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पत्रिका अभियान: बिना स्वेटर स्कूल जा रहे बच्चे, अभिभावकों ने गरम कपड़े दिलाने में जताई असमर्थता

मुश्किल से कर पाते हैं दो जून की रोटी का इंतजाम, कहां से दिआएं स्वेटर

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मुरादाबाद/गाजियाबाद. पत्रिका के अभियान में सामने आया था कि जनपद गाजियाबाद और मुरादाबाद के लगभग 2200 स्कूलों के दो लाख 55 हजार छात्रों को अभी तक स्वेटर और ठंड से बचने का सामान भी नहीं मिले हैं। स्कूलों में बच्चों को फर्नीचर के अभाव में टाट के दरे पर बैठकर ठंड में पढ़ना पड़ रहा है। हैरानी इस बात की है कि जो काम करीब दो महीने पहले हो जाना चाहिए था। वह दिसम्बर गुजर जाने के बाद भी नहीं हो पाया है। जिसकी वजह से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीबों के बच्चे सरकार की अनदेखी से ठंड में ठिठुरने को मजबूर हैं। इस मामले में जब इन स्कूलों में जाने वाले बच्चों के अभिभावक से पत्रिका टीम ने बातचीत की तो उनका दर्द छलक कर सामने आ गया। बच्चों के अभिभावकों ने अपनी गरीबी की दसतान बयान करते हुए बच्चों के लिए स्वेटर खरीदने में असमर्थता जताई। वहीं, ये अभिभावक कंपकपाती ठंड को देखते हुए बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित दिखे। इन लोगों ने सरकार से जल्द से जल्द बच्चों को स्वेटर उपलब्ध कराने की अपील की है।

पत्रिका अभियानः आधी ठंड बीत गई सरकारी स्कूलों के बच्चों को नहीं मिले स्वेटर

किसी अनहोनी से पहले सरकार करें मदद
पाकबड़ा निवासी पेशे से मजदूर युनुस कहते हैं कि वो पेशे से मजदूर हैं। किसी तरह बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं, लेकिन बच्चों को स्वेटर दिलाने में असमर्थ हैं। उनका कहना है कि बच्चों को ठंड से बचाने के लिए सरकार को जल्द से जल्द स्वेटर वगैरह बांटना। यही कहानी रईस अहमद की भी है। उनके मुताबिक ज्यादातर सरकारी स्कूल में गरीबों और मजदूरों के बच्चे ही पढ़ते हैं। बच्चों के पास स्वेटर नहीं है, जिससे उन्हें स्कूल भेजने में ठंड में बड़ी दिक्कत हो रही है। हमारे लिए दो जून की रोटी कमाना ही इस ठंड में मुश्किल है। स्वेटर का इंतजाम कहां से करें।

पड़ताल- योगी सरकार के दावों की निकली हवा, ठंड में कांपने को मजबूर बच्चे

गौरतलब है कि मुरादाबाद जनपद में 1200 प्राइमरी और 550 जूनियर हाई स्कूल हैं। इन स्कूलों में बच्चों की संख्या डेढ़ से पौने दो लाख के करीब है। योगी सरकार ने सत्ता में आने के साथ ही सरकारी प्राइमरी स्कूलों के कायाकल्प की बात की थी, जिसमें ड्रेस का डिजाइन बदलने के साथ ही मुफ्त स्कूल बैग, जूते मोज़े, किताबें भी देनी थी। सरकार ने ठंड आते-आते लगभग इसमें से कुछ तो पूरा कर दिया। लेकिन स्वेटर बांटने का काम जो अक्टूबर महीने के अंत तक हो जाना चाहिए था वह दिसम्बर बीत जाने के बाद भी बच्चों को नहीं मिल पाया है।

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सरकार करे मदद तो बदल सकती है किस्मत
विशाल इंदिरापुरम में झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं। कपड़ों पर प्रेस और गाड़ियों को साफ करके वो अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। उन्होंने बताया कि उनका बेटा सूरज प्राइमरी स्कूल में पढ़ता है, लेकिन उसके पास स्वेटर नहीं है। शासन की तरफ से अभी तक इस तरीके की कोई मदद नहीं की गई। अगर थोड़ी बहुत मदद मिल जाए तो यहां पढ़ने वाले बच्चों की किस्मत बदल सकती है।

ऊंची है नौनिहालों की उड़ान
अभिभावक विशाल का मानना है कि प्राइमरी स्कूल में पड़ने के बाद भी उनके बेटे सूरज की उड़ान ऊंची है। वो बड़ा होकर इंजीनियर य़ा पुलिस में जाना चाहता है। लेकिन, उसके पास में सर्दी से बचाने के लिए कपड़े नहीं है। आसपास में रहने वाले लोगों की मदद से बच्चे को गर्म कपड़े मुहैया हो गए हैं। लेकिन, अगर शासन की तऱफ से समय पर कदम उठाया जाता तो सभी बच्चों को सर्दी से राहत मिल सकती थी।


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