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बेकाबू हुए आवारा कुत्ते इस जिले में एक दिन में दर्जन भर से अधिक को बनाया शिकार

जनपद के मैनाठेर थाना क्षेत्र का है जहां पर आवारा कुत्ते ने शनिवार को एक दर्जन लोगों को अपना शिकार बनाया।

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बेकाबू हुए आवारा कुत्ते इस जिले में एक दिन में दर्जन भर से अधिक को बनाया शिकार

मुरादाबाद: जनपद के कुंदरकी थाना क्षेत्र में आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है लगभग 2 साल में आवारा कुत्तों के आतंक से लगभग 15 बच्चों की मौत हो चुकी है। लगभग सैकड़ों की तादात में लोग घायल हो चुके हैं। प्रशासन जंगली कुत्तों को पकड़ने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं कर रहा है लोगों में आवारा कुत्तों के आतंक से बेहद ख़ौफ़ है। ताजा मामला मुरादाबाद जनपद के मैनाठेर थाना क्षेत्र का है जहां पर आवारा कुत्ते ने शनिवार को एक दर्जन लोगों को अपना शिकार बनाया। जिन्हें उपचार के लिए 108 की मदद से प्रथमिक स्वास्थ केंद्र कुन्दरकी में भर्ती कराया गया है। जिसमें दो लोगों की हालत गंभीर है जिन्हें उपचार के लिए जिला अस्पताल भेजा जा रहा है। घायलों में महिलाएं बच्चे व पुरुष शामिल हैं।

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इतना है आतंक

यहां बता दें कि कुंदरकी क्षेत्र में आवारा कुत्तों का आतंक पिछले 2 साल से है। कुत्तों के आतंक के चलते लोगों में खौफ पैदा है। लोग अपने घरों से निकलने से भी कतराने लगे हैं लोगों का आरोप है प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। शिकायत के बावजूद भी स्थानीय प्रशासन आवारा कुत्तों से अनजान बना बैठा है। फिलहाल कुत्तों के हमलों से लोगों में खौफ पैदा हो गया है और लोगों में प्रशासन के प्रति गहरा रोष है। कल आवारा कुत्तों के हमले में एक दर्जन से अधिक ग्रामीण घायल हो गए। जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। आलम ये है कि लोगों ने अब अपने बच्चों को बाहर खेलना भी बंद कर दिया है।

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इस वजह से टल गया नसबंदी का फैसला

पिछले दिनों कुत्तों के आतंक के चलते नसबंदी का फैसला लिया गया था। लेकिन ठेकेदार को अनुभव न होने के चलते वन्य जीव संरक्षण विभाग से एन ओ सी नहीं मिली। जिससे फ़िलहाल कुत्तों की नसबंदी का कार्यक्रम टल गया। नगर निगम ने इसके लिए बाकायदा ओपरेशन थिएटर भी तैयार करवा दिया था।

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कोई रास्ता नहीं रहा सूझ

अब न स्थानीय प्रशासन और लोगों को सूझ रहा है कि इन आवारा जंगली कुत्तों से निपटें तो निपटें कैसे। क्यूंकि मारने का आदेश भी प्रशासन नहीं दे सकता। आलम ये है कि बड़ी संख्या में कुत्ता काटे के लोग अस्पताल पहुंचते हैं तो रेबीज के इंजेक्शन भी खत्म हो जाते हैं। जिस कारण कभी कभार लोगों को बाहर से भी इंजेक्शन लगवाना पड़ता है।


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