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Coronavirus : 51 से 60 वर्ष वालों की अधिक मौत, मेडिकल ऑफीसर्स बता रहे यह बड़ी वजह…

मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट ( Medical Education Department ) का विश्लेषण ( Analysis ), 11-20 वर्ष के बीच हुईं दो मौत ( Death ), 413 मौतों का विश्लेषण किया गया, उसमें से 124 मौतें इसी आयु वर्ग ( Age Group ) की हुई थी

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Maha Corona Effect: COVID-19 से 51-60 वर्ष वालों की अधिक मौतें, मेडिकल ऑफीसर्स बता रहे यह बड़ी वजह...

Maha Corona Effect: COVID-19 से 51-60 वर्ष वालों की अधिक मौतें, मेडिकल ऑफीसर्स बता रहे यह बड़ी वजह...

रोहित के. तिवारी
मुंबई. बिना अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियों वाले लोग जो कि कोविड-19 के शिकार हो रहे हैं। ऐसे लोगों की हिस्सेदारी राज्य में बढ़ते जा बढ़ती जा रही है। मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट की ओर से 447 मौतों के विश्लेषण से पता चला है कि 26 प्रतिशत पीड़ितों में वायरस के कोई लक्षण नहीं पाए गए। वहीं 2 सप्ताह पहले जब मौत का आंकड़ा 178 था, तब यह आंकडा करीब 19 प्रतिशत था। राज्य के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि कोविड-19 से ज्यादातर मौतें बुजुर्ग लोगों की हो रही हैं, जबकि किशोरों और युवा व वयस्कों के बीच भी मृत्यु दर दर्ज की जा रही है। 11-20 वर्ष में दो मौतें हुई हैं और 10 मौतें 21-30 वर्ष के लोगों में हुई। सबसे खराब 51-60 वर्ष वाले लोगों की स्थिति है। जब 413 मौतों का विश्लेषण किया गया, उसमें से 124 मौतें इसी आयु वर्ग की हुई थी।

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प्लाज्मा थेरेपी वाले व्यक्ति के पहले ही नष्ट हो चुके थे फेफड़े...
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आयुक्त डॉ. अनूप कुमार यादव ने बताया कि राज्य में छोटे लोगों के संक्रमण से मरने वाले मामलों का बारीकी से विश्लेषण किया जा रहा है। कुछ में हमें शराब, गुर्दे समेत अन्य समस्याओं का जानकारी मिली है, लेकिन हमारे ऑडिट बड़े पैमाने पर देखभाल की मांग में हुई देरी की ओर इशारा करते हैं। यादव ने कहा कि कई में देखा गया कि लक्षण की शुरुआत के लगभग 12-13 दिन बाद तक उन्होंने स्वास्थ्य सेवा नहीं ली। वहीं एक 52 वर्षीय व्यक्ति की शहर में प्लाज्मा थेरेपी की गई और उस पहले पहला व्यक्ति की लीलावली अस्पताल में उसकी मौत हो गई। उसने कम से कम 10 दिन अस्पताल आने में देरी की थी और डॉक्टरों ने कहा कि जब वह पहुंचे थे, तब तक उनके फेफड़े नष्ट हो चुके थे।

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समय पर अस्पताल नहीं करते भर्ती...
विदित हो कि कई परिवारों से पता चला कि महत्वपूर्ण समय अधिकतर बर्बाद हो जाता है, क्योंकि मरीजों को कई अस्पताल भर्ती ही नहीं करते। वहीं गांव में रहने वालों की मानें तो एक के भाई ने कहा कि 2 निजी अस्पतालों ने उनके भाई को भर्ती करने से मना कर दिया था, तब जाकर कस्तूरबा अस्पताल ने आखिरकार उनके भाई को भर्ती कर लिया, लेकिन उसमें तीन दिनों में दम तोड़ दिया।

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डर के चलते अस्पताल से दूरी...
चिकित्सा शिक्षा सचिव डॉ. संजय मुखर्जी के अनुसार, कई लोग डॉक्टर को दिखाने में देरी कर रहे हैं, क्योंकि वह चिंतित हैं कि उन्हें कहीं क्वॉरेंटाइन न कर दिया जाए और अगर वह कोविड-19 के संदिग्ध हैं तो उन्हें दूर ले जाया जाएगा। हमें राज्य के कई हिस्सों में से इस तरह की प्रतिक्रिया मिल रही है कि डर लोगों को अस्पतालों से दूर रख रहा है।

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अनुवांशिक प्रवृत्ति की संभावना से इनकार नहीं...
डॉक्टर कुछ स्वस्थ व्यक्तियों को बाकी लोगों की तुलना में अधिक संवेदनशील बनाने की अनुवांशिक प्रवृत्ति की संभावना से भी इनकार नहीं कर रहे हैं। वाडिया अस्पताल के मुख्य इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. मुकेश देसाई ने बताया कि बीमारी की गंभीरता अधिकतर इस बात पर निर्भर करती है कि मरीज वायरस से कैसे प्रतिक्रिया करता है, अनुवांशिक दोस्त लोगों से लोगों को संक्रमण के गंभीर रूप के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है। एक अंतरराष्ट्रीय संघ पहले से ही इसका अध्ययन कर रहा है। उन्होंने कहा कि एक स्वस्थ व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली यदि जीवन शैली विकल्पों के कारण रोग ग्रस्त हो जाती है तो रोग की एक गंभीर अभिव्यक्ति भी देखी जा सकती है।

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