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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: सुपर वीडियो को पहचानना अधिक मुश्किल है, प्रत्याशी भी ले रहे इसकी मदद

Artifical Intelligence : चेन्नई स्थित मुओनियम एआई के फाउंडर सेंथिल नयगाम का कहना है कि पिछले एक साल में डीपफेक को लेकर जागरूकता आई है। कुछ लोग अब इसे देखकर ही समझ जाते हैं। पढ़िए हेमंत पाण्डेय की विशेष रिपोर्ट...

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Artifical Intelligence : अभी तक एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से किसी व्यक्ति की तरह उसका कृत्रिम वीडियो (डीपफेक) बनाने की चर्चा हो रही थी लेकिन अब जैसे-जैसे एआई एडवांस हो रहा है, डीपफेक से आगे सुपर वीडियो बनाया जा रहा है। इस चुनाव में प्रत्याशी सुपर वीडियो बनवाकर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं। डीपफेक लगभग रियल होता है। इसमें व्यक्ति का चेहरा, हाव-भाव और आवाज भी हूबहू जैसी होती है पर इसे अब पहचाना जाने लगा है। सुपर वीडियो को पहचानना अधिक मुश्किल है। इसे अधिक बारीकी से ज्यादा रियल बनाया जा रहा है ताकि कृत्रिम होने का पता ही नहीं चले। चेन्नई स्थित मुओनियम एआई के फाउंडर सेंथिल नयगाम का कहना है कि पिछले एक साल में डीपफेक को लेकर जागरूकता आई है। कुछ लोग अब इसे देखकर ही समझ जाते हैं। इसलिए एआई कंपनियां अब सुपर वीडियो बनाने लगी हैं। इसे भी एआई से बनाया जाता है लेकिन पहचानना मुश्किल है।


कंटेंट फैक्ट करें चेक

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जो भी कंटेंट अविश्वसनीय लगे तो उसका फैक्ट चेक करें। जरूरी नहीं कि उसे किसी सॉफ्टवेयर, टूल्स या ऐप की मदद से ही परखें। पहले खुद का दिमाग दौड़ाएं। हर फेक कंटेंट को एक उद्देश्य के साथ वायरल किया जाता है। जैसे अभी चुनाव है तो बड़े-बड़े नेताओं के कृत्रिम वीडियो वायरल हो रहे हैं। उत्तर-पश्चिम के नेताओं का वीडियो तमिल-कन्नड़ आदि भाषाओं या गैर हिंदी भाषी नेताओं का कंटेंट हिंदी में दिखाया जा रहा है। ऐसे में पहले खुद सोचें कि उस नेता को वह भाषा आती है क्या? तो जवाब मिलेगा नहीं। तो वीडियो फेक है। इसमें पहनाना और हावभाव पर भी गौर करें।

वीडियो और टेक्स्ट कंटेंट को ऑनलाइन भी करें सर्च

सेंथिल का कहना है कि अविश्वसनीय लगने वाले वीडियो, ऑडियो और टेक्स्ट कंटेंट को ऑनलाइन भी सर्च करें। अगर वह कंटेंट 2-3 न्यूज की वेबसाइट पर है तो सही हो सकता है। अगर न्यूज साइट पर नहीं तो फेक मानें। जब तक आप कंटेंट को अच्छे से देख या पढ़ नहीं लें तब तक फॉरवर्ड नहीं करें। अधिकतर लोग शुरू के कुछ सेकंड देखने या एक पैरा पढऩे के बाद ही फॉरवर्ड कर देते हैं। इससे फेक कंटेंट तेजी से फैल रहा है।

यूथ भी फैला रहे हैं ज्यादा फेक न्यूज

सेंथिल का कहना है कि यूथ फेक न्यूज को लेकर जागरूक हैं लेकिन उनमें धैर्य की कमी से फेक न्यूज फैल रही है। यूथ 30-60 सेकंड से अधिक का वीडियो देखना पसंद नहीं कर रहा है। उनमें पहले शेयर करने की भी होड़ है। ऐसे में जिन्हें फेक न्यूज फैलाना होता है वे शुरू के कंटेंट सामान्य रखते हैं लेकिन बाद में अपने एजेंडे वाला कंटेंट लगा देते हैं। यूथ शुरू का कुछ कंटेंट देखने-सुनने के बाद उसे शेयर कर देता है। ऐसा कभी नहीं करना चाहिए।

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