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महिला कॉन्‍स्टेबल का CISF कमांडेंट ने नहीं किया था यौन शोषण, 25 साल बाद दिल्ली HC में सामने आई सच्चाई

दिल्ली हाईकोर्ट ने 25 साल पुराने एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। इस मामले में सालों पहले CISF कमांडेंट पर महिला कांस्टेबल ने यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे, लेकिन हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान सारी सच्चाई सामने आ गई।

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delhi high court clears cisf officer image in 25 years old case

25 साल पुराने CISF कमांडेंट के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की सुनवाई

दिल्ली हाईकोर्ट ने 25 साल पुराने मामले की सुनवाई की, जिसमें एक CISF कमांडेंट ने अपने रिटायरमेंट के फैसले को चुनौती दी थी। अधिकारी का कहना था कि महिला कांस्टेबल ने उन पर यौन शोषण के गलत आरोप लगाए हैं और उनको जबरदस्ती रिटायर कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि उन्हें किसी तरह का मुआवजा नहीं चाहिेए, वह बस चाहते हैं कि सच्चाई सामने आए और उन्हें उनकी प्रतिष्ठा वापस मिले। जज दिनेश मेहता और जज विमल कुमार यादव की बेंच ने इस केस की सुनवाई की।दिल्लीहाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए सभी आरोपों की जांच की और मामले की अभी तक की परिस्थिति भी देखी। उसके बाद कोर्ट ने अधिकारी पर की गई जांच के पीछे के कारणों पर भी सवाल उठाया है।

हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

इस मामले में दो बार जांच की जा चुकी थी, लेकिन दोनों बार अधिकारी को निर्दोष ही पाया गया था। इसके बावजूद तीसरी बार जांच के आदेश दिए गए और विभाग की कार्यवाई में 2005 में उस अधिकारी को जबरदस्ती रिटायर कर दिया गया। अदालत ने इस तथ्य पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जब पहली दो बार की गई जांचों में अधिकारी को दोषी नहीं पाया गया तो तीसरा जांच का आधार क्या रहा।

आखिर पूरा मामला है क्या?

यह मामला CISF के 72 साल के अधिकारी से जुड़ा है, जिन पर साल 1999 में एक महिला कांस्टेबल ने आरोप लगाया कि उन्होंने उनसे गलत तरीके से बात की और साथ ही अनुचित संबंध बनाने का आरोप भी लगाया है। इसके अलावा महिला कांस्टेबल का यह भी आरोप था कि उन्होंने दो और महिलाओं के साथ भी दुर्व्यवहार किया। अधिकारी ने इन आरोपों को शुरुआत से ही गलत बताया था। अधिकारी का दावा था कि उन्होंने उस महिला कांस्टेबल को सिर्फ ड्यूटी में लापरवाही बरतने की वजह से फटकार लगाई थी और इसी से नाराज होकर उस महिला ने उन्हें झूठे केस में फंसाया है।

अदालत की जांच में क्या सामने आया?

अदालत ने शिकायतकर्ता के पत्र की गहराई से जांच की। जांच के बाद कोर्ट ने कहा कि अधिकारी पर लगाए गए आरोप साफ और ठोस नहीं थे। कोर्ट ने माना कि शिकायत में बदले की भावना साफ-साफ झलक रही है। यह बिल्कुल संभव है कि लापरवाही करने पर डांट देने की वजह से महिला कांस्टेबल ने शिकायत की हो। अदालत ने यह भी कहा कि आरोप इतने भी गंभीर नहीं थे कि इतनी कड़ी कार्रवाई की जाए। साथ ही अन्य महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार वाला आरोप भी जांच में झूठे साबित हुए।

अंत में कोर्ट ने फैसला क्या लिया?

अदालत ने माना कि पूर्व अधिकारी के साथ गलत हुआ और उन्हें बिना किसी ठोस आधार के दंड दिया गया है। अदालत ने 2005 में जबरदस्ती किए गए रिटायरमेंट के आदेश को रद करने का फैसला लिया। साथ ही कहा कि अधिकारी को उनका असली रिटायरमेंट की उम्र तक सेवा में माना जाएगा। इसके साथ ही पेंशन से जुड़े सभी लाभ देने के भी निर्देश दिए गए। अधिकारी के प्रतिष्ठा की मांग पर अदालत ने इसे अपना “न्यूनतम दायित्व” बताते हुए उनका सम्मान लौटाने का फैसला सुनाया।