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नवरात्र: मानसिक शुद्धि का अवसर

स्वामी राजेंद्र दास

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अक्सर लोग सवाल पूछते हैं कि शारदीय नवरात्रि आधुनिक युग में क्यों प्रासंगिक है? तो यह जानना जरूरी हो जाता है कि इसकी जड़ें वेद-पुराणों में गहराई से जुड़ी हुई हैं। यह पर्व केवल भगवती श्रीदुर्गाजी की पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि आत्मानुशासन, आत्मबल और नारीशक्ति के सम्मान का प्रतीक होने के साथ-साथ अच्छे स्वास्थ्य के लिहाज से मानसिक शुद्धि और अनुशासित जीवनशैली की शुरुआत करने का एक बेहतरीन अवसर भी है। जहां एक ओर यह पर्व धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है, वहीं आधुनिक युग में इसकी प्रासंगिकता कहीं अधिक व्यापक और सार्थक हो गई है। अतएव इस पर्व को धर्म, शक्ति, भक्ति और आत्मोत्थान का महायोग कहा जा सकता है। नवरात्रि का मूल भाव "शक्ति की आराधना" है। यह पर्व समाज को नारी को देवी के समान देखने के साथ-साथ, उसे वास्तविक अधिकार और सम्मान देने की प्रेरणा देता है।

आधुनिक जीवन तनाव, भागदौड़ और अनिश्चितता से भरा है। नवरात्रि के व्रत, ध्यान और संयम की प्रक्रिया मानसिक शांति और आंतरिक संतुलन प्रदान करती है। शरीर को डिटॉक्स करने के साथ-साथ मन को भी नकारात्मकता से मुक्त करने में सहायक होती है। नवरात्रि के व्रत, सात्विक आहार और नियमबद्ध जीवनशैली आज की खराब दिनचर्या के लिए एक प्रकार की नेचुरल थेरेपी बन सकती है। डिटॉक्स, सादगी और संयम स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं। यह पर्व तन, मन और आत्मा तीनों के लिए रिफ्रेशिंग ब्रेक है।

नवरात्रि के आयोजन- दुर्गा पूजा, रामलीला, गरबा- समुदाय को एक साथ लाते हैं। आज जब अकेलापन बढ़ रहा है, यह पर्व सामूहिकता और मेल-जोल का अवसर प्रदान करता है। सांस्कृतिक मेलों, भजन-संध्याओं और झांकीयों के माध्यम से सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करता है जिससे व्यक्ति खुद को सुरक्षित और मजबूत पाता है, रिश्तों में मिठास और उच्च मनोबल से लबरेज जीवन को बढ़ावा देने का यह एक अनमोल अवसर है।

नवरात्रि के पीछे की कथा- मां दुर्गा की महिषासुर पर विजय- एक प्रतीक है जीवन के संघर्षों पर विजय का। आज का मानव बाहरी चुनौतियों के साथ-साथ आंतरिक डर, तनाव और असुरक्षा से भी लड़ रहा है। नवरात्रि उसे याद दिलाती है कि हर व्यक्ति के भीतर एक शक्ति है, बस उसे जागृत करने की आवश्यकता है और यही इंसान को विपरीत परिस्थितियों में भी मजबूत बने रहने और जीत के लिए प्रेरित करती है।