scriptहाईकोर्ट का बड़ा फैसला, कैदियों को संतानोत्पत्ति और माता-पिता बनने का मौलिक अधिकार | Even jailed convicts have fundamental right to procreate: Delhi High Court | Patrika News
राष्ट्रीय

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, कैदियों को संतानोत्पत्ति और माता-पिता बनने का मौलिक अधिकार

जस्टिस शर्मा ने स्पष्ट किया कि दोषी व्यक्ति का संतानोत्पत्ति का अधिकार पूर्ण नहीं है लेकिन उसकी विरासत की स्थिति, उम्र, व्यक्तिगत अधिकार और व्यापक सामाजिक स्थिति के बीच नाजुक संतुलन को देखकर इस पर विचार किया जाना चाहिए।

Dec 24, 2023 / 11:38 am

Shaitan Prajapat

delhi_high_court00.jpg

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि संतानोत्पत्ति और माता-पिता बनना जेल में सजा भुगत रहे दोषी का मौलिक अधिकार है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है। हत्या के एक मुजरिम की संतानोत्पत्ति के लिए पैरोल मांगने की अर्जी खारिज होने के खिलाफ याचिका पर जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि सजायाफ्ता व्यक्ति काे जेल में डालने पर उसके विवाहित जीवन के कई पहलू सीमित हो जाते हैं, लेकिन अदालतों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अपराधी को दोषी ठहराने का मकसद दंड के साथ सुधार करना भी है। यह देखना चाहिए कि दोषी को पैरोल देने से इनकार करने से उसके भावी जीवन पर क्या असर पड़ेगा।


माता-पिता बनना और संतानोत्पत्ति दोषी का मौलिक अधिकार

जस्टिस शर्मा ने स्पष्ट किया कि दोषी व्यक्ति का संतानोत्पत्ति का अधिकार पूर्ण नहीं है लेकिन उसकी विरासत की स्थिति, उम्र, व्यक्तिगत अधिकार और व्यापक सामाजिक स्थिति के बीच नाजुक संतुलन को देखकर इस पर विचार किया जाना चाहिए। देश की न्यायपालिका ने यह स्वीकार नहीं किया है कि कैदियों के मौलिक अधिकार नहीं है। किसी मामले की विशिष्ट परिस्थितियों में माता-पिता बनना और संतानोत्पत्ति दोषी का मौलिक अधिकार है।

शर्तों के साथ एक महीने की मिली पैरोल

कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली जेल नियम में संतानोत्पत्ति के लिए पैरोल देने का भले ही प्रावधान नहीं हो, लेकिन संवैधानिक अदालत को ऐसी राहत देने से नहीं रोका जा सकता। कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ याचिकाकर्ता कुंदनसिंह को चार सप्ताह का पैरोल स्वीकृत कर दिया।

यह भी पढ़ें

फोन टैपिंग-ट्रेकिंग सूचना आरटीआई दायरे में है या नहीं, जानिए हाईकोर्ट का फैसला



सार्वजनिक उत्पीड़न पर ही एससी-एसटी एक्ट

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति के साथ घर के अंदर किसी अन्य व्यक्ति की गैरमौजूदगी में जातिसूचक शब्दों से दुर्व्यवहार हो तो वह एससी-एसटी अत्याचार निवारण कानून के तहत अपराध नहीं होगा। एक मामले में जस्टिस शमीम अहमद ने कहा कि किसी व्यक्ति पर एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(एस) के तहत अपराध के लिए मुकदमा तभी चलाया जा सकता है जब उसने कमजोर वर्ग के व्यक्ति का सार्वजनिक तौर पर अपमान और उत्पीड़न किया हो।

यह भी पढ़ें

नए साल में अगर अमीर बनने का ले रहे संकल्प तो यहां समझिए धन बढ़ाने के 8 गोल्डन रूल्स



यह भी पढ़ें

इस राज्य में 24 लाख बच्चों के नाम स्कूल से कटे, किस अधिकारी ने क्यों लिया इतना बड़ा एक्शन?




Hindi News/ National News / हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, कैदियों को संतानोत्पत्ति और माता-पिता बनने का मौलिक अधिकार

ट्रेंडिंग वीडियो