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भारत के स्पेस स्टार्टअप्स की उड़ान को लगाने होंगे पंख

डॉ. मिलिंद कुमार शर्मा,प्रोफेसर, एमबीएम यूनिवर्सिटी,जोधपुर

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भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के सभी अभियान इसरो के जरिए संचालित होते हैं। हाल के वर्षों में स्टार्टअप्स और निजी क्षेत्र के संस्थानों ने भी इसमें सक्रिय भागीदारी दिखाना शुरू कर दिया है। इस वर्ष ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के अंतर्गत चालीस हजार से भी अधिक अनुपालनों को समाप्त करने की घोषणा और कुछ दिनों पहले शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा जैसी घटनाएं मिलकर भारत में स्पेस स्टार्टअप इकोसिस्टम को नई गति प्रदान कर सकती हैं।

देश में अभी लगभग 800 अंतरिक्ष स्टार्टअप्स सक्रिय हैं, जबकि वर्ष 2014 में यह संख्या केवल एक थी। इनमें स्काईरूट एयरोस्पेस ने ‘विक्रम सीरीज’ के अपने प्रक्षेपण यान के माध्यम से इतिहास रचा। यह अंतरिक्ष में रॉकेट लॉन्च करने वाली भारत की पहली निजी कंपनी है, जो छोटे उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए प्रक्षेपण वाहन डिजाइन और निर्मित करती है। वहीं, एक अन्य भारतीय निजी एयरोस्पेस कंपनी अग्निकुल कॉसमॉस ने पूरी तरह थ्री-डी प्रिंटेड रॉकेट इंजन ‘अग्निबाण’ तकनीक विकसित कर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है। यह कंपनी श्रीहरिकोटा में निजी लॉन्च पैड भी बना रही है, जिसे धनुष नाम दिया गया है। इस लॉन्च पैड से छोटे उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने के लिए व्यावसायिक प्रक्षेपण सेवाएं प्रदान करने की योजना है।

स्पेस स्टार्टअप्स के सामने कई चुनौतियां भी हैं। पूंजी की कमी, अवसंरचना तक सीमित पहुंच, उचित कौशल मानव संसाधन की अनुपलब्धता और जटिल नियामक ढांचे उनकी प्रगति में बाधा डालते रहे हैं। ऐसे समय में कारोबार में सुगमता के लिए अनुपालनों को समाप्त करने का निर्णय अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इन अनुपालनाओं के हटने से न केवल लालफीताशाही में कमी आएगी, अपितु स्टार्टअप्स को लाइसेंसिंग और अनुमति प्राप्त करने की प्रक्रिया में समय और संसाधन की बचत भी होगी।

इसी संदर्भ में शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा अत्यधिक प्रेरणादायी है। उनकी यह उपलब्धि केवल एक मील का पत्थर नहीं, बल्कि सामूहिक आत्मविश्वास और प्रेरणा का स्रोत है। इस यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत के वैज्ञानिक और युवा उद्यमी अब अंतरिक्ष तक पहुंचने और वैश्विक स्तर पर योगदान देने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। जब कोई भारतीय अंतरिक्ष तक पहुंचता है तो यह युवा पीढ़ी और स्टार्टअप्स के लिए प्रेरणादायी बन जाता है।

देश के स्पेस स्टार्टअप इकोसिस्टम को और सशक्त बनाने के लिए सरकार को निवेश, आधारभूत अवसंरचना और मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में और अधिक प्रयास करने होंगे। इसरो की प्रयोगशालाओं और प्रक्षेपण केंद्रों तक स्टार्टअप्स की पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिए।

सरकार द्वारा अनुपालनों को कम करने की पहल और शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा मिलकर भारत में अंतरिक्ष स्टार्टअप्स के लिए संभावनाओं का नया भविष्य खोलने की क्षमता रखते हैं। यदि सरकार, नीति निर्माता, उद्योग और शैक्षणिक संस्थान मिलकर सहयोग करें तो भारत न केवल आत्मनिर्भर अंतरिक्ष क्षेत्र की दिशा में आगे बढ़ेगा, अपितु वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भी अग्रणी भूमिका निभाएगा।