका द्वारा ईरान के रिवोल्युशनरी गार्ड ( IRGC ) को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित करने के बाद से और भी गहरा गया है। यदि 1980 (इराक-ईरान), 1991 (यूएस/यूएन-इराक) और 2003 (यूएस/यूके-इराक) के पिछले तीन खाड़ी युद्ध को देखें तो अमरीका और ईरान के बीच यह टकराव कहीं अधिक विनाशकारी साबित हो सकता है।

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अमरीका का अंहकार

अमरीका चाहता है कि ईरान अपने सभी परमाणु और मिसाइल कार्यकर्मों को बंद कर दे। इसके अलावे अपनी सेना को सीरिया से वापस बुला ले। अमरीका का मानना है कि इराक, अफगानिस्तान ( Afganistan ) और गल्फ में हिजबुल्लाह, हमास, व हाउथिस के साथ नए परमाणु समझौता कर राजनीति अस्थिरता पैदा करना चाहता है। ईरान की नई नीति के पीछे अमरीका के क्षेत्रीय सहयोगी और उनका मूल सिद्धांत है। जो यह चाहता है कि ईरान न केवल अमरीका बल्कि इजरायल व सऊदी अरब के लिए भी आत्मसमर्पित कर दे। इन सबके पीछे जो मूल कारण है वह है कच्चे तेल का निर्यात। दरअसल ईरान तेल उत्पादन में सबसे अव्वल है। तेल निर्यात पर कंट्रोल करने के लिए अमरीका बाकी देशों के साथ मिलकर ईरान पर दबाव बनाना चाहता है। क्योंकि अमरीका खुद को एक सुपर पावर के तौर पर पूरी दुनिया में प्रोजेक्ट करता है और दुनिया की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करता है। ऐसे में ईरान के तेल निर्यात पर पाबंदी नहीं लगाई जाएगी तो अमरीका का वर्चस्व खतरे में पड़ सकता है।

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ईरान का अहंकार

2015 परमाणु समझौते से अमरीका के निकलने के बाद से ईरान अपनी अर्थव्यवस्था और देश के पुनर्निमाण के लिए पश्चिम के साथ संबंध को सुधारने के बजाए आक्रमकता के साथ अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने पर बल दे रहा है। ईरान में अस्थिरता के लिए अमरीका, इजरायल और सउदी अरब को जिम्मेदार मानता है। कुछ वर्ष पहले को देखें तो ईरान अपने पड़ोसी देशों को अस्थिर कर इराक में नूरी अल-मलिकी और सीरिया में बसर-अल-असल को मजबूत करने में ज्यादा रूची रखता था। अब ईरान का ऐसा करना सऊदी अरब, यमन, लेबनान के खिलाफ एक परोक्ष युद्ध की घोषण के बराबर था। साथ ही अरब देशों में विरोधियों को कमजोर करने के लिए IRGC और इसके al-Quds बल जैसे अर्धसैनिक समूहों का इस्तेमाल किया। ईरान की रणनीति है कि अस्थिरता पैदा कर क्षेत्रीय आधिपत्य को आगे बढ़ाया जाए। पर अब बहुत सारे देश ईरान को छोड़कर अमरीका या फिर इजरायल के साथ हो गए हैं।

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धार्मिक कट्टरता

अमरीका और ईरान आपस में आर्थिक, कूटनीतिक और सामरिक साधनों के अलावा धार्मिक कट्टरता को लेकर उलझे हुए हैं। दोनों मुल्क अपनी नीतियों को सही ठहराने के लिए देश-विदेश में अपने समर्थकों को रैलियां कराने के लिए नियुक्त रहे हैं। इसका एक उदाहरण ये है कि राज्य के सचिव माइक पोंपियो ने दावा किया कि इजरायल ( Israel ) को ईरान से बचाने के लिए भगवान ने ट्रंप को भेजा है। क्योंकि अमरीका जेरुशलम में इजरायल का समर्थन करता है तो वहीं ईरान इसका विरोध करता है। ईरान में सबसे अधिक शिया मुसलमानों की आबादी है। इनका मानना है कि इराक और सीरिया में अमरीकी सेना के अत्यार से बचाने के लिए लोगों को बचाने शिया धर्मस्थलों से आते हैं। धर्म के मामले में न केवल अमरीका और ईरान आपस में भिड़े हुए हैं बल्कि सऊदी अरब और इजरायल भी एक दूसरे के साथ उलझे हुए हैं। अमरीका और ईरान के बीच इस धार्मिक कट्टरता को लेकर भी तनाव बढ़ा है।

 

 

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