उल्लेखनीय है कि 11 महीने से ज्यादा चले किसान आंदोलन में किसान नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी। राकेश टिकैत और नरेश टिकैत के साथ सैकड़ों किसान अपना घर बार छोड़कर गाजीपुर बॉर्डर पर जमे हुए थे। अब कृषि कानूनाें की वापसी पर राकेश टिकैत सबसे बड़े किसान नेता के रूप में उभरे हैं। ज्ञात हो कि 26 जनवरी को लालकिले पर हुई ट्रैक्टर रैली और हिंसा के बाद किसान आंदोलन लगभग खत्म होने जा रहा था, लेकिन वह राकेश टिकैत ही थे। जिनके आंसुओं ने इस आंदोलन में एक बार फिर से जान फूंक दी थी। राकेश टिकैत के आंसुओं ने न केवल किसान आंदोलन को बचाया, बल्कि वह खुद किसान आंदोलन का बड़ा चेहरा बन गए।
भाकियू नेता राकेश टिकैत यहीं नहीं रुके। उन्होंने अपने भाई व भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत के साथ पूरे यूपी में किसान पंचायत कर किसानों को अपने आंदोलन से जोड़ा। इसके बाद वह जहां गाजीपुर बॉर्डर पर डंटे रहे, वहीं समय-समय पर महापंचायत कर सरकार को चेताने का कार्य करते रहे। इसी का नतीजा है कि केंद्र सरकार को कृषि कानून वापस लेते हुए बैकफुट पर आना पड़ा है। कृषि कानून वापस होने से पूरे उत्तर प्रदेश के किसान काफी खुश है और राकेश टिकैत को ही इसका श्रेय दे रहे हैं।
पंजाब से शुरू हुआ आंदोलन वेस्ट यूपी ने दिलाई जीत बता दें कि कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन सबसे पहले पंजाब से शुरू हुआ था। 26 जनवरी की घटना के बाद टीकरी और सिंघु बॉर्डर से किसान अपने गांवों को लौटने लगे थे। इसके बाद राकेश टिकैत ऐसे टिके कि आंदोलन पंजाब के हाथों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के पाले में आ गया। पंजाब के किसानों को इस बात का डर था कि कहीं आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता हीरो न बन जाएं और हुआ भी यही।