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हर आहट पर लगता ‘पापा’ आए गए, रोते-रोते सूख आए मासूमों के आंसू, यह कहानी नहीं दिल चीर देने वाला है दर्द

सड़क पर वाहन चलाने में एक गलती और किसी घर का भविष्य उजड़ गया’ किसी खबर की भूमिका नहीं, नागौर जिले की सड़क दुर्घटनाओं की कड़वी हकीकत है। सड़क पर बेपरवाही ने ऐसे-ऐसे घर उजड़े हैं, जिनकी मार्मिक कहानी सुनकर मजबूत से मजबूत दिल भी दरक जाए।

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फोटो पत्रिका

नागौर। सड़क पर वाहन चलाने में एक गलती और किसी घर का भविष्य उजड़ गया’ किसी खबर की भूमिका नहीं, नागौर जिले की सड़क दुर्घटनाओं की कड़वी हकीकत है। सड़क पर बेपरवाही ने ऐसे-ऐसे घर उजड़े हैं, जिनकी मार्मिक कहानी सुनकर मजबूत से मजबूत दिल भी दरक जाए। कोई सुबह रोजमर्रा की तरह घर से निकला था, किसी ने बच्चों को मुस्कराकर स्कूल भेजा था, किसी ने खेत-खलिहान को देख लेने का वादा किया था…पर शाम लौटते-लौटते सबकुछ बदल चुका था। दरवाजे पर दस्तक के बजाय खबर आई, हादसा हो गया। उसी एक पल ने घर की रौनक, उम्मीदें और आने वाला कल, सब छीन लिया।

नागौर जिले में हर साल होने वाले 350 से अधिक सड़क हादसे और उनमें 250 से 300 मौतें सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि उन परिवारों का इतिहास हैं, जिनकी जिंदगी सड़क पर किसी की लापरवाही ने उधेड़कर रख दी। तेज रफ्तार में बहा होश, गलत ओवरटेक का जोखिम, नशे में वाहन चलाने की लापरवाही, मोबाइल पर नजर रखते हुए सड़क को भूल जाना, या सिर पर सुरक्षा का अभाव… इन छोटी-सी गलतियों ने कितने ही घरों को जिंदगी भर का गम दे दिया। हादसों के पीछे दबे दर्द को समझने के लिए पत्रिका ने कुछ परिवारों से बात की, जो हर सुबह तस्वीरों को प्रणाम करके दिन शुरू करते हैं और हर रात सवालों से जूझते हैं…काश उस दिन थोड़ी सावधानी बरती जाती तो…जिंदगी कितनी खुशहाल होती।

बीमार पिता का सहारा : ‘बुझ गया घर का चिराग’

कुछ दिन पहले तक इस घर में हंसी सुनाई देती थीं। लेकिन आज… दरवाजे की दहलीज में जैसे मौन पसरा है। गंभीर बीमारी से जूझ रहे शिक्षक कैलाश काकड़ के पुत्र हेमंत की गत 23 सितम्बर को सड़क हादसे में गंभीर घायल होने के बाद मौत हो गई। किसी और की गलती से हुए इस हादसे ने पूरे परिवार को आर्थिक व मानसिक संकट में धकेल दिया। बीमार पिता की आंखों में अब इलाज से ज्यादा बेटे की यादों का दर्द है। मां की आंखों में हर सुबह वही सवाल है, ‘अब घर कैसे चलेगा…? हमें कौन संभालेगा।’ हेमंत की कुछ समय पहले ही शादी हुई थी। एक लापरवाही, किसी अनजान की तेज रफ्तार… और परिवार का भविष्य अचानक अधर में डूब गया।

जिंदगी भर की पीड़ा: घर का ‘मुखिया’ चला गया

यह कहानी दिल को चीर देती है। पिछले सप्ताह ही चार मासूम बच्चों के पिता प्रहलादराम मेघवाल की सड़क हादसे में जान चली गई। प्रहलादराम… जो मजदूरी करके परिवार चलाता था। चार छोटे बच्चे और पत्नी, जिनका भविष्य उन्हीं के पसीने से चलता था। लेकिन एक दिन सार्वजनिक विभाग के अधिशाषी अभियंता की कार ने टक्कर मार दी और हादसे में गंभीर घायल प्रहलाद की उपचार के दौरान मौत हो गई। अब पीछे उसकी पत्नी व छोटे-छोटे बच्चे बचे हैं, जिनके लिए जीवन बसर करना किसी पहाड़ को चीरने से कम नहीं है। घर की जिम्मेदारियों का बोझ अब उन कंधों पर है, जो खुद दूसरों पर आश्रित थे। अब यह परिवार सिर्फ सवालों में जी रहा है - ‘हमारा कसूर क्या था?’ ‘बच्चों का क्या भविष्य होगा?’

कौन संभालेगा : और उठ गया मां का सिर से साया

2016 का वह दिन आज भी चतुर्भुज रांकावत के परिवार को रुला देता है। उनकी पत्नी वेद कुमारी, जो निजी स्कूल में शिक्षिका थीं, रोज की तरह सुरक्षित तरीके से रास्ते पर चल रही थीं। न तेज रफ्तार, न कोई गलती। फिर भी सामने से काल बनकर आए डम्पर चालक की लापरवाही ने उनकी जान ले ली। पीछे रह गए दो बच्चे और पिता। बड़ा बेटा हादसे से 15 मिनट पहले बीकानेर जाने के लिए बस में बैठा, ताकि वहां पीएमटी की तैयारी कर सके। गोगेलाव पहुंचा ही था कि फोन आया : ‘मां अब नहीं रहीं…’ और बस, उसके सपनों की राह वहीं रुक गई। उस हादसे के बाद मानसिक रूप से इतना टूट गया कि पीएमटी की तैयारी छोड़नी पड़ी।

सड़क सुरक्षा : नियमों की किताब नहीं, जीवन का आधार

हेलमेट और सीट बेल्ट सिर्फ पहनने की चीजें नहीं, जीवन का कवच हैं

रफ्तार नियंत्रित होनी चाहिए, हर किसी का घर पर इंतजार है

सड़क पर नियम पालन किसी संभावित हादसे को टाल सकते है

आपकी सावधानी किसी घर की रोशनी बनाए रख सकती है।

कभी-कभी सिर्फ दो सेकंड की सतर्कता, पूरी जिंदगी बचा लेती है।