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डेटा हमारा, नियंत्रण पराया : ‘आत्मनिर्भर डिजिटल भारत’ के करने होंगे प्रयास

डॉ. मिलिंद कुमार शर्मा, प्रोफेसर, एमबीएम यूनिवर्सिटी, जोधपुर

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भारत का डिजिटल आधार विदेशी कंपनियों विशेषकर अमेरिकी संस्थानों यथा गूगल अल्फाबेट, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, एक्स और मेटा इत्यादि पर अत्यधिक निर्भर है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज भारत की ईमेल सेवाओं से लेकर क्लाउड स्टोरेज, सर्च इंजन और ऑपरेटिंग सिस्टम तक अधिकांश आधारभूत ढांचे पर अमेरिकी कंपनियों जैसे मेटा, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट आदि का ही वर्चस्व है। निसंदेह यह स्थिति भारत की डिजिटल संप्रभुता के लिए गंभीर चुनौती है।

डिजिटल निर्भरता का सबसे बड़ा जोखिम यह है कि यह किसी भी समय राजनीतिक अस्त्र में परिवर्तित हो सकती है। सभी ने देखा है कि हाल में अमेरिका ने जिस प्रकार टैरिफ वॉर की नीति अपनाते हुए कई देशों पर ऊंचे आयात शुल्क थोपे हैं। यदि यही रणनीति डिजिटल क्षेत्र में अपनाई जाती है, तो इसके परिणाम कहीं अधिक भयावह होंगे। यदि अमेरिकी राष्ट्रपति कोई कार्यकारी आदेश पारित कर गूगल, माइक्रोसॉफ्ट या अमेजन जैसी कंपनियों को भारत की क्लाउड सेवाओं, ई-मेल सेवाओं या सॉफ्टवेयर अपडेट रोकने को निर्देशित करें तो क्षणभर में भारत के बैंकिंग, स्वास्थ्य, रक्षा, आपूर्ति सेवा, ऊर्जा, परिवहन और संचार क्षेत्र संकट में आ जाएंगे। कुछ समय पूर्व देखा गया था कि जिस प्रकार माइक्रोसॉफ्ट की सेवाएं ठप होने से वैश्विक स्तर पर एयरलाइंस, बैंक और मीडिया हाउस प्रभावित हुए। इसके अतिरिक्त भारत में डिजिटल विज्ञापन, क्लाउड सेवाओं और ऑपरेटिंग सिस्टम का अधिकांश हिस्सा अमेरिकी कंपनियों के हाथ में है। यदि किसी दिन ये कंपनियां शुल्क अचानक बढ़ा दें या भारतीय संस्थानों को प्रतिबंधित सूची में डाल दें, तो भारतीय उद्योग जगत और समस्त वाणिज्य व व्यापार भारी संकट में आ जाएंगे। यदि यूट्यूब, गूगल सर्च या माइक्रोसॉफ्ट की सेवाओं से अचानक भारतीय भाषाओं की सामग्री को हटा दिया जाए या सीमित कर दिया जाए, तो करोड़ों भारतीय उपभोक्ता व कंटेंट क्रिएटर्स डिजिटल रूप से हाशिये पर चले जाएंगे।

वहीं चीन और यूरोपीय संघ के उदाहरण भारत के लिए अनुकरणीय हो सकते हैं। चीन तकनीक के अन्य क्षेत्रों के साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी के तेजी से रणनीतिक प्रयोग को जल्द ही भांप कर समझ लिया था कि डिजिटल संप्रभुता के बिना कोई भी राष्ट्र अपने दीर्घकालीन राजनीतिक हितों की रक्षा नहीं कर सकता है। यूरोपीय संघ भी बड़े डेटा सुरक्षा कानून बनाकर अमेरिकी कंपनियों के प्रभाव को सीमित करने के लिए प्रयासरत हैं। डिजिटल स्पेस में भारत की सबसे बड़ी शक्ति उसका विशाल डेटा भंडार है। विश्व में भारत एक बड़ा इंटरनेट उपभोक्ता बाजार है। यह डेटा अमेरिकी आइटी कंपनियों के लिए सोने की खान सिद्ध हो रहा है। वे इसी डेटा का उपयोग अपने एआई मॉडल और एल्गोरिद्म को प्रशिक्षित करने में कर रहे हैं। भारत का डेटासेट न केवल विशाल है अपितु अत्यंत विविधतापूर्ण भी है। भारत को भी अपने डेटा की सुरक्षा और नियंत्रण पर ध्यान देकर अपनी सबसे बड़ी संपदा पर नियंत्रण रखने के लिए प्रयास करने होंगे।

इस परिस्थिति से निपटने के लिए भारत में पास विकल्प कम नहीं हैं। विशाल आइटी प्रतिभा, तेजी से बढ़ता स्टार्टअप इकोसिस्टम और डिजिटल साक्षरता मिलकर एक स्वतंत्र डिजिटल मॉडल खड़ा कर सकते हैं। नीति-निर्माताओं के लिए आवश्यक है कि वे स्थानीय क्लाउड और ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित करने के लिए सक्षम नीतियों को दिशा दें, सरकारी विभागों में घरेलू तकनीकी समाधानों का अनिवार्य प्रयोग करें और डेटा लोकलाइजेशन के नियमों को और सख्त बनाएँ। रक्षा क्षेत्र में माइक्रोसॉफ्ट ऑपरेटिंग सिस्टम के स्थान पर लिनक्स अथवा स्थानीय प्लेटफार्म को प्राथमिकता देने पर विचार करना होगा।

इसी प्रकार स्थानीय प्लेटफार्म विकसित कर मोबाइल फोन में भी गूगल के एंड्राइड व एप्पल के आइओएस पर निर्भरता कम करने के लिए तेजी से प्रयास करने होंगे। गूगल वर्कस्पेस एवं माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के स्थानीय विकल्पों को सरकारी कार्यों के लिए अनिवार्य करने पर गंभीरता से सोचना होगा। आत्मनिर्भर डिजिटल 2.0 अभियान, डिजिटल स्वराज मिशन को क्रियान्वित कर वर्ष 2030 तक गूगल क्लाउड, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन वेब सेवा इत्यादि के साथ-साथ सोशल मीडिया व मैसेजिंग के विभिन्न भारतीय विकल्प खोजे जाना कठिन नहीं होगा। स्थानीय क्लाउड कैपेसिटी के लिए ‘मेघराज’ जैसे प्लेटफार्म को सरकारी वित्तीय सहायता से और सुदृढ़ करना होगा। राष्ट्रहित में साइबर सिक्योरिटी के लिए डीआरडीओ, सी-डैक, तकनीकी संस्थानों, स्टार्टअप्स को संयुक्त प्रयास करने होंगे।