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30 सितंबर 1993: आज ही के दिन देश में मची थी भारी तबाही, पलभर में 8000 से ज्यादा लोगों की हो गई थी मौत

Maharashtra Latur Earthquake : आज 32 साल बाद भी लातूर जिले के किल्लारी की वह काली रात भूली नहीं जा सकी है।

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मुंबई

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Dinesh Dubey

Sep 30, 2025

Latur earthquake 1993

30 सितंबर 1993: जब भूकंप से कांप उठी धरती, पलभर में 8000 लोगों की मौत

30 सितंबर 1993 की वह रात महाराष्ट्र के हजारों लोगों के लिए कभी न भूलने वाला दर्द छोड़ गई। घड़ी में सुबह के 3 बजकर 56 मिनट हो रहे थे। सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे। तभी मराठवाडा क्षेत्र में अचानक धरती जोर-जोर से कांपने लगी। कुछ ही पलों में हंसी-खुशी से भरे घर मलबे में बदल गए और जिन गांवों में अभी कुछ घंटे पहले तक गणपति विसर्जन की धूम थी, वहां अब सिर्फ चीख-पुकार और मौत का सन्नाटा गूंज रहा था।

8000 लोगों की मौत, 16000 जख्मी

रिक्टर पैमाने पर 6.4 तीव्रता के इस भूकंप का केंद्र लातूर जिले के किल्लारी गांव में करीब 10 किलोमीटर गहराई पर था। तीन बार आए तेज झटकों ने देखते ही देखते सबकुछ तहस-नहस कर दिया। सड़कें फट गईं, पेड़ धराशायी हो गए और हजारों लोग मलबे में दबकर मौत के मुंह में समा गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, लातूर जिले के किल्लारी और उसके आसपास के क्षेत्रों के लगभग 67 गांव इसकी चपेट में आए।

10 लाख लोग रातों-रात बेघर

यह हादसा सिर्फ किल्लारी तक सीमित नहीं रहा। लातूर और उस्मानाबाद (अब धाराशिव) जिलों के 52 गांव पूरी तरह नष्ट हो गये। औसा और उमरगा तालुके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस आपदा में करीब 8 हजार लोगों की जान गई, जबकि कई रिपोर्टों में यह संख्या और ज्यादा बताई जाती है। 16 हजार से अधिक लोग घायल हुए और हजारों मवेशी भी मारे गए। इस महाप्रलय में हजारों घर उजड़ गए। रातों-रात दस लाख से अधिक लोग बेघर हो गए।

दुर्भाग्य यह था कि यह हादसा अनंत चतुर्दशी के अगली सुबह तड़के हुआ, जब पूरा महाराष्ट्र गणपति बप्पा की विदाई के उत्सव में डूबा हुआ था। किल्लारी और आसपास के गांवों में लोग देर रात तक ढोल-नगाड़ों के बीच नाचते-गाते रहे। थके-हारे लोग रात गहराने पर अपने घरों में लौटे और चैन की नींद सो गए। लेकिन सुबह का सूरज उन्हें देखने नसीब नहीं हुआ।

भूकंप के अगले दिन का दृश्य किसी को भी झकझोर देने वाला था। हर तरफ मलबे के ढेर और रोते-बिलखते लोग। कोई अपने माता-पिता को ढूंढ रहा था, कोई अपने बच्चों को। पर जवाब में सिर्फ गहरी ख़ामोशी ही थी। जिंदा बच गए लोग खुद को असहाय महसूस कर रहे थे, क्योंकि चारों तरफ सिर्फ मौत और तबाही थी। इसमें लगभग 333 मिलियन डॉलर की संपत्ति स्वाहा हो गई थी।

32 साल बाद भी नहीं मिटे जख्म

तबाही के पैमाने को देखते हुए तब महाराष्ट्र सरकार ने बड़े पुनर्निर्माण कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसे MEERP (महाराष्ट्र इमरजेंसी अर्थक्वेक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम) नाम दिया गया। इस कार्यक्रम के तहत 52 पूरी तरह तबाह हो चुके गांवों का पुनर्वास किया गया, 22 गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त गांवों का पुनर्निर्माण किया गया और लगभग 2400 गांवों में मरम्मत का काम किया गया।

यह भूकंप केवल दीवारें और छतें ही नहीं गिरा गया, बल्कि उसने पूरे लातूर और आसपास के जिलों को कभी न भरने वाले गहरे घाव दे गया। लोगों की खुशियां, रिश्ते और उनका अतीत सबकुछ छीन लिया। जो बच्चे उस समय मासूम थे, वे अब प्रौढ़ हो चुके हैं। उन्होंने जिंदगी को नए सिरे से संभाला है, मगर जब भी 30 सितंबर आता है, पुरानी यादें उन्हें फिर रुला जाती हैं।

आज 32 साल बाद भी किल्लारी की वह रात भूली नहीं जा सकी है। हर साल गणेशोत्सव के समय यह दर्द और गहरा हो जाता है। किल्लारी के लोग इस दिन को ‘काला दिन’ के रूप में याद करते हैं। दशकों बीत गए, घाव भी कुछ भर गए, मगर उस काली रात की यादें आज भी जिंदा हैं।