मीटिंग की तारीख 12 जून ही क्यों ?
बता दें कि, 1974 में जेपी मूवमेंट शुरू हो गया था। यह आंदोलन इंदिरा गांधी सत्ता के खिलाफ था। उस वक्त इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव जीती थीं। उन पर चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए समाजवादी नेता राजनारायण ने इलाबाद कोर्ट में मुकदमा किया था। हाईकोर्ट ने धांधली कर चुनाव जीतने का इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया। उनकी लोकसभा की सदस्यता कोर्ट ने रद्द कर दी। इसी कारण इंदिरा गांदी ने 25 जून 1975 की आधी रात को देश में इमरजेंसी लगा दी थी।
जय प्रकाश नारायण समेत देश के तमाम छोटे-बड़े विपक्षी नेता रातोंरात जेलों में डाल दिये गए। कांग्रेस में अलग राग अलापने वाले चंद्रशेखर को भी जेल भेजने में इंदिरा गांधी ने संकोच नहीं किया। इस बार पटना में 12 जून को होने वाली बैठक भी सत्ता परिवर्तन के एजेंडे के साथ हो रही है। फर्क इतना ही है कि तब कांग्रेस के विरोध में जेपी मूवमेंट हुआ था और इस बार कांग्रेस को साथ लेकर सत्ता में आने के लिए विपक्ष बेसब्र है।
सही समय का इंतजार
नीतीश कुमार विपक्षी एकता को लेकर जितनी जल्दी बाजी में दिख रहे हैं, कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को लेकर अभी उतनी ही शांत है। वह फिलहाल ना तो सीट शेयरिंग पर बात करने के मूड में है और ना ही प्रधानमंत्री पद के कैंडिडेट को लेकर किसी दूसरे नेता के नाम पर मोहर लगाना चाहती है।
क्योंकि आने वाले 6 महीने के भीतर 3 बड़े राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। इसमें से एक राज्य में कांग्रेस की स्थिति बेहद मजबूत है, राजस्थान और मध्यप्रदेश में अभी कांग्रेस की स्थिति ठीक-ठाक बनी हुई है। ऐसे में इन 3 राज्यों में से अगर दो में कांग्रेस जीत जाती है तो बारगेन करने के लिए कांग्रेस के पास और भी कारण आ जाएंगे।
इसीलिए कांग्रेस इस मुद्दे पर नीतीश कुमार की तरह जल्दीबाजी नहीं कर रही है। बुलाए गई इस मीटिंग में कांग्रेस के दोनों बड़े नेता तो नहीं आएंगे, लेकिन कांग्रेस कि जहां अभी 4 राज्यों में सरकार है, वहां से किसी एक मुख्यमंत्री के शामिल होने की संभावना जताई गई है।