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लोकतंत्र के कमजोर पक्ष को उजागर करता ‘शटडाउन’

डॉ. मिलिंद कुमार शर्मा, प्रोफेसर, एमबीएम विवि, जोधपुर

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अमरीका इस समय जिस समस्या का सामना कर रहा है, उसे शटडाउन कहा जाता है। शटडाउन अर्थात सरकार का बजट तय समय पर पारित न होने के कारण सरकारी कामकाज रुक जाना। जब अमरीकी संसद ‘कांग्रेस’ और राष्ट्रपति प्रशासन परस्पर सहमति से खर्चों और नीतियों पर निर्णय नहीं कर पाते, तब सरकारी संस्थाओं को धन नहीं मिल पाता जिससे फलस्वरूप वे सेवाएं प्रदान करना बंद कर देती हैं। इससे लाखों कर्मचारी प्रभावित होते हैं, अनेक विभाग बंद हो जाते हैं और जनता को मूलभूत सेवाओं से वंचित होना पड़ता है। नि:संदेह इस शटडाउन ने वहां राजनीति, अर्थव्यवस्था व व्यापार को गहराई से प्रभावित किया है। वहां अतिआवश्यक सेवाओं के अतिरिक्त सभी सेवाएं ठप पड़ गई है।

अमरीकी शटडाउन का सबसे पहला प्रभाव सरकारी कर्मचारियों व मध्यम वर्ग पर पड़ता है। हजारों कर्मचारी महीनों तक बिना वेतन के घर पर बैठने को बाध्य हो जाते हैं। कर्मचारी छंटौती ‘फरलो और लेऑफ’ सभी सेवाओं में घोषित किया जा चुका है। इससे उनका दैनिक जीवन व गतिविधियां प्रभावित हो कर क्रय शक्ति घट जाती है। फलस्वरूप जिससे बाजार मांग घट जाती है। मांग कम होने से उत्पादन पर दुष्प्रभाव पड़ता है और पूरी अर्थव्यवस्था धीमी होने की आशंका रहती है। अमरीका में तकनीक से जुड़े छोटे और मध्यम उद्योगों को सरकार से लाइसेंस और अनुमतियां लेनी होती हैं। जब सरकारी विभाग बंद हो जाते हैं, तब ये प्रक्रियाएं रुक जाती हैं। जिन कंपनियों को नए प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए अनुमति चाहिए, उन्हें महीनों प्रतीक्षारत रहना पड़ता है। इससे उद्योगों को भारी क्षति होती है। साथ ही बैंकिंग और वित्तीय संस्थानों पर भी दबाव बढ़ जाता है। पर्यटन, हवाई यात्रा और खुदरा व्यापार जैसे क्षेत्र तो तुरंत प्रत्यक्ष प्रभावित होते हैं क्योंकि इनमें उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति में कटौती हो जाती है।

विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के कारण इस शटडाउन का प्रभाव केवल अमरीका तक सीमित नहीं रहता, अपितु पूरे विश्व तक पहुंचता है। अंतरराष्ट्रीय निवेशक अमरीकी स्थिति देखकर चिंतित हो जाते हैं। डॉलर की स्थिरता पर प्रश्न खड़े होने लगते हैं और विदेशी निवेशक अपने धन सुरक्षित रखने के लिए अन्य विकल्प खोजने लगते हैं। जिन देशों की अर्थव्यवस्था अमरीका के व्यापार पर अधिक निर्भर है, वे भी अछूते नहीं रह पाते है। विपक्षी डेमोक्रेटिक दल के स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा के मदों में रिपब्लिकन दल की सरकार द्वारा प्रस्तावित कटौतियां इस राजनीतिक गतिरोध का प्रमुख कारण बना हुआ है। इसके अतिरिक्त रिपब्लिकन दल के भीतर भी एक धड़ा सख्त खर्च कटौती की मांग करता है, जबकि दूसरा धड़ा इसे अव्यावहारिक मानता है। सामान्यत: बहुमत वाला दल अपने अनुरूप बजट पारित करा सकता है, किंतु किसी भी प्रस्ताव को अमरीकी कांग्रेस में पारित कराने के लिए साठ प्रतिशत से अधिक सदस्यों का समर्थन आवश्यक होता है, जिसे वहां की शब्दावली में ‘सिक्सटी प्लस रूल’ कहते हैं। रिपब्लिकन दल में आंतरिक मतभेदों व विपक्षी दल के भारी विरोध के चलते ऐक्य मत नहीं हो पाने के फलस्वरूप कांग्रेस में बजट पारित नहीं हो पाने के कारण पूरी सरकारी कामकाज व्यवस्था ठप-सी प्रतीत दिख पड़ती है।

यह विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र के कमजोर पक्ष को भी उजागर करता है कि बहुमत होने के बाद भी राजनीतिक ध्रुवीकरण प्रशासन को पंगु बना देता है। यदि हम भारत के लोकतंत्र की ओर देखें तो यहां स्थिति बिल्कुल भिन्न है। भारत में संसद की संसदीय प्रणाली ऐसी बनाई गई है कि वहां शटडाउन जैसी स्थिति कभी उत्पन्न नहीं हो सकती है। यहां बजट पारित होना केवल आर्थिक निर्णय नहीं, बल्कि सरकार के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। यदि बजट संसद में पारित नहीं होता, तो यह सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव माना जाता है। इसका सीधा अर्थ है कि सरकार को सत्ता से हटना पड़ेगा और नई सरकार का गठन होगा। इस कारण सभी राजनीतिक दल यह सुनिश्चित करते हैं कि बजट समय पर पारित हो और जनता के कामकाज में कोई व्यवधान न आने पाए। भारत की व्यवस्था की यही सबसे बड़ी विशेषता है कि राजनीतिक मतभेद जितने भी हों, जनता से जुड़े काम कभी ठप नहीं पड़ते। भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दल वाद-विवाद और विरोध करते हैं, लेकिन अंततः राष्ट्रीय हित और जनता की सुविधाओं को प्राथमिकता दी जाती है। यही कारण है कि भारत में प्रशासनिक कामकाज निरंतर चलता रहता है और शटडाउन जैसी स्थिति कभी पैदा नहीं होती वहीं अमरीका में गत कुछ वर्षों में ही यह घटना तीसरी बार देखी गई है। इसके अतिरिक्त भारतीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था में बहुमत का सम्मान किया जाता है। यदि सरकार के पास बहुमत है तो शेष दल विरोध के उपरांत भी बजट को पूरी तरह रोकने की स्थिति में नहीं आ सकते हैं। साथ ही यदि जनता के हितार्थ विषयों पर बहुमत वाली पार्टी समझौता न करे तो उसे सत्ता से हाथ भी धोना पड़ सकता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली अमरीकी लोकतंत्र से कहीं अधिक स्थिर और व्यावहारिक सिद्ध दिखाई पड़ती है।

अमरीका का वर्तमान शटडाउन यह दिखाता है कि जब राजनीतिक दल अपनी विचारधाराओं और स्वार्थों को राष्ट्रीय हित से ऊपर रख देते हैं तो पूरा सरकारी तंत्र प्रभावित होता है। वहीं भारत का लोकतंत्र यह संदेश देता है कि असहमति और वाद-विवाद लोकतंत्र की शक्ति हैं, लेकिन इन असहमतियों के कारण जनता के हितों पर कुठाराघात नहीं होना चाहिए। स्पष्ट है कि भारत का लोकतांत्रिक ढांचा हर अर्थों में अमरीका से अधिक व्यावहारिक है जहां कि राजनीतिक अस्थिरता के उपरांत भी प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखी जा सकती है।