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Video : पिता देश की सेवा करते हुए हो गए शहीद, अब बेटा बना असिस्टेंट कमांडेंट

करगिल युद्ध में शहीद हुए थे इंदास के प्रभुराम चोटिया- शहीद प्रभुराम चोटिया का बेटा दयाल बना सहायक कमांडेंट

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Martyr's son became assistant commandant, will serve the country

Martyr's son became assistant commandant, will serve the country

नागौर. नागौर शहर के निकटवर्ती इंदास गांव के शहीद प्रभुराम चोटिया के पुत्र दयालराम चोटिया ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के असिस्टेंट कमांडेंट की परीक्षा में सम्पूर्ण भारत में 38वीं रैंक प्राप्त की है। परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद शनिवार को नागौर पहुंचने पर ग्रामीणों ने दयाल चोटिया का स्वागत कर जुलूस निकाला और गांव में बने उनके पिता शहीद स्मारक पहुंचे, जहां दयाल ने अपने पिता को नमन किया। करगिल युद्ध में शहीद होने वाले प्रभुराम चोटिया के परिवार ने कई विषम परिस्थितियों का सामना किया। जब प्रभुराम शहीद हुए, उस समय दयाल की उम्र मात्र 3 साल थी, जबकि दयाल की छोटी बहन निरमा एक-डेढ़ साल की थी।

प्रभुराम जब शहीद हुए, तब वीरांगना रूकीदेवी के लिए वो समय किसी पहाड़ टूटने से कम नहीं था, छोटे-छोटे बच्चे होने के बावजूद वीरांगना रुकीदेवी ने हिम्मत रखी और खुद खेती करके बच्चों को पढ़ाया और कामयाब बनाया। आज तीनों बच्चे सरकारी सेवा में हैं। सबसे बड़ी बेटी मंजू नर्सिंग ऑफिसर है तो सबसे छोटी निरमा शिक्षा विभाग में एलडीसी लग चुकी है। वहीं दयाल ने असिस्टेंट कमांडेंट की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। शनिवार को गांव पहुंचने पर पत्रिका ने दयाल से बात की।

पत्रिका : सेना में जाने की प्रेरणा कहां से मिली?
दयालराम : मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा मेरे पिता हैं, जिन्होंने देश की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। मेरी मम्मी ने भी मुझे प्रेरित किया। परिवार वालों का पूरा सहयोग मिला।

पत्रिका : अपनी सफलता के बारे में बताएं। कितनी तैयारी करनी पड़ी?
दयालराम - स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद मैं कॉलेज शिक्षा के लिए दिल्ली चला गया, जहां हिन्दू कॉलेज से मैंने वर्ष 2017 में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद आईएएस की तैयारी में जुट गया। इस बार मैंने आईएएस का इंटरव्यू भी दिया था, लेकिन सफल नहीं हो पाया। सहायक कमांडेंट की परीक्षा में मेरे 38वीं रैंक आई है।

पत्रिका : पिता प्रभुराम चोटिया जब शहीद हुए, उस समय आप बहुत छोटे थे, शिक्षा-दीक्षा कैसे हुई?
दयालराम : हां, मैं उस समय मात्र तीन साल का था और मेरी छोटी बहन डेढ़ साल की थी। मेरी मम्मी ने विषम परिस्थितियों में हमें पढ़ाया। चौथी कक्षा के बाद मैं गोटन के एलके सिंघानिया स्कूल में पढ़ा। उसके बाद करीब आठ साल तक दिल्ली में रहकर पढ़ाई की। अब मैं भी पिता की तरह केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल में शामिल होकर देश सेवा कर सकूंगा।

राजस्थान पत्रिका ने दिया था सम्बल
गौरतलब है कि करगिल करगिल युद्ध में शहीद होने वाले सैनिकों के परिवारजनों को सम्बल देने के लिए राजस्थान पत्रिका ने एक मुहिम चलाकर धन जुटाया और शहीदों के परिवार को वितरित किया। शहीद चोटिया के परिवार को भी सहायता दी गई, उससे परिवार को काफी सम्बल मिला।