न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ ने गुजरात सरकार की याचिका पर नारायण साई को हाई कोर्ट की ओर से दी गई फर्लो को रद्द कर दिया है। यह भी पढ़ेँः
Delhi: हाईकोर्ट ने कहा, तलाक के बाद बेटे के बालिग होने पर खत्म नहीं होती पिता की जिम्मेदारी दरअसल गुजरात उच्च न्यायालय की सिंगल पीठ ने 24 जून को नारायण साई को फरलो की मंजूरी दी थी। इससे पहले दिसंबर 2020 में उच्च न्यायालय ने नारायण साई की मां की तबीयत खराब होने की वजह से भी उसे फरलो दी थी।
गुजरात सराकर ने की SC से फरलो ना देने की अपील
गुजरात सरकार ने भी सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि साई को ‘फरलो ’ नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि वह जेल के भीतर भी आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहा है।
यह भी पढ़ेँः Delhi: हाईकोर्ट ने कहा- शिकायत की जानकारी मीडिया को देना मानहानि नहीं साईं इस आधार पर की फरलो की मांगनारायण साई ने कहा कि कोरोना वायरस से संक्रमित हुए अपने पिता आसाराम की देखरेख करने के लिए उसे फरलो चाहिए।
इससे पहले सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि, पुलिस अधिकारियों और चिकित्सा अधिकारियों को पहले भी रिश्वत दी जा चुकी है। पहले जब उनकी मां बीमार थीं तो हमने उनके फरलो का विरोध नहीं किया था,लेकिन इस बार यह उचित नहीं है।
इस पर नारायण साईं के वकील ने कहा कि फरलो प्राप्त करने के लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं है।
यह पैरोल नहीं है जो सख्त है। आदतन अपराधियों को फरलो से वंचित किया जाता है। मेरा मुवक्किल आदतन अपराधी नहीं है। उनके खिलाफ सिर्फ एक एफआईआर है। सभी दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला रिजर्व कर लिया था।
बता दें कि सूरत की एक कोर्ट ने नारायण साई को 26 अप्रैल 2019 को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (रेप), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (हमला), 506-2 (आपराधिक धमकी) और 120-बी (षड्यंत्र) के तहत दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
क्या होता है पैरोल ?
पैरोल के लिए तभी अर्जी दाखिल की जा सकती है, जब मुजरिम की सजा हाई कोर्ट से कन्फर्म हो चुकी हो और वह जेल में बंद हो। घर में किसी की मौत, गंभीर बीमारी, नजदीकी रिश्तेदार की शादी, पत्नी की डिलिवरी आदि के आधार पर पैरोल मांगा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करने के लिए भी पैरोल मांगा जा सकता है।
क्या है फरलो ?
मुजरिम जो आधी से ज्यादा जेल काट चुका हो, उसे साल में 4 हफ्ते के लिए फरलॉ दिया जाता है। फरलॉ मुजरिम को सोशल और फैमिली से संबंध कायम रखने के लिए दिया जाता है। इनकी अर्जी डीजी जेल के पास भेजी जाती है और इसे होम डिपार्टमेंट के पास भेजा जाता है और उस पर 12 हफ्ते में निर्णय होता है।
एक बार में दो हफ्ते के लिए फरलॉ दिया जा सकता है और उसे दो हफ्ते के लिए एक्सटेंशन दिया जा सकता है। फरलॉ मुजरिम का अधिकार होता है, जबकि पैरोल अधिकार के तौर पर नहीं मांगा जा सकता।
ये है दोनों में अंतर पैरोल के दौरान मुजरिम जितने दिन भी जेल से बाहर होता है, उतनी अतिरिक्त सजा उसे काटनी होती है। जबकि फरलो के दौरान मिली रिहाई सजा में ही शामिल होती है।