
दिल्ली हाईकोर्ट ने अफजल गुरू और मकबूल भट्ट की कब्र से संबंधित याचिका खारिज की।
Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने तिहाड़ जेल में दफन आतंकवादी मकबूल भट्ट और अफजल गुरू की कब्रों को हटाने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में किसी संवैधानिक या वैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है, इसलिए जनहित याचिका पर विचार योग्य नहीं है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि किसी भी जनहित याचिका में तभी राहत दी जा सकती है, जब यह दिखाया जाए कि किसी संवैधानिक प्रावधान, मौलिक अधिकार या कानूनी प्रावधान का उल्लंघन हुआ हो। अदालत ने यह भी कहा कि जेल परिसर के अंदर दाह-संस्कार या दफनाने पर किसी तरह की कानूनी रोक नहीं है।
यह याचिका विश्व वैदिक सनातन संघ और जितेंद्र सिंह द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से गुहार लगाई थी कि आतंकवादियों की कब्रों को तिहाड़ जेल से हटाकर किसी अज्ञात स्थान पर स्थानांतरित किया जाए। उनका तर्क था कि राज्य के नियंत्रण वाली जेल के अंदर आतंकवादियों की कब्रों का बने रहना अवैध, असंवैधानिक और जनहित के खिलाफ है। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले को खारिज कर दिया है।
मकबूल भट्ट को साल 1984 में तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। वह जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) का संस्थापक था और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल था। अफजल गुरू को 2013 में फांसी दी गई थी। वह 2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले का दोषी था। दोनों आतंकवादियों को फांसी के बाद तिहाड़ जेल परिसर में ही दफनाया गया था और तब से उनकी कब्रें वहीं मौजूद हैं। अदालत ने साफ कर दिया कि कब्रों को हटाने की कोई कानूनी या संवैधानिक बाध्यता नहीं है। इसलिए इस संबंध में दायर जनहित याचिका को खारिज किया जाता है।
मकबूल भट्ट जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के संस्थापकों में से एक थे। वह कश्मीर को भारत तथा पाकिस्तान से अलग स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के समर्थक थे। उनका जन्म 1938 में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के इलाके में हुआ था। पढ़ाई के दौरान ही वे राजनीति और अलगाववादी विचारधारा से जुड़ गए। 1960 के दशक में उन्होंने कश्मीर में सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत करने की कोशिश की और इसी दौरान कई आतंकी वारदातों में उनका नाम सामने आया। भारत सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर 1966 में जेल भेजा, लेकिन वे भागकर पाकिस्तान पहुंच गए। बाद में 1970 के दशक में वे फिर से भारत आए और गिरफ्तार किए गए। 1966 में भारतीय सुरक्षा बल के एक अधिकारी की हत्या और 1971 में भारतीय नागरिक की हत्या के मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया। 1984 में दिल्ली की तिहाड़ जेल में उन्हें फांसी दी गई और वहीं दफनाया गया। उनकी फांंसी के बाद वे कश्मीरी अलगाववादियों के लिए 'शहीद' का प्रतीक बन गए।
अफजल गुरु का जन्म 1969 में कुपवाड़ा, जम्मू-कश्मीर में हुआ था। वे शुरू में मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन परिस्थितियों और कट्टरपंथी संगठनों के प्रभाव में वे आतंकवाद की ओर मुड़ गए। 2001 में संसद हमले की साजिश में अफजल गुरु मुख्य आरोपी के रूप में सामने आए। इस हमले में पांच आतंकी शामिल थे, जिन्होंने दिल्ली स्थित भारतीय संसद पर धावा बोला और सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में मारे गए। हमले में नौ सुरक्षा कर्मी और एक माली शहीद हुए। अफजल गुरु को गिरफ्तार कर लंबी सुनवाई के बाद 2002 में निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा। राष्ट्रपति से दया याचिका भी खारिज हो गई और 9 फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में उन्हें फांसी दी गई। उनकी फांसी के बाद कश्मीर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए और वे अलगाववादी राजनीति का एक बड़ा प्रतीक बन गए।
Published on:
24 Sept 2025 05:47 pm
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