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बस्तर में स्वास्थ्य कर्मियों का सामूहिक आंदोलन, आज से शाम की OPD सेवाएं बंद, जानें वजह…

OPD services closed: बस्तर संभाग में नक्सल प्रोत्साहन भत्ता न मिलने से डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों ने आंदोलन शुरू कर दिया है।

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बस्तर संभाग में ओपीडी सेवाएं बंद (photo source- Patrika)

बस्तर संभाग में ओपीडी सेवाएं बंद (photo source- Patrika)

OPD services closed: बस्तर संभाग के स्वास्थ्य विभाग में लंबे समय से लंबित नक्सल प्रोत्साहन भत्ता न मिलने के कारण डॉक्टरों और सभी स्वास्थ्य कर्मियों ने सामूहिक रूप से आंदोलन शुरू कर दिया है। इसके तहत शुक्रवार 5 दिसंबर की शाम से एक सप्ताह तक समूचे बस्तर संभाग में सभी सरकारी अस्पतालों की शाम की ओपीडी सेवाएं बंद रहेंगी।

OPD services closed: 12 दिसंबर तक अंतिम समय सीमा

यह निर्णय नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, कोण्डागांव और जगदलपुर के जिला अस्पताल, सीएससी और पीएचसी स्तर के डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ, आरएमए, एएनएम तथा अन्य कर्मचारियों की संयुक्त बैठक में लिया गया। 12 दिसंबर तक अंतिम समय सीमा: डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि ‘‘यदि 12 दिसंबर तक लंबित राशि का भुगतान नहीं किया गया, तो 13 दिसंबर से बस्तर संभाग में पूर्ण ओपीडी बंद कर दी जाएगी।’’ उन्होंने स्पष्ट किया कि आंदोलन के दौरान आपातकालीन सेवाएँ सामान्य रूप से संचालित होती रहेंगी, ताकि जनता को परेशानी न हो।

सम्मान और मनोबल की लड़ाई

स्वास्थ्यकर्मियों का कहना है कि पुलिस विभाग को नक्सल क्षेत्र प्रोत्साहन राशि समय पर दी जाती है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की लगातार उपेक्षा की जा रही है, जबकि दोनों ही विभाग समान जोखिम में काम करते हैं। इस मुद्दे को लेकर बस्तर के सभी जिलों ने एकजुट होकर इसे स्वास्थ्य सेवाओं के इतिहास का सबसे बड़ा सामूहिक आंदोलन बताया है।

11 महीनों से भुगतान लंबित

OPD services closed: डॉक्टरों ने बताया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जोखिम के बीच लगातार सेवाएँ देने के बावजूद पिछले 11 महीनों से प्रोत्साहन भत्ता जारी नहीं किया गया। कई बार पत्राचार, बैठकों और व्यक्तिगत अनुरोधों के बावजूद सरकार से केवल आश्वासन ही मिला। 1 दिसंबर तक भुगतान करने का स्पष्ट वादा भी पूरा नहीं हुआ।

मंत्रियों और अधिकारियों से आश्वासन, लेकिन कार्रवाई नहीं

स्वास्थ्य कर्मियों के प्रतिनिधियों ने बताया कि कैबिनेट मंत्री केदार कश्यप, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल, स्वास्थ्य सचिव अमित कटारिया और कमिश्नर डॉ. प्रियंका जे. शुक्ला द्वारा कई बार आश्वासन दिया गया, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।