
देश के चीफ जस्टिस (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि ऐतिहासिक तौर पर ही नहीं बल्कि आज की कानून की जटिल हकीकत ने भी जातिगत विभाजन को कायम रखा है। ऐसे में सरकार (स्टेट) द्वारा आरक्षण और अन्य सकारात्मक प्रयास ही असमानताओं को दूर करने के लिए आशा की किरण हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ शनिवार को बेंगलूरु में 36वें लॉएशिया सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हमें कानून में निहित जटिलताओं को स्वीकार करना चाहिए जो असमानताओं को कायम रखती हैं।
सरकार के दखल से दूर हो सकते हैं सामाजिक पूर्वाग्रह
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा है कि आज स्वतंत्रता के मायने बदल गए हैं। ऐतिहासिक तौर पर स्वतंत्रता का मतलब व्यक्तिगत कार्यों और निर्णयों में सरकार के दखल से मुक्ति थी लेकिन समकालीन विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सामाजिक पूर्वाग्रहों को दूर करने में सरकार की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जहां सरकार दखल नहीं करती वहां स्वत: सामाजिक और आर्थिक रूप से समृद्ध समुदाय ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर रहने वाले लोगों पर प्रभुत्व स्थापित करने की छूट मिल जाती है। उन्होंने आदिवासी समुदायों का उदाहरण देकर समझाया कि उनके लिए अपनी जमीन पर अधिकार ही स्वतंत्रता है और जमीन पर सरकार का अधिकार उनके प्रति भेदभाव दर्शाता है।
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अलग पहचान में न बांधा जाए
सीजेआई ने कहा कि हमारे समाज में अंतर्निहित प्रणालीगत भेदभाव को दूर करने के लिए यह जरूरी है कि लोगों को अलग-अलग पहचान में न बांधा जाए। विकलांग लोगों को किसी लाभ के लिए पात्रता प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए मजबूर किया जाता है और इसके लिए मानदंड तय करने से कई लोगों को लाभ से वंचित रहना पड़ता है। ऐसे में हमें उनकी मदद करने की जरूरत है। इसी तरह 'लिंग' आधारित कानून बनाने से पुरुषों को फायदा और महिलाओं को नुकसान हुआ। सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों का जिक्र किया जिसके तहत महिलाओं को सशस्त्र बलों में स्थाई कमीशन की अनुमति मिली और शराब से संबंधित किसी भी संस्था में महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध हटाया गया।
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Published on:
26 Nov 2023 10:18 am
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