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स्वास्थ्य और चिकित्सा एक नहीं

Gulab Kothari Article : हाल ही में संपन्न जी20 स्वास्थ्य मंत्रियों के सम्मेलन के निर्णयों की दिशा पर केंद्रित पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख - स्वास्थ्य और चिकित्सा एक नहीं

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WHO Director General Dr. Tedros Adhanom Ghebreyesus and Union Health Minister Mansukh Mandaviya and others at the G20 Health Ministers meeting

Gulab Kothari Article : हाल ही में सम्पन्न जी-20 स्वास्थ्य मंत्रियों के सम्मेलन की अध्यक्षता और मेजबानी भारत ने की। सम्मेलन का अन्तिम दिन मूलत: स्वास्थ्य और वित्तीय मुद्दों को समर्पित रहा। भारत के प्रस्तावों पर सर्वसम्मति भी रही। विश्व के हालात, महामारियों-टीके-चिकित्सा-शोध जैसे कई विषयों पर आम सहमति बनी। यह सकारात्मक लक्षण है। मूलरूप से चर्चा प्रमुख चार मुद्दों पर रही।
4. संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक संस्था 'विश्व स्वास्थ्य संगठन'(डब्ल्यूएचओ) ऐसी बैठकों का आह्वान भारत की अध्यक्षता में करे।


सम्मेलन के दौरान हुई बैठकों में जिन विषयों पर चर्चा हुई उनमें भी एक-दूसरे का पूरा सहयोग करने की बात पुरजोर तरीके से उठाई गई। क्षेत्रीय शोध को बढ़ावा देना, शोध-विकास-उत्पादन में सहयोग करना इनमें मुख्य था। यह भी तय हुआ कि टीके, दवाएं, निदान जैसे क्षेत्रों में छोटे एवं मध्यम आय वर्ग देशों की सहायता की जाए और सबको समान 'बाजार' की सुविधा मिले। अर्थात् छोटे-बड़े का भेद समाप्त होना चाहिए। सबको आधारभूत ढांचा तैयार करने के लिए आर्थिक सहयोग भी मिलना चाहिए।

कुल मिलाकर स्वास्थ्य की तीन ही प्रमुख श्रेणियां होती हैं- टीका, दवा और निदान। आज तो तीनों ही क्षेत्र स्वास्थ्य से ज्यादा व्यापार से जुड़े हैं। तीनों ही बीमारी के लक्षण सामने आने के बाद प्रभावी होते हैं। वैसे तो स्वास्थ्य का अर्थ है 'बीमार ही न होना।' स्वास्थ्य के प्रति भारतीय दृष्टिकोण है- जीवन को प्रकृति से जोड़ो।

इसमें भी सर्वाधिक महत्व अन्न को दिया जाता है और बाद में योग को। अन्न 'ब्रह्म' है। हम सभी एक-दूसरे का अन्न भी हैं। कहीं शरीर का, कहीं बुद्धि का और कहीं मन का। सात्विक अन्न जीवन की श्रेष्ठता और लम्बी आयु का मुख्य स्रोत है। गीता में सात्विक एवं तामसी अन्न की स्पष्ट परिभाषा दी गई है।

'आयु: सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीति विवर्धना:।
रस्या: स्निग्धा: स्थिरा हृद्या आहारा सात्विकप्रिया:॥' (गीता 17/8)

'यातयामं गतरसं पूर्ति पर्युषितं च यत्।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम ॥' (गीता 17/10)

साथ ही श्रेष्ठ स्वास्थ्य का मार्ग भी स्पष्ट किया है-

'युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा ॥' (गीता 6/17)

गीता विश्व को भारत की देन है। आज तो सर्वमान्य है। फिर सम्मेलन में इसकी चर्चा क्यों नहीं हुई? जीवात्मा, अन्न के माध्यम से एक शरीर से दूसरे शरीर में जाता है। 'जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन' वाली बात तो वैदिक ज्ञान के मूल में है। यही विचारों के उत्थान-पतन का आधार है।

आज विकास व उपज बढ़ाने के नाम पर विष बांटा जा रहा है। वह इसलिए क्योंकि रासायनिक खाद, कीटनाशक, खाद्य संरक्षक (फूड प्रिजरवेटर), रंग और बनावटी खाद्यान्न तक हमारे अन्न का अंग बन गए। व्यापारिक स्वार्थ से जुड़े ये सब स्वास्थ्य के मुख्य शत्रु हैं। इन पर अंकुश लगाने की चर्चा क्यों नहीं हुई? महामारी आक्रामकता के साथ नहीं आए तो टीके-दवा-निदान का बाजार ही गर्म नहीं होगा।

सम्मेलन में जो निर्णय हुए, वे बीमारी, बचाव एवं स्वास्थ्य रक्षण से जुड़े कतई नहीं हैं। छोटे और मध्यम आयवर्ग के देशों ने कोविड-19 के दौर में कितनी कीमत चुकाई, सब जानते हैं। आज तक चुका रहे हैं।

रोगों के प्रसार का दूसरा बड़ा माध्यम जो विश्वभर में एक समान छा गया- वह है फास्ट फूड। खाना भी सबकुछ बासी (फ्रीज का), डिब्बा बन्द, असंतुलित और चटपटा। नई पीढ़ी को मोबाइल पर छा रहे विज्ञापनों की मार फास्ट फूड की ओर धकेलती ही जा रही है।

यह पीढ़ी बचपन से ही रोगों का शिकार हो रही है जबकि इस उम्र में एक गोली खाने की भी जरूरत नहीं होती। आज तो हर छोटे-बड़े स्कूल की कैंटीन में फास्ट फूड उपलब्ध है। यही विकास का मापदण्ड बन गया है। भला सरकारें स्वास्थ्य के प्रति चिन्तित कहां हैं? वे भी चांदी की खनक के पीछे हैं। लोग मरे भी तो क्या, उनकी बला से!

सम्मेलन में भारतीय स्वास्थ्य के सिद्धान्तों की चर्चा न होना इस बात का प्रमाण है कि हमारे प्रतिनिधि स्वयं भी इस दृष्टि से अनभिज्ञ ही हैं, अंग्रेजीदां ही हैं। स्वयं भारत की अध्यक्षता में, भारत की आत्मा प्रतिबिम्बित न होना एक आश्चर्यजनक सत्य है। सही अर्थों में सम्मेलन के निर्णयों की दिशा उद्योगों के विकास को ही चरितार्थ करती है।

स्वास्थ्य की आत्मा के लिए नहीं। जिन लोगों का शिक्षण-प्रशिक्षण अंग्रेजी में ही हुआ, जिन्होंने मातृभूमि का स्वाद ही नहीं चखा, जिनके सपने केवल सत्ता से जुड़े हैं, उनको भारत का प्रतिनिधि बनाना देश हित में नहीं होगा। अन्न की भारतीय अवधारणा की यदि सम्मेलन में चर्चा होती तो पूरा विश्व चमत्कृत हो जाता।

स्तुत्य संकल्प

[typography_font:18pt]धरतीपुत्रों का अपमान

[typography_font:18pt]जलजला सिर पर है

[typography_font:18pt]घोषणाएं काफी नहीं

[typography_font:18pt]ढीठता की हद
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