20 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

यादों में सुर-ताल और राग : संगीत को समर्पित की ‘जसरंगी’ शैली, आकाशगंगा में भी चमक रहे ‘पंडित जसराज’

Pandit Jasraj Death Anniversary: ग्यारह साल की उम्र में जसराज ने पहली बार मंच पर तबला वादन किया, लेकिन उनके मन में गायन की ललक थी। एक दिन, एक गुरु ने उन्हें सलाह दी, 'तबले की थाप में ताकत है, पर तुम्हारी आवाज में जादू है।' बस, यहीं से जसराज ने गायन को अपना जीवन बना लिया।

2 min read
Google source verification
Jasrangi style founder Pandit Jasraj death anniversary immortal name in singing and playing tabla

हरियाणा के प्रसिद्ध संगीतज्ञ पंडित जसराज। (फोटो : IANS)

Pandit Jasraj Death Anniversary: हरियाणा के हिसार में 1930 में पंडित जसराज का जन्म हुआ। उनका नाम आज भी हर संगीत प्रेमी के दिल में गूंजता है। संगीत के क्षेत्र में उनकी आभा को इसी से समझा जा सकता है कि भारत सरकार ने उन्हें तीनों पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया। उनके नाम पर अंतरिक्ष में एक छोटे ग्रह का नाम 'पंडित जसराज' रखा गया। जसराज ने एक अनूठी 'जसरंगी' शैली भी विकसित की थी।

मेवाती घराने के प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे पिता

पंडित जसराज के पिता पंडित मोतीराम मेवाती घराने के प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे। जसराज चार साल की आयु के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद उनके भाइयों पंडित मणिराम और पंडित प्रताप नारायण ने उन्हें संगीत की बारीकियां सिखाईं। छोटी सी उम्र में ही जसराज का मन संगीत में रम गया। ग्यारह साल की उम्र में जसराज ने पहली बार मंच पर तबला वादन किया, लेकिन उनके मन में गायन की ललक थी। एक दिन एक गुरु ने उन्हें सलाह दी कि 'तबले की थाप में ताकत है पर तुम्हारी आवाज में जादू है।' बस यहीं से जसराज ने गायन को अपना जीवन बना लिया।

विदेशों में अमर कर दिया आवाज का जादू

उन्होंने मेवाती घराने की परंपरा को न केवल संजोया, बल्कि उसे विश्व मंच पर नई पहचान दी। उनकी गायिकी में भक्ति और शास्त्र का अनूठा संगम था। खासकर उनके भजन जैसे 'मात-पिता गुरु गोविंद दियो,' सुनने वालों को आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाते थे। जसराज की कला की कोई सीमा नहीं थी। वे भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका, कनाडा और यूरोप में भी अपनी प्रस्तुतियों से लोगों को मंत्रमुग्ध करते थे। जसराज ने संगीत में 'जसरंगी' नाम की एक अनोखी जुगलबंदी शैली विकसित की। इस शैली में पुरुष और महिला गायक अलग-अलग राग गाते हैं, फिर एक स्वर में मिल जाते हैं। यह शैली उनकी रचनात्मकता का कमाल थी। उनकी बेटी दुर्गा जसराज ने IANS को बताया कि 90 साल की उम्र में भी वे वीडियो कॉल पर शिष्यों को पढ़ाते थे।

न्यूयॉर्क में एक मिनट तक बजती रहीं तालियां

एक बार न्यूयॉर्क में एक कॉन्सर्ट के दौरान, जब उन्होंने राग दरबारी गाया तो श्रोता इतने मंत्रमुग्ध हुए कि तालियों की गड़गड़ाहट कई मिनट तक नहीं थमी। जसराज ने न केवल संगीत को समृद्ध किया, बल्कि अपने शिष्यों को भी प्रेरित किया। उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे सम्मान मिले। उनके नाम पर एक छोटा ग्रह भी है, जो उनकी कला की विशालता को दर्शाता है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (आईएयू) ने 2006 में खोजे गए एक छोटे ग्रह को 'पंडित जसराज' नाम दिया।

पंडित जसराज ने अपनी अंतिम सांस 17 अगस्त, 2020 को न्यू जर्सी में ली। यहां पर हृदयाघात से उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी शिक्षाएं और संगीत आज भी जीवित हैं। उनके शिष्य और प्रशंसक उन्हें याद करते हैं, और उनके भजनों में बसी भक्ति को आत्मसात करते हैं।