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जज साहब! 9 हजार वेतन में से कैसे दूं 30 हजार? HC पहुंचे पति ने बताई पत्नी की कमाई तो भी मिला झटका

Delhi HC News: दिल्ली हाईकोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया है, जहां पति ने अपनी कम कमाई का हवाला देकर बच्चों के खर्च से बचने की कोशिश की। लेकिन हाईकोर्ट के फैसले ने सबको चौंका दिया। जानिए आखिर क्या कहा कोर्ट ने और क्यों पति की दलील नहीं मानी गई।

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delhi hc news husband showed less income to avoid maintenance for three children

प्रतीकात्मक तस्वीर

Delhi HC News: दिल्ली हाईकोर्ट में एक ऐसे मामले की सुनवाई हुई, जिसमें तलाक के बाद एक पति अपने बच्चों को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी से पीछा छुड़ाना चाहा। उसने दावा किया वह केवल महीने के 9 हजार कमाता है और उसकी पत्नी साढ़े 34 हजार कमाती है, फिर भी निचली अदालतों ने उसे हर महीने 30 हजार गुजारा भत्ता कैसे दूं। साथ ही पति का कहना था कि उसके माता-पिता ने उसे संपत्ति से बेदखल भी कर दिया है, जिस वजह से वह आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की बेंच ने की, लेकिन इस मामले में जज के फैसले ने सबको चौंका दिया है।

कोर्ट में पेश की गई दलीलें

पति ने कहा कि उसकी पत्नी उससे ज्यादा कमाती है और वह खुद बच्चों के संभालने में सक्षम है। ऐसे में बच्चों का पूरा खर्च उस पर डालना गलत है। वहीं दूसरी तरफ पत्नी का कहना था कि उसने खुद के लिए गुजारा भत्ता नहीं मांगा है, बल्कि अपने बच्चों के लिए मदद मांगी है। पत्नी ने कोर्ट के सामने कहा कि वह नौकरी के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई, इलाज और रोजमर्रा की जरूरतों को संभाल रही हैं। उन्होंने अपने पति के लिए कहा कि वह पढ़ा लिखा है और उसके पास एमबीए और फार्मेसी की डिग्री भी है। वह जानबूझकर अपनी कमाई कम होने का दावा कर रहा है, ताकि वह अपनी जिम्मेदारी से बच सके।

जानिए क्या है पूरा मामला?

यह मामला दंपति से जुड़ा है, जिसकी शादी 2014 में हुई थी। शादी के बाद उनके दो बेटियां और एक बेटा है। पत्नी ने आरोप लगाया कि उससे दहेज मांगा गया और मानसिक और आर्थिक रूप से गलत व्यवहार किया गया। इसके बाद उन्होंने घरेलू हिंसा कानून के तहत अदालत में शिकायत दर्ज कराई। बाद में इस मामले की सुनवाई 23 दिसंबर 2023 को महिला अदालत में हुई, जिसमें पति को आदेश दिया गया कि वह अपने तीनों बच्चों के लिए हर महीने 30 हजार रुपये गुजारे भत्ते के लिए दे। इस फैसले के चुनौती देने के लिए पति ने सेशन कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां भी पति को निराशा दी मिली। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट के दरवाजे खटखटाए।

पति के दावे निकले झूठे

कोर्ट की सुनवाई मेें यह साफ हो गया कि पति के दावे सच्चाई से मेल नहीं खाते हैं। जज ने तर्क दिया कि जिस व्यक्ति की कमाई सिर्फ 9000 रुपये हो, वह रेगुलरली क्रेडिट कार्ड का उपयोग नहीं कर सकता। साथ ही उनके बैंक स्टेटमेंट और रिकॉर्ड्स कोई और ही कहानी बता रहे थे। इसके अलावा माता-पिता के संपत्ति से बेदखल किए जाने वाला दावा भी झूठा साबित हुआ क्योंकि वह अपनी मां की फार्मेसी से जुड़ा हुआ है। कोर्ट ने साफ कहा कि इन दावों के झूठे साबित होने पर यह साफ होता है कि पति अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहा है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

आगे कोर्ट ने साफ कहा कि पत्नी नौकरी करती है, उसका यह बिल्कुल मतलब नहीं है कि पिता की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है। जज ने कहा कि पहले ही एक कामकाजी महिला दो जिम्मेदारियां निभा रही होती है। कोर्ट ने यह साफ कहा कि बच्चों की जिम्मेदारी माता-पिता दोनों की होती है। यह जिम्मेदारी दोनों में से किसी एक पर नहीं डाली जा सकती है।

हाईकोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने जांच के बाद माना कि पति की हर महीने की कमाई लगभग 40 हजार के करीब है। साथ ही उन्होंने पुराने केस का हवाला देते हुए कहा कि तीन बच्चों के लिए 25 हजार गुजारा भत्ता सही रहेगा। साथ ही कोर्ट ने कहा कि बच्चों का महीने का खर्च लगभग 45 हजार रुपये बैठता है, जिसमें से मां अपनी तरफ से लगभग 20 हजार रुपये पहले ही खर्च कर रही है। ऐसे में पिता की जिम्मेदारी पूरी तरह खत्म नहीं होती। इसी आधार पर कोर्ट ने पहले तय की गई 30 हजार रुपये की राशि को कम कर 25 हजार रुपये प्रति माह कर दिया और मामला यहीं निपटा दिया।


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