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शब्दों का चयन सिर्फ संवाद नहीं, आपके व्यक्तित्व की ब्रांडिंग है

अविनाश जोशी, स्वतंत्र लेखक एवं स्तंभकार

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हमारे जीवन में शब्दों का महत्त्व केवल संचार तक सीमित नहीं है। शब्द हमारी सोच, भावनाओं व संस्कारों का आईना होते हैं। जिस प्रकार किसी व्यक्ति के पहनावे, व्यवहार और आदतों से उसकी परवरिश और व्यक्तित्व झलकता है, उसी तरह उसकी भाषा और शब्द चयन से उसकी मानसिकता और आंतरिक संस्कार स्पष्ट हो जाते हैं। भाषा केवल अभिव्यक्ति का साधन नहीं, बल्कि यह हमारे व्यक्तित्व की परिभाषा भी तय करती है। जब हम किसी से संवाद करते हैं, तो हमारे शब्द, स्वर और बोलने का तरीका सामने वाले के मन में हमारे ले‍कर एक स्थायी छवि बना देता है। यही कारण है कि कहा जाता है- ‘जैसे संस्कार वैसे विचार, जैसे विचार, वैसे शब्द।’

संस्कार केवल धार्मिक या पारिवारिक परंपराओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे जीवन मूल्यों, आदर्शों व दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि किसी व्यक्ति ने बचपन से विनम्रता, आदर और संयम सीखा है, तो यह स्वाभाविक रूप से उसकी भाषा में झलकेगा। वह कठिन परिस्थिति में भी कटु या अपमानजनक शब्दों का प्रयोग नहीं करेगा। दूसरी ओर, अगर किसी व्यक्ति का वातावरण नकारात्मक रहा है या उसने संवाद में आक्रामकता देखी-सुनी है, तो संभव है कि उसकी भाषा में तीखापन और असंयम आ जाए। यही कारण है कि माता-पिता और समाज को बच्चों में आरंभ से ही सकारात्मक और शालीन भाषा के प्रयोग की आदत डालनी चाहिए।

हमारे चुने गए शब्द हमारी मानसिक स्थिति का सटीक परिचय देते हैं। एक ही बात को हम कई तरीकों से कह सकते हैं, लेकिन उसका प्रभाव शब्दों के चयन पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए ‘तुमने गलती की है’ और ‘अगली बार थोड़ा ध्यान रखना’ कहना, दोनों का अर्थ लगभग समान है, लेकिन पहला वाक्य आरोप की तरह लगता है, दूसरा मार्गदर्शन की तरह।

आज के प्रतिस्पर्धी युग में, भाषा का महत्त्व और भी बढ़ गया है। कार्यस्थल पर आपके शब्द यह तय करते हैं कि आप नेतृत्व करने योग्य हैं या नहीं, आप टीम में सहयोग बढ़ाते हैं या तनाव। एक प्रबंधक यदि अपने अधीनस्थों से सम्मानपूर्वक और प्रेरक शब्दों में बात करता है, तो वह टीम को एकजुट और ऊर्जावान बनाए रख सकता है। इसी तरह, सामाजिक जीवन में भी आपकी भाषा से लोग आपके संस्कार पहचान लेते हैं। एक व्यक्ति चाहे कितना ही धनी या शिक्षित क्यों न हो, यदि उसकी भाषा में अभद्रता है तो समाज में उसका सम्मान घट जाता है। शब्द एक बार निकल जाने के बाद वापस नहीं आते। कठिन परिस्थितियों में भी संयमित भाषा का प्रयोग रिश्तों में दरार पड़ने से रोक सकता है। कई बार आवेश में निकले कठोर शब्द वर्षों का विश्वास तोड़ सकते हैं।

जैसे विचार हमारी भाषा को आधार देते हैं, वैसे ही भाषा भी हमारी सोच को प्रभावित करती है। यदि हम सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो धीरे-धीरे हमारी सोच भी उसी दिशा में ढलने लगती है। यही कारण है कि मनोवैज्ञानिक भी आत्मसंवाद में सकारात्मक भाषा अपनाने की सलाह देते हैं।

शब्द और भाषा सिर्फ संचार का माध्यम नहीं, बल्कि आपके संस्कार, सोच और व्यक्तित्व का जीवंत परिचय हैं। एक सुसंस्कृत व्यक्ति वही है, जो परिस्थितियां कैसी भी हों, अपने शब्दों में मधुरता, सम्मान और संयम बनाए रखे। इसलिए, यदि समाज में अपनी एक सकारात्मक और सम्मानजनक पहचान बनाना चाहते हैं, तो अपने शब्दों को सजगता से चुनें।