
Forest department Loans taken from Japan, committees created in papers
नागौर. सांझा वन प्रबंधन की प्रक्रिया से कराए गए पौधरोपण एवं जैव विविधता संरक्षण के कार्यों द्वारा वनाच्छादित क्षेत्र में वृद्धि करने, जैव विविधता को संरक्षित करने तथा वनों पर निर्भर जन समुदाय के आजीविका के अवसरों को बढ़ाने की बजाए वन विभाग के अधिकारी नौकरी बजाने में लगे हुए हैं। राज्य सरकार द्वारा हर वर्ष करोड़ों रुपए का बजट देने के बावजूद प्रदेश में वनाच्छादित क्षेत्र में वृद्धि होने की बजाए कम होती जा रही है।
राज्य सरकार द्वारा राजस्थान वानिकी एवं जैव विविधता परियोजना-2 की क्रियान्विति के लिए जीआईसीए (जापान) से लिए गए ऋण की राशि ने तो विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। सरकार ने इस परियोजना की कुल लागत 1152.53 करोड़ रुपए में से 884.77 करोड़ रुपए का ऋण जीआईसीए (जापान) से वर्ष 2011-12 से 2018-19 तक लेने का निर्णय किया था, इसमें से जनवरी 2017 तक 612.70 करोड़ रुपए का भुगतान जीआईसीए द्वारा किया जा चुका है, जबकि परियोजना में कुल खर्च 655.44 करोड़ रुपए हुए थे।
हाल ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएसओ) विश्व के सबसे ज्यादा 15 प्रदूषित शहरों की सूची जारी की है, जिसमें 14 भारत के और 14 में 2 राजस्थान के हैं।
13.47 करोड़ नागौर में खर्च
राजस्थान वानिकी एवं जैव विविधता परियोजना-2 की क्रियान्विति के लिए नागौर वन विभाग के अधिकारियों ने कुचामन, परबतसर, मकराना, नावां क्षेत्र के गांवों में 25 मंडल प्रबंधन इकाइयों का गठन कर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। पत्रिका द्वारा किए गए सर्वे में सामने आया कि ज्यादातर कमेटियों का गठन कागजों में कर अधिकारियों ने करोड़ों रुपए पूरे कर दिए। जबकि पौधे लगाने के लिए गड्ढ़े खोदने से आगे काम ही नहीं हुआ। कहीं-कहीं तो गड्ढ़े भी नहीं खोदे गए। विभाग द्वारा विधानसभा में दी गई जानकारी में बताया गया कि फरवरी 2017 तक नागौर में 13 करोड़ 47 लाख 21 हजार से अधिक रुपए खर्च कर दिए गए।
जिला मुख्यालय की नर्सरी खोल रही पोल
नागौर जिले में वन विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कार्यशैली का नमूना मानासर स्थित रेंजर कार्यालय की नर्सरी में देखा जा सकता है। जिले में पौधरोपण पर हर वर्ष करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद पिछले 10 सालों में विभाग यहां एक भी पौधा तैयार नहीं कर पाया है। अधिकारियों का एक ही जवाब रहता है कि मीठा पानी नहीं है, जबकि नर्सरी के आसपास सरकारी कार्यालयों एवं लोगों के घरों में नहर का मीठा पानी सप्लाई हो रहा है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अधिकारी किस हद तक लापरवाह बने हुए हैं, जो आज तक पानी का एक कनेक्शन भी नहीं ले पाए।
करोड़ों खर्च करने के बावजूद सुधार नहीं
जापान से वानिकी और जैव विविधता परियोजना के नाम पर करोड़ों रुपए का कर्ज लिया और जनता पर अनावश्यक कर्ज बढ़ाया। क्योंकि योजना के मूल उद्देश्य पर काम ही नहीं हुआ। वन विभाग में हुए इस घोटाले की जांच क लिए मुख्य सचिव व राज्यपाल को पत्र लिखूंगा।
- हनुमान बेनीवाल, विधायक, खींवसर
Published on:
06 May 2018 11:27 am
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