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उद्धव ठाकरे की एक गलती… और बच गई एकनाथ शिंदे की सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी

Supreme Court Judgment on Shiv Sena: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि शिंदे गुट के भरत गोगावाले को शिवसेना का चीफ व्हिप नियुक्त करने का विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर का फैसला अवैध था।

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मुंबई

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Dinesh Dubey

May 11, 2023

SC on Uddhav Thackeray resignation

महंगा पड़ा उद्धव ठाकरे का इस्तीफा!

Maharashtra Political Crisis: सुप्रीम कोर्ट ने आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत शिवसेना के अन्य विधायकों की बगावत के कारण राज्य में उत्पन्न हुए राजनीतिक संकट पर अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को झटका देते हुए एकनाथ शिंदे के पक्ष में फैसला सुनाया। हालांकि शीर्ष कोर्ट ने तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की कार्यशैली पर तल्ख टिप्पणी की। जबकि स्पीकर राहुल नार्वेकर के फैसले पर भी सवाल उठाये। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि यदि उद्धव ठाकरे ने सीएम पद से इस्तीफा नहीं दिया होता तो उन्हें आज राहत मिल सकती थी।

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि हम 16 विधायकों की अयोग्यता का मामला विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) को सौंप रहे हैं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि अगर उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते तो कोर्ट उन्हें बहाल कर सकती थी, लेकिन कोर्ट उनके स्वेच्छा पूर्वक दिए इस्तीफे को रद्द नहीं कर सकती है। यह भी पढ़े-उद्धव ठाकरे ने CM पद छोड़ने से पहले रांकपा-कांग्रेस से नहीं की थी चर्चा, शरद पवार का बड़ा खुलासा



पार्टी के अंदरूनी कलह में राज्यपाल को दखल नहीं देना चाहिए- SC

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाये है। राज्यपाल की कार्यशैली का जिक्र करते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्यपाल ने यह निष्कर्ष निकाल कर गलती की कि उद्धव ठाकरे सदन में बहुमत खो चुके हैं। कोर्ट ने कहा, पार्टी के अंदरूनी कलह पर फ्लोर टेस्ट करना सही नहीं है। किसी पार्टी के आंतरिक विवाद में राज्यपाल को दखल नहीं देना चाहिए। पार्टी का झगड़ा सुलझाना राज्यपाल का काम नहीं है। फ्लोर टेस्ट यानी बहुमत परीक्षण नियमों के आधार पर होना चाहिए। उद्धव को बहुमत परिक्षण के लिए बुलाना सही नहीं था। शिवसेना के विधायकों ने एमवीए से हटने की इच्छा नहीं जताई थी।

राज्यपाल की कार्यशैली पर उठाये सवाल

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास महाविकास अघाडी (MVA) सरकार के विश्वास पर संदेह करने और फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने के लिए कोई तथ्य नहीं है। पीठ ने कहा कि देवेंद्र फडणवीस और निर्दलीय विधायकों ने भी अविश्वास प्रस्ताव नहीं रखा और राज्यपाल के विवेक का प्रयोग कानून के अनुसार नहीं था। कोर्ट ने कहा कि न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंतर-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है।


'उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया'

पीठ ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ताओं ने यथास्थिति बहाल करने का तर्क दिया है, हालांकि, ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया। अगर उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा नहीं दिया होता तो स्थिती कुछ और होती। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे को राहत देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा दे दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बहाल नहीं करने की बात कही और महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर की भूमिका पर सवाल उठाया। संविधान पीठ ने कहा कि शिंदे गुट के भरत गोगावाले को शिवसेना का चीफ व्हिप नियुक्त करने का विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर का फैसला ‘अवैध’ था। हालांकि कोर्ट ने निर्देश दिया कि बागी विधायकों की अयोग्यता पर फैसला स्पीकर ही लेंगे।

7 जजों की बेंच करेगी सुनवाई

इससे पहले अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि नाबाम रेबिया केस की सुनवाई सात जजों की बड़ी बेंच करेगी। हालांकि इस पर फैसला आने में अभी लंबा समय लगेगा। साथ ही महाराष्ट्र मामले में बड़ी बेंच के निर्णय से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

मालूम हो कि शीर्ष कोर्ट ने शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे और अन्य विधायकों के विद्रोह के संबंध में महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट पर अपना फैसला सुनाया, जिसके कारण उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी पिछले साल जून महीने में सरकार गिर गई थी।