हरिराम धेड़ू बचपन में अपने दादा के पास बैठ कर राम नाम का जाप करते थे। वे बताते हैं कि पढाई के साथ ही वे भगवान रामकी भक्ति करते रहे। वर्ष 1980 में एमएससी करने के बाद एयरफोर्स में चयन हो गया। पांच वर्ष एयरफोर्स सेवा की, लेकिन राम की भक्ति के कारण नौकरी में मन नहीं लगा। 1985 में नौकरी छोड़ दी। अधिकारियों ने भी उनकी भक्ति को देख पेंशन शुरू कर दी। हरिराम गांव आकर घर में राम नाम का जाप करने लगे। उनकी भक्ति को देख पत्नी सीता भी उनके साथ राम की भक्ति में लीन हो गई। हरिराम गांव में या आसपास कहीं भी धार्मिक कार्यक्रम होने पर वहां लोगों को राम नाम जाप करने के लिए प्रेरित करते हैं।
पांच वर्ष केवल दूध पर रहे
हरिराम ने भक्ति के लिए वर्ष 2015 में भोजन करना छोड़ दिया। केवल गाय के दूध व जल के सहारे जीवन यापन करने लगे। वर्ष 2020 में कोविड के दौरान बीमार होने पर चिकित्सकों ने भोजन करने की सलाह दी। परिवारजनों के दबाव के कारण अब 24 घंटे में एक बार भोजन करते हैं। उनका कहना है कि राम नाम में इतनी शक्ति है कि खाना अन्दर ही मिल जाता है।
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जमीन व पेंशन की राशि गौवंश के लिए दान
हरिराम खेत से मिलने वाली फसल गौशाला में देते है तथा पेंशन की राशि पक्षियों के लिए दाने के लिए दान कर देते हैं। हर धार्मिक काम में आगे बढकर सहयोग करते हैं।
घर में हर पल रामनाम का स्वर
उनके घर में प्रवेश करने पर राम नाम के जाप के स्वार ही सुनाई देते हैं। घर की हर दीवार पर राम नाम लिखा हुआ है। इन्होंने गांव के हर घर में राम नाम जाप की मशीन भेंट की हुई है। हरिराम कहते है कि राम से बड़ा राम का नाम है।