
कैराना उपचुनाव में मतदान बना मिसालः रोजेदार मुस्लिमों के सामने जाटों ने पैश की अनोखी मिसाल
सहारनपुर. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद इस इलाके में जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच नफरत की खाई को कुछ नेताओं ने इतना बढ़ा दिया था, जिसे देखकर लगने लगा था कि शायद ही अब कभी ये खाई पट पाएगी। लेकिन मात्र पांच साल में ही आसपी भाईचारा इतना परवान चढ़ा कि कैराना उपचुनाव में पूरी सूरत ही बदली-बदली नजर आई। यानी एक बार फिर यहां दोनों समुदाय के बीच बेहतर तालमेल दिखने को मिला। कैराना लोकसभा उपचुनाव के लिए हुए मतदान के दौरान ऐसी मिसाल देखने को देखने को मिली, जो देश के कई हिस्सों में बार-बार बनते सांप्रदायिक तनाव को दूर करने के लिए नजीर बन सकता है। दरअसल, रमजान के महीने में भीषण गर्मी के बीच कैराना लोकसभा सीट पर सोमवार को मतदान हुआ था। मतदान केन्द्रों पर मतदाताओं की लंबी-लंबी कतारें लगी थी। इस बीच जब मुस्लिम मतदाता रोजे की हालत में वोट डालने के लिए पहुंचे तो जाट समुदाय ने रोजेदारों की परेशानियों को देखते हुए उनके लिए मतदान केन्द्रों को खाली कर दिया।
शामली जिले के ऊनगांव और गढ़ीपोख्ता कस्बा जाट बहुल इलाकान है। लेकिन इन दोनों मतदान केन्द्रों पर अल्पसंख्यक मुस्लिम रोजेदारों के सम्मान में ऐसा नजारा देखने को मिला कि लोग आश्चर्यचकित रह गए। यहां मतदान केन्द्र पर मतदान के लिए जाट समुदाय की महिलाएं पहले से लाइन में लगी हुई थीं। इसी बीच मुस्लिम महिलाएं भी वोट डालने के लिए पहुंच गई तो जाट महिलाओं ने मुस्लिम महिलाओं को पहले मतदान करने के लिए अपनी जगह छोडड़कर इंसानियत और भाई जारे की अनोखी मिसाल पेश की। मतदान केन्द्रों पर पहले से खड़ीं जाट महिलाओं ने मुस्लिम महिलाओं से कहा 'बहन आप पहले वोट डाल लीजिए, क्योंकि आप रोजे से हैं। मैं तो बाद में भी वोट डाल लूंगी'। इसी तरह गढ़ीपोख्ता कस्बे के बूथ पर चौधरी राजेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ मतदान करने के लिए के लिए लाइन में खड़े थे, तभी 55 वर्षीय बसीर वोट डालने के लिए पहुंचे, तो राजेंद्र सिंह ने उन्हें आगे कर दिया और खुद पीछे लाइन में लग गए। उन्होंने पीछे लाइन में लगते हुए कहा कि आप रोजे से हैं, इसलिए पहले आप वोट डाल लें, हम तो बाद में भी वोट डाल लेंगे।
नफरत पाटने में रालोद मुख्या अजीत सिंह की रही बड़ी भूमिका
गौरतलब है कि नवंबर 2013 से पहले इस इलाके में जाट और मुस्लिम समुदाय सदियों से आपसी भाईचारे के साथ रह रहे थे। यहां मुस्लिम और जाट एकता चौधरी अजित सिंह की ताकत थी। लेकिन नवंबर 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगे ने इस पूरे इलाके में मुस्लिम और जाटों के बीच नफरत की खाई इतनी बढ़ा दी कि अजित सिंह की राजनीतिक जमीन ही खिसक गई और भाजपा इस इलाके में पहली बार बड़ी संख्या में कमल खिलाने में सफल हो गए। अपनी राजनीतक जमीन खिसकने से चिंतित चौधरी अजित सिंह ने इस इलाके के जाट और मुस्लिमों को फिर से एकजुट करने की पहल शुरू कर दी। आरएलडी मुखिया और उनके बेटे जयंत चौधरी पिछले 6 महीने से अपने आधार को मजबूत करने के लिए लगे हुए थे। इस दौरान दोनों पिता-पुत्र ने करीब 100 से ज़्यादा सभाओं को संबोधित किया और दोनों समुदाय के लोगों को एकजुट होने का संदेश देकर पार्टी के लिए वोट मांगे। इसी का नतीजा है कि एक बार फिर जाट और मुस्लिम समुदाय एक दूसरे के लिए नजदीक आते दिख रहे हैं। गौरतलब है कि कैराना उपचुनाव में आरएलडी ने तबस्सुम हसन को, जबकि बीजेपी ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को प्रत्याशी बनाया है।
Published on:
30 May 2018 12:46 pm
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