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वीडियो : कचरे से कमा रहा देश का सबसे साफ शहर इंदौर, यहां निस्तारण भी नहीं हो रहा

नागौर को इंदौर से सीखने की जरूरत, नागौर में तीन साल कचरा जला कर प्रदूषण कर रहे, सूखा व गीला कचरा अलग करना तो दूर, कचरा परिवहन करने वाले ढंकते भी नहीं

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नागौर. देश का सबसे शहर इंदौर जिस जागरुकता के चलते स्वच्छता में लगातार नम्बर वन आ रहा है, उसी इंदौर ने इकोनॉमी का नया मॉडल खड़ा किया है। ये मॉडल है ग्रीन इकोनॉमी का। शहरवासियों की तरह शहर के जिम्मेदारों ने रोजाना निकलने वाली गंदगी को खत्म कर उससे पैसा कमाने का विकल्प खोज निकाला है। इंदौर सोलर, ई-व्हीकल जैसे वैकल्पिक ईंधन का इस्तेमाल कर पैसों की बचत कर रहा है। इससे न सिर्फ पर्यावरण को बचाया जा रहा है, बल्कि बचत का नया मॉडल भी तैयार कर लिया है। मतलब सोच स्पष्ट है कि कमाई का साधन हर स्तर पर तलाशा जाए और जो पैसा आए या बचे, उससे जीवन और खुशहाल बनाए जाए। दूसरी तरफ नागौर शहर में कचरे से कमाई तो दूर निस्तारण भी नहीं हो रहा है। नगर परिषद अधिकारियों के अनुसार नागौर शहर में रोजाना 40 टन यानी साल में 14,600 टन कचरा निकलता है, जिस पर सालाना करीब 6 करोड़ रुपए वर्तमान में खर्च किए जा रहे हैं। इसके बावजूद केवल कचरे का उठाव हो रहा है, यानी निस्तारण नहीं हो रहा। ऐसे में इंदौर की तरह नागौर में भी ऐसा सिस्टम तैयार करने की आवश्यकता है, जिससे कचरे का निस्तारण भी हो जाए और कमाई भी। हालांकि शहर के कचरे के निस्तारण के लिए आधुनिक तकनीकी वाला आरडीएफ व कंपोस्ट प्लांट बनाया जा रहा है, लेकिन उसके लिए नागरिकों को भी जागरूक होना पड़ेगा।

कचरा तैयार करता है 5.75 करोड़

इंदौर शहर की लगभग 30 लाख की आबादी से रोजाना 1300 मीट्रिक टन कचरा निकलता है। इस कचरे को खत्म करने के लिए दुनियाभर में भारी भरकम राशि खर्च की जाती है। इंदौर में भी पहले इस कचरे को खत्म करने पर हर साल लगभग 80 करोड़ का खर्च आता था, लेकिन अब यह कचरा ही आय का साधन बन गया है। गीले और सूखे कचरे के निपटान से ही हर साल नगर निगम को लगभग 5.33 करोड़ रुपए की आय हो रही है। इसके साथ ही कचरा खत्म होने करने के ग्रीन तरीकों के कारण ही इंदौर को कार्बन क्रेडिट भी मिल रहे हैं। कचरे को खत्म कर ही इंदौर कुल मिलाकर 5.75 करोड़ से ज्यादा की आय अर्जित कर रहा है।

गीले व सूखे कचरे से कमा रहा इंदौर

गीला कचरा –

– 550 मीट्रिक टन बायो सीएनजी प्लांट में एक दिन 467.67 टन कचरे का निपटान : 2.52 करोड़ की सालाना आय

– 15 मीट्रिक टन बायो मीथेनाइजेशन प्लांट में एक दिन में 15 टन कचरा निपटान : 96 हजार रुपए सालाना आय

सूखा कचरा

– 400 टन कैपेसिटी के एमआरएफ 1 में एक दिन में 375.2 टन कचरे का निपटान होता है, जिससे सालाना 1.67 करोड़ की आय होती है।

– 100 टन कैपेसिटी के एमआरएफ 2 में एक दिन में 72.1 टन कचरे का निपटान होता है, जिससे 18 लाख की सालाना आय होती है।

