सबसे पहला कदम विचारों को साधना सीखना है। घबराहट और आशंका से बचने के लिए वर्तमान में वास्तविकता के साथ जीना है। अगर किसी को संक्रमण हो जाए, तो चिकित्सक की निगरानी में अतिशीघ्र इलाज लेना चाहिए। आवश्यक सावधानी एवं वैक्सीन अपनाकर हम सब सुरक्षित रह सकते हैं। अनावश्यक आंकड़ों, अफवाहों और सोशल मीडिया की भ्रामक जानकारी से उत्पन्न मानसिक तनाव रक्त में स्ट्रेस हार्मोन का स्तर बढ़ा देता है, जिससे कि हमारा निद्राचक्र (स्लीप साइकिल) बुरी तरीके से प्रभावित हो सकता है। इसलिए ऐसा करने से बचें। सोने और जागने का समय निर्धारित करें।
गौरतलब है कि स्लीप साइकिल में रसायनों की भूमिका होती है। नींद का मिड पॉइंट समय कम होने पर नींद की गुणवत्ता बुरी तरीके से प्रभावित होती है। सोने के पूर्व स्क्रीन टाइम को कम करने से न केवल नींद का कुल समय, बल्कि गुणवत्ता भी बढ़ती है। स्क्रीन से आंखों में जाने वाला प्रकाश मेलाटोनिन स्लीप साइकिल में संतुलन को बिगाड़ सकता है। एक वयस्क को औसतन 6 से 8 घंटे सोना चाहिए। किसी भी कारण इसमें कमी न लाएं। नींद के घंटों में कमी से ध्यान, याददाश्त संबंधी समस्याएं एवं चिड़चिड़ापन बढ़ता है। बिस्तर पर जाने के बाद कोविड से संबंधित पोस्ट देखने से बचें, कोई भी बात आपके दिमाग में विचारों की शृंखला शुरू कर सकती है। बेड का इस्तेमाल पढऩे, टीवी देखने जैसे कामों के लिए न करें। बिना विशेषज्ञ की सलाह के नींद की दवा न लें। अगर समस्या बढ़ रही है, तो मनोचिकित्सक की सलाह लें। कसरत अवश्य करें, नशे से दूर रहें, अपनी पसंद के काम करें और समुचित आहार लें। दोस्तों और रिश्तेदारों से जुड़े रहें। आपसी जुड़ाव मानसिक तनाव को कम करने में बेहद मददगार होता है।
(लेखक मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट हैं और सुसाइड के खिलाफ ‘यस टु लाइफ’ कैंपेन चला रहे हैं)