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जन्मदिन पर मौत: केक लेने निकले पति-पत्नी और 5 वर्षीय बेटे की हादसे में मौत, 30 साल बाद हुआ था पुत्र का जन्म

छोटे बेटे की जन्मदिन की खुशी थी और घर में उत्साह का माहौल। रात को बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए केक सहित जरूरी सामान लेने अपने बेटे को लेकर दंपती निकले थे। लेकिन विजय का जन्मदिन ही उसका आखिरी दिन बन गया।

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फोटो पत्रिका

मेड़ता सिटी। छोटे बेटे की जन्मदिन की खुशी थी और घर में उत्साह का माहौल। रात को बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए केक सहित जरूरी सामान लेने अपने बेटे को लेकर दंपती निकले थे। लेकिन विजय का जन्मदिन ही उसका आखिरी दिन बन गया। वहीं, दूसरी ओर ‘मम्मी-पापा तो छोटे भाई के साथ दोपहर में खरीदारी करने गए थे। शाम होने को आई है, अभी तक वापस नहीं लौटे…।’ ऐसा सोचते हुए हादसे से अनजान श्रवणराम की बेटी हर्षिता माता-पिता का इंतजार कर रही थी।

गुरुवार को हुए सड़क हादसे ने एक हंसता-खिलता परिवार उजाड़ दिया। हादसे में जान गंवाने वाला श्रवणराम मुंबई में रहता था और बैग बनाने का काम करता था। दो-तीन दिन पहले ही अपने गांव दूगौर की ढाणी आया था और कुछ दिनों में वापस लौटने वाला था। बेटे विजय के जन्मदिन पर केक सहित पार्टी का सामान और मुंबई जाने के लिए कुछ जरूरी सामान की खरीद के लिए अपनी पत्नी और पुत्र को लेकर रेण के लिए रवाना हुआ था। बेटी हर्षिता को यह कहकर घर पर ही रोक दिया कि हम सामान लेकर कुछ देर में वापस आ रहे हैं। रेण कस्बे से खरीदारी करने के बाद जब श्रवणराम अपनी पत्नी और बेटे के साथ वापस आ रहा था तो सामने से काल बनकर दौड़ती आई सफेद रंग की कार ने पूरा परिवार उजाड़ दिया।

बड़ी मन्नतों के बाद हुआ था विजय

जानकारी अनुसार, मृतक श्रवणराम और शारदा के शादी के 30 साल बाद पुत्र हुआ था। विजय परिवार का इकलौता पुत्र था और महज 5 साल का था। उसके जन्मदिन को लेकर घर में अपार खुशियां थीं। माता-पिता ने सपने देखे होंगे कि पुत्र को बड़ा होकर इतना पढ़ाएंगे, यह बनाएंगे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। बड़ी मन्नतों के बाद मिले पुत्र के साथ माता-पिता भी इस दर्दनाक हादसे में चल बसे

सालों से मुंबई में रह रहा था श्रवणराम

दरअसल, दूगौर की ढाणी का श्रवणराम पिछले कई सालों पहले मुंबई जाकर बस गया था। जो वहीं रह रहा था और कैरी बैग, स्कूल व घरेलू उपयोग में लेने वाले बैग सहित तरह-तरह के बैग बनाने का काम करता था। मेहनत-मजदूरी करके परिवार चलाने वाला ना तो श्रवणराम रहा और ना ही परिवार। अब हर्षिता की जिम्मेदारी अन्य परिजनों पर आ गई है।