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कैराना और नूरपुर उपुचनाव को लेकर अखिलेश यादव ने मायावती को दी यह नसीहत

अब सभी राजनीतिक दलों की निगाहें कैराना और नूरपुर में होने वाले उपचुनाव पर

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mayawati and akhilesh

नोएडा। लोकसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों की निगाहें अब कैराना और नूरपुर में होने वाले उपचुनाव पर लगी हैं। माना जा रहा है कि मई में इसका ऐलान हो सकता है। वहीं, बसपा ने इस उपचुनाव से खुद को पहले ही अलग कर लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा सुप्रीमो मायावती को एक सलाह दी है। उनका कहना है कि बसपा सुप्रीमो द्वारा उपचुनाव में सपा को समर्थन ने देने से गलत संदेश जाएगा। बसपा को य तो अपना उम्मीदवार उतारना चाहिए या फिर सपा का समर्थन करना चाहिए।

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राज्यसभा चुनाव में नहीं हुआ फायदा

दरअसल, राज्यसभा चुनाव में सपा और बसपा के गठबंधन के बावजूद भाजपा उम्मीदवार अनिल अग्रवाल को विजय मिली थी जबकि बसपा उम्मीवार पराजित हो गए थे। हालांकि, गोरखुपर और फूलपुर उपचुनाव में गठबंधन ने बाजी मारी थी। इसे देखते हुए माना जा रहा था कि कैराना और नूरपुर उपचुनाव में भी गठबंधन अपना रंग दिखाएगा लेकिन मायावती ने इससे अलग करने की बात कर दी।

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भाजपा की रणनीति

वहीं, भाजपा ने कैराना से दिवंगत सांसद हुकुम सिंह की विरासत संभाल रहीं उनकी बेटी को टिकट देने का इशारा किया है। हाल ही में मेरठ पहुंचे उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इस ओर इशारा भी किया था। अगर बात बिजनौर की नूरपुर की करें तो यहां भी पार्टी की तरफ दिवंगत विधायक लोकेंद्र सिंह चौहान की पत्नी को टिकट देने की बात चल रही है। गोरखपुर और फूलपुर के बाद भाजपा किसी भी हाल में यह सीट नहीं खोना चाहती है।

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रालोद भी गठबंधन का हिस्सा बनने की इच्छुक

राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के मुखिया अजित सिंह भी गठबंधन का हिस्सा बनने की इच्छा जता चुके हैं। माना जा रहरा है कि उनके बेटे जयंत चौधरी कैराना उपचुनाव में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं।

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क्या हैं समीकरण

आपको बता दें कि बिजनौर के नूरपुर में कुल 2.69 लाख वोटरों में से दलित, मुस्लिमों और यादवों की संख्या 1.60 लाख से ज्यादा है। इतना ही नहीं कुछ ऐसा ही हाल कैराना का भी है। यहां दलित मुस्लिम समीकरण किसी भी दल को जिता सकता है।

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