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ताड़ के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से खतरे में इंसानी जान, 2,400 से ज्यादा मौतें

पेड़ों के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। बीते कुछ दशकों से पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की वजह से लोगों के जीवन पर संकट के बादल मंडरा रहे है। इसी वजह से बिजली गिरने की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी रही है। पढ़िए डॉ. मीना कुमारी की खास रिपोर्ट...

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ताड़ के पेड़

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से लोगों की जान संकट में आ गई है। इसके कारण बिजली गिरने की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई है और इससे लोगों की मौत हो रही है। यह खुलासा हाल में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की ओर से एक मामले पर लिए गए स्वत:संज्ञान से हुआ। मामले के अनुसार बिहार का कल्पवृक्ष माने जाने वाले ताड़ के पेड़ों की कटाई के बाद मानसून में बिजली गिरने की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इस मामले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने एक रिपोर्ट के आधार पर स्वत: संज्ञान लिया है।

ताड़ पेड़ और जीवन रक्षा का सीधा रिश्ता

रिपोर्ट में दावा किया गया कि ताड़ के पेड़ों की घटती संख्या राज्य में बिजली गिरने से होने वाली मौतों में वृद्धि का प्रमुख कारण है। प्रदेश 2016 में ताड़ी पर प्रतिबंध लगाने के बाद ताड़ के पेड़ों का आर्थिक महत्व कम हो गया और इनकी अंधाधुंध कटाई शुरू हो गई। पारंपरिक रूप से ताड़ी निकालने के व्यवसाय से जुड़े पासी समुदाय का दावा है कि ताड़ की खेती में 40 प्रतिशत की कमी आई और नए पौधों का रोपण लगभग पूरी तरह रुक गया।

NGT ने मांगा बिहार सरकार से जवाब

हालांकि बिहार सरकार ने ताड़ के पेड़ों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन फायदा नजर नहीं आया। एनजीटी ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत इस मामले को गंभीरता से लेते हुए बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण मंत्रालय (रांची), बिहार आपदा प्रबंधन विभाग और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस मामले में पक्षकार बनाते हुए जवाब दाखिल करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई एनजीटी की कोलकाता स्थित ईस्टर्न जोन बेंच में 7 अगस्त को होगी।

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इसलिए रक्षक है ताड़

बिहार में ताड़ का पेड़ सामाजिक-आर्थिक और लोक परंपराओं का हिस्सा है। इस पेड़ के हर हिस्से का उपयोग होता है, इसी कारण इसे 'कल्पवृक्षÓ की संज्ञा दी गई है। कहा जाता है कि ताड़ के पेड़ अपनी ऊंचाई के कारण आकाशीय बिजली से मानव जीवन की रक्षा करते हैं। पारंपरिक रूप से ताड़ी उत्पादन और विभिन्न औषधीय उपयोगों के कारण भी इसका विशेष महत्व रहा है। एनजीटी के हस्तक्षेप के बाद उम्मीद है कि सरकार ताड़ के पेड़ों के संरक्षण के लिए ठोस और प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।

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आंकड़ों की गवाही

1 2016 से अप्रैल 2025 तक: बिहार में बिजली गिरने से 2,446 मौतें हुईं। (आर्थिक सर्वेक्षण और आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार)
2 2014 से 2024 तक: 'लाइटनिंग रिपोर्ट 2023-24Ó के अनुसार यह आंकड़ा 2,937 है।
3 गया, औरंगाबाद, रोहतास, पटना, नालंदा, कैमूर, भोजपुर और बक्सर जिला सबसे प्रभावित।
4 अधिकतर मौतें दोपहर 12:30 बजे से 4:30 बजे के बीच हुईं, जब लोग खुले में काम कर रहे थे।