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केजरीवाल सरकार का बड़ा एलान, दो वर्ष बाद दिल्ली वक्फ बोर्ड के गठन की अधिसूचना जारी

केजरीवाल सरकार ने करीब दो वर्ष बाद सोमवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड के गठन के लिए अधिसूचना जारी कर दी। इससे पहले दिल्ली वक्फ बोर्ड के गठन को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच काफी विवाद देखने को मिला था।

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केजरीवाल सरकार का बड़ा एलान, दो वर्ष बाद दिल्ली वक्फ बोर्ड के गठन की अधिसूचना जारी

केजरीवाल सरकार का बड़ा एलान, दो वर्ष बाद दिल्ली वक्फ बोर्ड के गठन की अधिसूचना जारी

नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर से एक अहम फैसला लिया है। केजरीवाल सरकार ने करीब दो वर्ष बाद सोमवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड के गठन के लिए अधिसूचना जारी कर दी। इससे पहले दिल्ली वक्फ बोर्ड के गठन को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच काफी विवाद देखने को मिला था। बता दें कि इससे पहले पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग ने वर्ष 2016 में वक्फ बोर्ड को भंग कर दिया था। लेकिन दिल्ली सरकार ने एक बार फिर से इसके गठन को लेकर काम करना शुरू कर दिया था, जिसको लेकर सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद गहरा गया था। हालांकि दो वर्ष बाद सोमवार को डिविजनल कमिश्नर ऑफिस की ओर से नोटिफिकेशन जारी किया गया। सरकार की ओर से गठन किए गए वक्फ बोर्ड में तीन सदस्य हैं जिसमें विधायक अमानतुल्ला खां, दिल्ली स्टेट बार काउंसिल के सदस्य हिमाल अख्तर और चौधरी शरीफ अहमद शामिल हैं।

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सरकार और एलजी के बीच विवाद

आपको बता दें कि दिल्ली वक्फ बोर्ड को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच लगातार विवाद होते रहे हैं लेकिन इस बार केजरीवाल सरकार ने उपराज्यपाल के आपत्तियों को दरकिनार करते हुए वक्फ बोर्ड के लिए अधिसूचना जारी कर दी। जारी किए गए अधिसूचना में मुख्य तौर पर तीन सदस्यों के अलावा नामित सदस्यों में रजिया सुल्ताना, नईम फातिमा काजमी और आईएएस अमजद टाक शामिल हैं। इससे पहले उपराज्यपाल की ओर से कई बार सरकार की मंशा पर सवाल उठाए गए। उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली वक्फ बोर्ड को उस समय भंग कर दिया था जिस दौरान वक्फ बोर्ड की जमीन से कब्जा हटवाने और भू-माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई की जा रही थी। बता दें कि केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव का यह कोई पहला मामला नहीं था। इससे पहले दिल्ली सरकार के अधिकारों को लेकर भी उपराज्यपाल के साथ काफी विवाद होता रहा है। लेकिन बीते दिनों देश की सर्वोच्च अदालत ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है लेकिन यहां के मुख्यमंत्री जनता के प्रतिनिधि है। इसलिए जनता के समस्याओं को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री जवाबदेह है।