
CPEC में अफगानिस्तान की एंट्री, भारत के लिए चिंता (Photo - IANS)
Explainer: चीन और पाकिस्तान के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपेक) में अफगानिस्तान की एंट्री भारत के लिए गंभीर रणनीतिक चिंता का विषय है। इससे क्षेत्रीय भू राजनीति के समीकरण भी बदल सकते हैं, क्योंकि इस प्रोजेक्ट को पहले ही भारत को घेरने और प्रभुत्व कायम करने की चीनी योजना के रूप में देखा जा रहा है। फिर, पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर (पीओजेके) में निर्माण के चलते भारत इस प्रोजेक्ट का पुरजोर विरोध करता रहा है।
सीपेक चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) की एक प्रमुख परियोजना है, जो पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से चीन के शिनजियांग प्रांत तक सडक़, रेलवे और ऊर्जा परियोजनाओं के माध्यम से जुड़ता है। इसका उद्देश्य पाकिस्तान में बुनियादी ढांचा सुधारना और चीन को सीधा समुद्री मार्ग देना है।
वर्ष 2022 में भारतीय विदेश मंत्रालय ने यह कहते हुए इस प्रोजेक्ट का विरोध किया कि यह सीधे तौर पर भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता है। भारत सीपेक में उन परियोजनाओं का विरोध करता रहा है, जो पीओजेके के भारतीय क्षेत्र में हैं।
अफगान संसाधनों, खासकर लिथियम और दुर्लभ खनिजों तक चीन की पहुंच आसान होगी। साथ ही, यह मध्य एशिया तक चीन का प्रभाव बढ़ाने और पाकिस्तान को एक ट्रांजिट हब के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। चीन अफगान क्षेत्र में बुनियादी ढांचे की आड़ में संभावित सैन्य लॉजिस्टिक नेटवर्क भी स्थापित कर सकता है।
1 संप्रभुता का उल्लंघन: इससे भारत की क्षेत्रीय अखंडता को खतरा बढ़ेगा।
2 रणनीतिक घेराबंदी: चीन, पाकिस्तान और अब तालिबान-नियंत्रित अफगानिस्तान के एकजुट मोर्चे से भारत की क्षेत्रीय स्थिति कमजोर हो सकती है।
3 मध्य एशिया में भारत की पकड़ पर असर: सीपेक विस्तार से चीन मध्य एशिया तक पहले पहुंच सकता है, जिससे भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाओं को झटका लग सकता है। भारत ने चाबहार बंदरगाह (ईरान) और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के माध्यम से अफगानिस्तान और मध्य एशिया से संपर्क बनाने की योजना बनाई थी। मगर अब सीपेक का अफगानिस्तान तक विस्तार से भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
Updated on:
23 May 2025 06:31 am
Published on:
23 May 2025 06:30 am
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