
जलवायु संकट भारत के कारखानों के दरवाजे तक पहुंच चुका है। विभिन्न व्यवसायों और उद्यमियों के लिए अब यह सुदूर घटित होने वाला पर्यावरणीय खतरा नहीं है, बल्कि आज की आर्थिक हकीकत है। मौसम की चरम परिस्थितियां- जैसे बाढ़ से सप्लाई चेन डूब रही है और लू से श्रमिकों की उत्पादन क्षमता घट रही है- पहले से ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को खरबों डॉलर का नुकसान पहुंचा रही हैं। इसके बावजूद इस संकट में हमारी पीढ़ी के लिए एक व्यावसायिक अवसर भी छिपा है। एक नए सर्वेक्षण के अनुसार, 82 प्रतिशत कंपनियां पहले से ही डीकार्बोनाइजेशन (कार्बन उत्सर्जन घटाने) से आर्थिक लाभ दर्ज कर रही हैं। जलवायु-लचीलापन, कम कार्बन उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था की दिशा में बढ़ाया गया कदम प्रतिस्पर्धात्मकता, रोजगार सृजन और विकास का नया इंजन है। अब सवाल यह नहीं है कि कोई कदम उठाना है या नहीं, बल्कि यह है कि कैसे इसका नेतृत्व करना है। साक्ष्यों को देखें तो भारतीय कंपनियों ने पहले ही 45,000 मेगावाट से अधिक अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित की है, जिससे ऊर्जा लागत में भारी कमी आई है। चूंकि लगभग 70 प्रतिशत निर्यात नेट-जीरो बाजार से संबंधित है, इसलिए डीकार्बोनाइजेशन वैश्विक व्यापार में प्रवेश करने के लिए नई कीमत है। वैश्विक स्तर पर, विश्व की आधी से अधिक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के सामने पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) में गिरावट से नुकसान होने का जोखिम मौजूद है। इन जलवायु झटकों से बचने के लिए बफर का निर्माण इससे होने वाले नुकसान की तुलना में किफायती है। दूरदर्शी कार्यकारी अधिकारियों के लिए यह वास्तविकता तीन मानसिक बदलावों की जरूरत बताती है। लचीलेपन (रेजिलियंस) को अपनी बैलेंस शीट का सबसे अच्छा दोस्त मानें, आपूर्ति शृंखलाओं को नियंत्रित करने के बजाय साझी निर्भरता का एक नेटवर्क मान कर चलें और वेस्ट यानी कचरे को एक रणनीतिक संसाधन के रूप में देखें। इस दिशा में तीन व्यावहारिक कदमों के साथ आगे बढ़ा जा सकता है। पहला, जलवायु संकट के झटकों को सहने के लिए संचालन और सप्लाई चेन को नए सिरे से तैयार करें। दशकों से एशिया-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक आपदा के आर्थिक नुकसान के आधे हिस्से का सामना कर रहे हैं। बीमा में 'सुरक्षा अंतर' के साथ, पिछले साल प्राकृतिक आपदाओं से वैश्विक नुकसान $20 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया था। भारत में चार में से तीन जिले बाढ़, सूखे या लू जैसी चरम मौसमी घटनाओं के हॉटस्पॉट हैं। आपको बस यह सुनिश्चित करना है कि आपकी पूरी वैल्यू चेन किसी जलवायु झटके का सामना कर सके। यह संचालन से संबंधित जोखिम को घटाने का सबसे बेहतरीन उपाय है। दूसरा, क्लाइमेट एक्शन को महज अपनी नीति नहीं, बल्कि अपने उत्पाद का मुख्य हिस्सा बनाएं। इस दशक में वही कंपनियां जीतेंगी, जो उन समाधानों का निर्माण और वितरण करेगी, जिसकी भारत को जरूरत है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक रिसर्च के अनुसार, स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में 2021-22 में कार्यरत भारतीयों की संख्या 47 प्रतिशत बढ़ी है और यह लगातार बढ़ रही है। इस दशक में रूफटॉप अक्षय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन और ग्रीन हाइड्रोजन का बाजार आधा ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया है। तीसरा, एक किफायती और स्वच्छ भविष्य के लिए निवेश करें। नए बिजली उत्पादन के सबसे किफायती स्रोत के रूप में स्वच्छ ऊर्जा के उभरने के साथ, अब पर्यावरणहितैषी होना सबसे किफायती विकल्प है। भारत ने 15 वर्षों में सौर ऊर्जा दरों को 90 प्रतिशत तक घटाया है। आज बैटरी स्टोरेज के साथ नए सौर ऊर्जा संयंत्रों से उत्पादित बिजली नए कोयला संयंत्रों की बिजली से सस्ती है। संयुक्त राष्ट्र के आगामी जलवायु सम्मेलन ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (कॉप30) जलवायु वित्त के तहत खरबों की धनराशि जुटाने पर जोर देगा। 2030 तक हमारी ऊर्जा मांग यूरोपीय संघ से अधिक हो जाने के साथ भारतीय व्यवसायों के लिए विकल्प बहुत ही स्पष्ट हैं। भविष्य का निर्माण सबसे विशाल से नहीं, बल्कि सर्वाधिक लचीलेपन और दूरदर्शिता से होगा।
Published on:
04 Nov 2025 02:29 pm
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