इंदौर की कचरे से कमाई

– 5.33 करोड़ सालाना आय कचरे से होती है।

– 33 करोड़ सालाना आय सीएनजी, पीएनजी, एलपीजी उपयोग से होती है।

50 करोड़ सालाना आय ई-व्हीकल से होती है।

10.95 करोड़ सालाना आय सोलर से होती है।

ग्रीन इकोनॉमी से रोजगार के नए अवसर

इंदौर में ग्रीन इकोनॉमी से न सिर्फ आमदनी हो रही है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी बन रहे हैं। कचरा निपटान में ही लगभग 2 हजार लोगों को काम मिल है। इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीदी-बिक्री, मार्केटिंग के साथ सोलर इंडस्ट्री में पैनल लगाने वालों से लेकर इसकी मार्केटिंग व अन्य कामों में 4 हजार से ज्यादा रोजगार मिला है। पीएनजी, सीएनजी स्टेशन आदि में एक हजार लोग काम कर रहे हैं।

20 साल तक प्लांट का संचालन करेगा ठेकेदार

नगर परिषद के सहायक अभियंता मनीष बिजारणिया ने बताया कि कचरा निस्तारण के लिए बालवा रोड डम्पिंग यार्ड में डेढ़ हैक्टेयर जमीन पर आरडीएफ व कंपोस्ट प्लांट तैयार हो रहा है। इसके टेंडर अगस्त 2023 में डीएलबी ने जारी किए और 26 अक्टूबर 2023 को नगर परिषद ने ठेकेदार को प्लांट बनाने के लिए डेढ़ हैक्टेयर जमीन दे दी, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सीटीई 3 मई 2024 में जारी हो पाई। इसके बाद ठेकेदार ने काम शुरू किया है। ठेकेदार को मार्च 2025 तक प्लांट का काम पूरा करना है। प्लांट शुरू होने के बाद ठेकेदार को आगामी 20 साल तक रखरखाव व संचालन करना होगा। इस प्लांट में करीब 5 करोड़ का खर्च आएगा, जिसमें कुछ हिस्सा सरकार देगी और कुछ ठेकेदार अपनी ओर से लगाएगा और बाद में प्लांट से निकलने वाले आरडीएफ व कंपोस्ट को बेचकर वसूली करेगा।

जानिए , क्या है आरडीएफ और कंपोस्ट प्लांट

आरडीएफ यानी अपशिष्ट व्युत्पन्न ईंधन, जो घरेलू और व्यावसायिक कचरे से बनाया जाता है। इसमें बायोडिग्रेडेबल सामग्री और प्लास्टिक होता है। कांच और धातु जैसी गैर-दहनशील सामग्री को हटाकर बाकी सामग्री को काटा जाता है। आरडीएफ को सीमेंट एजेंसियों में भेजा जाता है।

कंपोस्टिंग, इसमें पौधों और जानवरों के अपशिष्ट पदार्थों को सड़ाकर खाद में बदलने की प्रक्रिया है। कंपोस्ट में पौधों की वृद्धि के लिए जरूरी पोषक तत्व होते हैं। कंपोस्ट को मिट्टी में मिलाने से पौधों को पोषण मिलता है।

हमें खुद को बदलना होगा

विशेषज्ञों का कहना है कि इंदौर में गीले व सूखे कचरे को अलग करने में सबसे बड़ा योगदान वहां के लोगों का है। नागौर में गीले व सूखे कचरे को अलग-अलग करने की योजना पहले बनी थी, लेकिन सफल नहीं हो पाए। यदि प्लांट ठेकेदार को गीला व सूखा कचरा मिलेगा तो वह बेहतर तरीके से काम कर पाएगा। अन्यथा पूर्व की भांति योजना पर पानी फिर जाएगा। शहरवासियों को न केवल गीले व सूखे कचरे को अलग-अलग करना होगा, बल्कि कचरा संग्रहण के लिए आने वाले ऑटो टिपर में भी उसी अनुरूप डालना होगा।

नया प्लांट बना रहे हैं

शहर के कचरे का निस्तारण करने के लिए बालवा रोड स्थित डम्पिंग यार्ड में नया प्लांट बनवा रहे हैं। इसके लिए जयपुर से ही टेंडर किए गए हैं। नया प्लांट आधुनिक तकनीक पर आधारित है, जिससे उम्मीद है कि कचरे का उचित निस्तारण हो पाएगा।

– रमेश रिणवा, आयुक्त, नगर परिषद, नागौर