Tughlaqabad Fort in Delhi: दिल्ली की भागती-दौड़ती जिंदगी से दूर जब आप शहर के दक्षिणी सिरे पर पहुंचते हैं तो एक वीरान पहाड़ी की गोद में छिपा हुआ इतिहास आपका इंतज़ार करता है। ये है दिल्ली का तुगलकाबाद किला। दिल्ली में एक ओर जहां लाल किले पर चमक-धमक के बीच मुगलों का गौरवशाली इतिहास जानने के लिए पर्यटकों की भीड़ उमड़ती है। वहीं दूसरी ओर तुगलकाबाद किला एक शांत, रहस्यमयी और भुलाया जा चुका योद्धा लगता है। जिसकी तलवार तो कब की जंग खा चुकी है। मगर उसकी निगाहें अब भी अतीत के आइने में झांकती रहती हैं। हम बात कर रहे हैं दिल्ली के तुगलकाबाद किले की। जो आज सन्नाटे और धुंधले इतिहास के चलते भूतिया कहा जाने लगा है।
यह किला 14वीं सदी में गयासुद्दीन तुगलक ने बनवाया था। एक ऐसा सम्राट जिसने एक नए युग की नींव रखनी चाही थी। कहा जाता है कि किले की दीवारें कभी सुनहरे टाइल्स से सजी थीं। इसकी गलियां राजसी घोड़ों की टापों से गूंजती थीं और इसके आंगन में तख्त की शान बिखरी रहती थी, लेकिन आज बस बंदरों की टोली किले की दीवारों पर उछलती दिखती है। धूल की परतें पत्थरों को ढक चुकी हैं और हवा जैसे इस खंडहर की कहानियां बताती है।
गयासुद्दीन तुगलक की अचानक एक अजीब हादसे में मौत के बाद यह किला खाली छोड़ दिया गया। इसके बाद इस किले का वैभव समय की धूल में कहीं गुम हो गया। आज इस किले में जंगली घास और खामोशी की चादर बिछ़ी है। इस किले में जहां रोमन जलसेतु जैसे खंडहर इसके पुराने गौरव की झलक दिखाते हैं। वहीं दिल्ली की चहल-पहल से दूर यह किला अपनी उदासी में और भी आकर्षक लगता है।
दिल्ली का यह किला कभी उसकी तीसरी राजधानी था। एक ऐसा शहर जिसे तुगलक ने बसा कर इतिहास बदलने की ठानी थी। लेकिन नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था। एक दिन अचानक गयासुद्दीन की रहस्यमयी मौत हुई और उसके बाद उनका उत्तराधिकारी इस सपने को अधूरा छोड़ कर कहीं और चला गया। किला वीरान हो गया। बस्तियां उजड़ गईं। और इतिहास की किताबों में यह बस एक 'पृष्ठ संख्या' बनकर रह गया। आज वहां केवल जंगली झाड़ियां, पत्थरों में उलझे झरोखे और वो जलसेतु के खंडहर हैं जो किसी रोमन वास्तुकला की याद दिलाते हैं। एक समय जो जीवंतता से भरपूर था। आज वहां सन्नाटा भी एक किस्म की दास्तान बन गया है।
तुगलकाबाद किला न तो सजावट से भरा कोई टूरिस्ट स्पॉट है और न ही कोई रोमैंटिक पिकनिक डेस्टिनेशन। यह एक ऐसा स्थान है जो इतिहास की हड्डियों पर चुपचाप टिका है। एक वीराना जो बोलता नहीं, पर सुनने वाला हो तो बहुत कुछ कहता है और शायद इसी खामोशी में इसकी असली खूबसूरती है। एक बोलता सन्नाटा जो समय से आगे जाकर कहानियां सुनाता है।
तुगलकाबाद किले की सबसे रहस्यमयी वो सुरंगनुमा गलियारा है। जो जमीन के नीचे अंधेरे में खो जाता है। गलियारे के दोनों ओर बनी कोठरियां किसी रहस्य का संकेत देती हैं। सवाल उठता है कि क्या ये सुरंग सैनिकों की आरामगाह, शाही खजाने का ठिकाना या फिर शाही परिवार को दुश्मनों से बचाकर भगाने के लिए बनाई गई थी? इसका उत्तर फिलहाल किसी के पास नहीं है। इसी सुरंग को किवदंतियों यानी लोगों की जुबान में वो स्थान कहा जाता है, जहां जिन्नों की कहानियां जन्म लेती हैं।
जब आप इस सुरंग की तंग दीवारों के बीच से गुजरते हैं तो वहां की ठंडी हवा ज्यादा सुकून देती है, लेकिन उस सुकून में भी एक रहस्यमय कंपन भी छिपा है। इसके बाद गुफा में ही अचानक एक मोड़ आता है। जहां कुछ खड़ी सीढ़ियां आपको एक अंधेरे कमरेनुमा स्थान पर ले जाती हैं। थोड़ा आगे बढ़ते ही फिर झटके से खुले मैदान में ले आती हैं। जहां कड़ी धूप और सन्नाटा फिर आपको किले के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है।
दिन में यह किला इतिहास प्रेमियों और फोटोग्राफरों के लिए खज़ाना है, लेकिन रात को इसकी आत्मा जागती है। एक सुरक्षा गार्ड ने बताया कि अक्सर रात के समय सुरंग से अजीब-सी आवाजें आती हैं। जैसे कोई गूंजती हुई फुसफुसाहट। कभी-कभी चमगादड़ों की तेज उड़ानें और पेड़ों की सरसराहट उस माहौल को और भी डरावना बना देती है। कुछ लोगों का मानना है कि यह किला भूतिया है। शायद नहीं भी, पर इसकी खामोशी में जरूर कुछ ऐसा है जो आपकी सांसों को कुछ पल के लिए थमा देता है। वो डर जो सीधा नहीं डराता बस भीतर ही भीतर समा जाता है।
Published on:
19 Jun 2025 04:10 pm