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बिहार चुनाव: संविधान के नाम पर महागठबंधन की नई सियासी चाल, BJP को घेरने की तैयारी

Bihar Elections: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले संविधान पर सियासत तेज हो गई है। महागठबंधन ने BJP और RSS को घेरना शुरू कर दिया है। एक बार फिर संविधान बचाने का नैरेटिव जोरों से चलाएगा। पढ़िए शादाब अहमद की खास रिपोर्ट...

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राहुल गांधी और तेजस्वी यादव (प्रतीकात्मक फोटो)

Bihar Elections: बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दो घटनाक्रमों में महागठबंधन अपना सियासी फायदा देख रहा है। इसमें आरएसएस और भाजपा नेताओं की ओर से संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद शब्द हटाने और चुनाव आयोग का विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम शामिल हैं। महागठबंधन ने दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक मतदाताओं पर फोकस कर इन दोनों मुद्दों को संविधान के खतरे से जोड़ दिया है। महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने इन दोनों मुद्दों को धार देते हुए संविधान बचाने का नैरेटिव सेट करना शुरू कर दिया है।

महागठबंधन का दलित-OBC पर फोकस

दरअसल, बिहार में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। सभी दल तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में कांग्रेस, राजद और वामपंथी दल, सत्ताधारी जदयू व भाजपा के गठबंधन को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। महागठबंधन का फोकस अपने कोर वोटर्स दलित, ओबीसी व अल्पसंख्यकों को एकजुट करने पर है। इस बीच संविधान की प्रस्तावना को लेकर विवाद भी शुरू हो गया है।

RSS-BJP के बयान पर गरमाई राजनीति

आपातकाल लगने के 50 साल पूरे होने के कार्यक्रमों में आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संविधान प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद शब्द को हटाने की मांग की। दोनों ने तर्क दिया कि आपातकाल के समय जोड़े गए इन शब्दों का मूल संविधान से कोई लेना-देना नहीं है।

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बहुजनों और गरीबों का हक छीनने की कोशिशः राहुल

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि आरएसएस व भाजपा का नकाब फिर से उतर गया। संविधान इन्हें चुभता है क्योंकि वो समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है। इनको संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए। ये बहुजनों और गरीबों से उनका हक छीनकर उन्हें दोबारा गुलाम बनाना चाहते हैं।

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चुनाव आयोग एक पार्टी के समर्थन मेंः दिग्विजय

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने रविवार को बिहार में पत्रकारों से कहा कि चुनाव आयोग एक पार्टी के समर्थन में निर्णय कर रहा है। सामान्य तौर पर आयोग सर्वदलीय बैठक बुलाकर निर्णय करता है, जिसमें समस्याओं का हल ढूंढ लिया जाता है। बिहार में आखिरी बार विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम 2003 में हुआ था। यह घर-घर जाकर सर्वे था, जिसमें करीब 2 साल लगे थे। जबकि इस बार एक महीना दिया गया है, जो बारिश के चलते अव्यावहारिक है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को बिहार के गरीबों का मताअधिकार खत्म करने की भाजपा की साजिश बताया।