हीटवेव में बर्फ का रिकॉर्ड पिघलाव, 100 वर्षों में एक बार होती है ऐसी गर्मी
WWA की रिपोर्ट के अनुसार, मई में दर्ज की गई गर्मी इतनी असामान्य थी कि यह हर 100 साल में एक बार घटित होने वाली घटना मानी जा सकती है। ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर ने अपने औसत पिघलाव स्तर को 17 गुना पार कर दिया, जो अब तक की सबसे तेज़ पिघलने की दरों में से एक है।
आइसलैंड में 26°C तापमान, मई के रिकॉर्ड टूटे
15 मई को आइसलैंड में तापमान 26 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया — जो इस समय के लिए असामान्य है। यह 1991–2020 की औसत मई अधिकतम तापमान से 13°C ज्यादा था। देश के 94% मौसम स्टेशनों ने रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी दर्ज की।
“जलवायु परिवर्तन के बिना यह असंभव होता” -वैज्ञानिक
WWA की रिपोर्ट की सह-लेखिका और इंपीरियल कॉलेज लंदन की जलवायु वैज्ञानिक फ्रीडेरिक ओट्टो ने कहा, “हमारा विश्लेषण साफ बताता है कि अगर जलवायु परिवर्तन न होता, तो इस स्तर की गर्मी संभव नहीं थी।” उन्होंने बताया कि पिघली हुई बर्फ का योगदान समुद्र स्तर में खतरनाक वृद्धि कर सकता है।
पूर्वी ग्रीनलैंड में तापमान 3.9°C ज्यादा
पूर्वी ग्रीनलैंड में हीटवेव के दौरान तापमान औद्योगिक युग से पहले की तुलना में 3.9°C अधिक था। ओट्टो ने कहा, “भले ही ये तापमान दुनिया के अन्य हिस्सों के लिए सामान्य लगे, लेकिन आर्कटिक जैसे इलाके में यह अत्यधिक प्रभावशाली बदलाव है।”
स्थानीय समुदायों और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खतरा
बर्फ पर निर्भर स्थानीय शिकारी समुदायों की आजीविका खतरे में है। गर्म मौसम के कारण शिकार के पारंपरिक रास्ते बाधित हो रहे हैं। वहीं, ग्रीनलैंड और आइसलैंड का बुनियादी ढांचा जो ठंडे मौसम के अनुसार तैयार किया गया था, अब पिघलती बर्फ और संभावित बाढ़ के कारण कमजोर हो रहा है।
हर दशक में बदतर होती जलवायु घटनाएं
WWA ने कहा कि यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर रोक नहीं लगाई गई, तो ऐसी घटनाएं अब हर दशक में बार-बार होने लगेंगी -और फिर यह 100 वर्षों की नहीं, बल्कि सालाना चुनौती बन जाएगी।
रिएक्शन : यह घटना पूरी तरह से मानव-जनित जलवायु परिवर्तन
वैज्ञानिक प्रतिक्रिया – डॉ. फ्रेडरिक ओट्टो (WWA, इम्पीरियल कॉलेज लंदन): “हमने आर्कटिक में पहले भी असामान्य गर्मी देखी है, लेकिन यह घटना पूरी तरह से मानव-जनित जलवायु परिवर्तन की मुहर लगाती है। यह चेतावनी नहीं, एक प्रमाण है।”
अगला असर मुंबई, माले और मियामी जैसे तटीय शहरों पर होगा
पर्यावरण कार्यकर्ता – ग्रीनपीस इंटरनेशनल:”ग्रीनलैंड की बर्फ का इतनी तेज़ी से पिघलना एक वैश्विक आपातकाल है। अगर अब भी जलवायु नीति नहीं बदली, तो अगला असर मुंबई, माले और मियामी जैसे तटीय शहरों पर होगा।”
यह हमारी संस्कृति के अंत जैसा
सामाजिक प्रतिक्रिया – ग्रीनलैंड निवासी, इलुलिस्सात से: “हमारे दादा बर्फ पर शिकार करते थे। अब मई में ही बर्फ पिघलने से रास्ते खत्म हो जाते हैं। यह हमारी संस्कृति के अंत जैसा लगता है।”
फॉलोअप : आगामी दिशा / अगली रिपोर्टें :
IPCC की अगली रिपोर्ट में ग्रीनलैंड और आर्कटिक पर विशेष अध्याय शामिल किया जाएगा। डेनमार्क सरकार ग्रीनलैंड में इंफ्रास्ट्रक्चर अनुकूलन परियोजना की घोषणा कर सकती है। आगामी COP सम्मेलन में ग्रीनलैंड का पिघलाव समुद्र-स्तर नीति बहस के केंद्र में रहेगा। NASA और ESA (यूरोपीय स्पेस एजेंसी) संयुक्त रूप से जुलाई में बर्फ पिघलाव पर सैटेलाइट आधारित डेटा जारी करेंगे।
आर्कटिक काउंसिल 2025 के लिए नई पर्यावरण नीति रूपरेखा पर चर्चा करेगा।
साइड एंगल : वैकल्पिक दृष्टिकोण / मानवीय प्रभाव
- पर्यटन उद्योग पर असर:
आइसलैंड में बढ़ते तापमान से ग्लेशियर पर्यटन को बड़ा झटका लग सकता है। कई टूर कंपनियों ने ग्रीष्मकालीन बर्फ ट्रेक रद्द कर दिए हैं।
- पशुपालन और जल प्रबंधन पर प्रभाव:
पिघलती बर्फ का पानी अनियंत्रित तरीके से बह रहा है, जिससे पशु चरागाह बर्बाद हो रहे हैं और स्थानीय जल स्रोत दूषित हो रहे हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य चुनौती:
स्थानीय ग्रीनलैंडिक समुदायों में जलवायु अवसाद (climate grief) की घटनाएं बढ़ रही हैं। युवा पीढ़ी अपनी विरासत खोने के डर से मानसिक दबाव में है।
एक्सक्लूसिव इनपुट क्रेडिट: डॉ. फ्रेडरिक ओट्टो, एसोसिएट प्रोफेसर, क्लाइमेट साइंस, इम्पीरियल कॉलेज लंदन,WWA (विश्व मौसम एट्रिब्यूशन) की 2025 प्रेस ब्रीफिंग,ग्रीनलैंड मौसम विभाग के ताजा सैटेलाइट रिकॉर्ड,आइसलैंड मौसम विज्ञान संस्थान की अनिर्बंध रिपोर्ट।
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