12 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

‘पगड़ी मुक्त’ मुंबई की घोषणा… नए कानून से मकान मालिक या किरायेदार, किसे ज्यादा फायदा?

उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा, मुंबई को पगड़ी सिस्टम से मुक्त करने और पगड़ी इमारतों के न्यायपूर्ण व व्यवस्थित पुनर्विकास के लिए एक अलग नियामक ढांचा तैयार किया जाएगा।

3 min read
Google source verification
Maharashtra Cabinet minister Mahayuti

महाराष्ट्र सरकार का बड़ा फैसला (Photo: IANS)

महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई से पुराने पगड़ी सिस्टम को खत्म करने और इसके लिए एक अलग नियामक ढांचा बनाने का फैसला किया है। इस बदलाव के बाद यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इस कानून से किसे ज्यादा फायदा होगा, किरायेदारों को या मकान मालिकों को?

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने गुरुवार को राज्य विधानसभा में घोषणा की कि पगड़ी सिस्टम से चलने वाली इमारतों के पुनर्विकास के लिए एक नया नियामक ढांचा तैयार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था से किरायेदारों और मकान मालिक दोनों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे और पुराने जर्जर भवनों का पुनर्विकास तेजी से हो सकेगा।

मुंबई जैसे घनी आबादी वाले शहर में यह निर्णय बहुत अहम है, क्योंकि पगड़ी सिस्टम ने दशकों से कानूनी, आर्थिक और सामाजिक समस्याएं खड़ी की हैं। आइए समझते हैं कि यह सिस्टम क्या है और इसमें क्या दिक्कतें रही हैं।

पगड़ी सिस्टम क्या है?

पगड़ी सिस्टम मुंबई में 1940 के दशक से पहले बहुत प्रचलित था और आज भी Rent Control Act के तहत कानूनन मान्य है।

पगड़ी राशि और किरायेदारी अधिकार: इस व्यवस्था में किरायेदार मकान मालिक को एक बड़ी रकम (पगड़ी) देता है। बदले में उसे लगभग आजीवन रहने का अधिकार मिल जाता है।

बहुत कम किराया: पगड़ी किरायेदार वर्षों तक बहुत कम किराया देते हैं। यह किराया आज भी कई जगहों पर 200 रुपये से कम है।

आंशिक मालिकाना हक: कई मामलों में पगड़ी देने वाले को प्रॉपर्टी में थोड़ा हिस्सा भी मिलता था, लेकिन पूरा मालिकाना हक नहीं।

फिर से बेचने का अधिकार: किरायेदार अपने रहने के अधिकार किसी तीसरे व्यक्ति को अधिक कीमत पर बेच सकता था, जिसमें से एक हिस्सा मकान मालिक को मिलता था। नया किरायेदार दोबारा पगड़ी राशि चुकाता था।

नया कानून क्यों जरूरी था?

मकान मालिकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा था क्योकी किराया इतना कम है कि मकान मालिक न तो मरम्मत कर पा रहे थे और न ही टैक्स भर पा रहे थे। इससे पुरानी इमारतें बेहद खस्ताहाल हो गईं। साथ ही इनका पुनर्विकास भी अटका हुआ था, ज्यादातर पगड़ी इमारतें 50 वर्ष से ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं। मकान मालिक कम किराये के कारण मरम्मत में निवेश नहीं करना चाहते। किरायेदारों को इस बात का डर होता है कि पुनर्विकास के बाद उन्हें बराबर का घर वापस नहीं मिलेगा। इस वजह से हजारों प्रोजेक्ट अटके पड़े थे। वहीं पगड़ी लेन-देन अक्सर नकद में होता है, जिससे काला धन के इस्तेमाल की संभावना बहुत अधिक होती थी और सरकार को भी टैक्स का नुकसान उठाना पड़ता था।  

नया नियामक ढांचा क्या बदलेगा?

राज्य सरकार का उद्देश्य पगड़ी सिस्टम में संतुलन लाना और पुनर्विकास (Redevelopment) को गति देना है। इससे किरायेदारों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे। नए कानून के तहत किरायेदारों को पुनर्विकास के बाद मालिकाना हिस्सा या स्पष्ट अधिकार दिए जा सकते हैं। उन्हें फ्लैट मिलने को लेकर कानूनी स्पष्टता होगी। साथ ही मकान मालिकों को उचित मुआवजा भी मिलेगा। नए नियम में मकान मालिकों को बाजार के अनुरूप किराया या पुनर्विकास में उचित हिस्सा मिलने की उम्मीद है। इससे वे भी पुरानी इमारतें तोड़कर नए प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए तैयार होंगे।

किसे ज्यादा फायदा?

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा में कहा कि मुंबई को पगड़ी सिस्टम से मुक्त करने और पगड़ी इमारतों के न्यायपूर्ण व व्यवस्थित पुनर्विकास के लिए एक अलग नियामक ढांचा तैयार किया जाएगा। शिंदे ने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया में किरायेदारों और मकान मालिकों दोनों के अधिकार सुरक्षित रखे जाएंगे।

नया कानून दोनों पक्षों के लिए फायदे वाला बताया जा रहा है, लेकिन अगर देखा जाए तो, किरायेदारों को सबसे बड़ा फायदा यह है कि उनका अधिकार कानूनी रूप से सुरक्षित होगा और उन्हें बेहतर, नया घर मिलेगा। मकान मालिकों को दशकों पुरानी कम-आय वाली प्रॉपर्टी से बड़ी इनकम होगी। असल में यह ढांचा दोनों के बीच वर्षों से चली आ रही खींचतान खत्म कर सकता है और पुनर्विकास को गति दे सकता है। मुंबई महानगर क्षेत्र (MMR) की सैकड़ों पुरानी और जर्जर इमारतों के लिए यह कानून एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है, जिससे शहर में आधुनिक और सुरक्षित आवास उपलब्ध होंगे।